Tuesday 27 March 2012

जयपुर की सैर और एक सवाल


                         हवा महल 
साथियो  गद्य में मैं पारंगत नहीं हूँ इसलिए बहुत से विचार आवा-गमन कर रहे हैं और  बात को   सीधे सीधे प्रवाह में  कहने में रुकावट डाल रहे हैं. फिर भी क्या करूँ...विषय ही ऐसा है जिसे आप सबसे साँझा किये बिना नहीं रहा जा रहा. आखिर  अंतरजाल की हमारी ये दुनिया है ही इतनी मन-मोहिनी सी कि इस से  अपने मन की बात छिपाना कुछ बेमानी सा लगता है. अभी पिछले सप्ताह जयपुर जाना हुआ, हमारा जयपुर जाना ये पहली बार था तो जाहिर सी बात है कि यहाँ का आकर्षण, यहाँ की बाते , यहाँ की सरकार की पर्यटकों के लिए सुविधाएं जानने का पहली बार मौका मिला. मैं अपने घूमने के ढोल नहीं पीट रही हूँ....लेकिन यहाँ की एक बात जो खटकी वो मुख्य विषय है आप के साथ शेयर करने का.

हमने जयपुर में हवा महल, यंत्र-मंतर, आमेर का किला, नहार गढ़ का किला,जय वाड़ की तोप, चौकी ढाणी इत्यादि की सैर की. जयपुर की सड़कें काफी चौड़ी-चौड़ी हैं. ट्रेफ्फिक रूल्स का अच्छे से पालन किया जाता है.  सब जगह दो-पहिया पर पीछे वाली सवारी को भी हेलमेट पहनना  जरूरी है , लेकिन  हमारे यहाँ तो सब कानून को जेब में ले कर घुमते हैं, और ओवर लोडेड हो कर चलना यहाँ का फैशन है, जबकि जयपुर में इन नियमों का कडाई से पालन किया जाता है. बस एक फ्लाई-ओवर और मेट्रो रेल को छोड़ दें तो जयपुर दिल्ली से भी ज्यादा खूबसूरत और खुला-खुला नज़र आता है. वैसे ये मेरा स्वयं का नजरिया है. 
                                                                      आमेर का किला 

हाँ जहाँ-जहाँ घूमने गए सब जगह टिकट लेना पड़ा. समझ सकती हूँ कि इतने पुराने किलों का रख रखाव करना सरकार के लिए बहुत खर्चीला विषय है और उसके लिए टिकट लेना इतना बुरा भी नहीं लगता क्युकी साफ़ सफाई का भी वहां पूरा ध्यान रखा जाता है. लेकिन सबसे अधिक खटकने वाली बात चौकी ढाणी की टिकट की लगी. चौकी ढाणी में राजस्थान की संस्कृति, वहां के पुराने ज़माने में प्रयोग में लाये गए  औजार, बर्तन, रहन-सहन, खान-पान  के बारे में दिखाया गया है. यहाँ  हमें 400 रुपये प्रति व्यक्ति टिकट लेकर  जाना पड़ा. आज हम टेलिविज़न में विज्ञापन देखते हैं जिसमे  हर राज्य अपने राज्य की संस्कृति दिखाने, बताने, घूमने के लिए प्रेरित करते हैं. तो क्या अपने राज्य की संकृति दिखाने के लिए किसी प्रकार की टिकट का प्रावधान होना क्या उचित है ? कहाँ तो हम देश की जनता को लुभावने पैकेज देकर  देश के हर कोने की संस्कृति को जानने को  प्रेरित करते हैं , बात करते हैं एकीकरण की, और कहाँ फिर ये कर प्रावधान है ? हर राज्य को चाहिए कि वो अपने कोष से ऐसा बंदोबस्त करे कि वहां आने वाले पर्यटकों को कम से कम अपनी संस्कृति को जानने के लिए मुफ्त सुविधा उपलब्ध कराएँ.
                                                                                                    








                          चौकी ढाणी
दूसरी बात जयपुर में ये देखने को मिली कि भारतीय पर्यटकों के लिए यदि टिकट  20 रूपए है तो विदेशी पर्यटक के लिए वही टिकट 50 रूपए है. मैं समझ सकती हूँ कि मुद्रा परिवर्तन कर कुछ  लगते होंगे लेकिन फिर हमारा 'अतिथि देवो भव'  वाला भाव कहाँ अर्थपूर्ण रह जाता है ?

मैं महाराष्ट्र , गोवा  के अलावा और अन्य राज्यों में नहीं घूमी हूँ. गोवा में पुराना गोवा देखने के बहुत ही कमतर 10-20 रूपए की  टिकट है.  इसलिए नहीं जानती कि अन्य राज्यों में भी क्या अपनी संस्कृति दिखाने के लिए इतनी ज्यादा टिकट है. लेकिन अगर ऐसा है तो बहुत दुख की बात है. हर राज्य को  अपनी पुरानी संस्कृति से अवगत कराने  की सुविधा को तो कम से कम कर-मुक्त करना चाहिए.    साथियो आपकी क्या राय है ?