सोमवार, 19 अक्टूबर 2009

दिल के दाग...

अच्छा ही हुआ जो अब हमसे लिखा नहीं जाता
दाग दिल का दिल में ही रहता है, लफ्जों में नहीं आता..!

तुमने क्या सोचा था, ता-उम्र शिकवे करेंगे तुमसे..
हम भी वो है कि, बंद दरवाजो पे दस्तक दिया नहीं जाता..!

उम्र फ़ना हो चुकी आधी, दर्द-ए-इश्क के ताबूतों में..
सुन ओ जालिम, कि जिंदा लाशो से खेला नहीं जाता..!

तेरी परछाई से लिपट, हम रोये तो बहुत,
साया भी जिद पे था कि, निगाहों से तू दूर नहीं जाता..!

दूरियों के रेगिस्तान, जो तय ना हुऐ तुमसे..
दिल की कब्र पे किसी गैर का नाम लिखा नहीं जाता..!!

5 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छा ही हुआ जो अब हमसे लिखा नहीं जाता
    दाग दिल का दिल में ही रहता है, लफ्जों में नहीं आता..!
    wah aanamika ..bahut paye ka sher hua hai ye aapse badhai

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  2. तेरी परछाई से लिपट, हम रोये तो बहुत...
    क्या खूब लिखा है. बहुत पसंद आया.

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  3. उम्र फ़ना हो चुकी आधी, दर्द-ए-इश्क के ताबूतों में..
    सुन ओ जालिम, कि जिंदा लाशो से खेला नहीं जाता..!

    bahut khoobsurat ghazal kahi hai....dard ubhar kar aa raha hai har lafz men....achchhe lekhan ke liye badhai

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  4. तुमने क्या सोचा था, ता-उम्र शिकवे करेंगे तुमसे..
    हम भी वो है कि, बंद दरवाजो पे दस्तक दिया नहीं जाता..!

    दूरियों के रेगिस्तान, जो तय ना हुऐ तुमसे..
    दिल की कब्र पे किसी गैर का नाम लिखा नहीं जाता..!!

    क्या बात है.

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