शनिवार, 31 अक्टूबर 2009

आज एक बार फ़िर ...

आज के ये सुबह-शाम
उन बिन...
बहुत तन्हा बीते...!
आज पलकों से
ढेरो आंसू छलके॥!

आज दर्द का....
मेरे घर पर पहरा था॥
आज एक बार फ़िर हम....
टूट के बिखरे-सिमटे॥!!

आज उसकी दूरियों ने
फ़िर रुलाया हमको ....
आज उनकी यादो ने
फ़िर तडफाया हमको॥

आज एक बार फ़िर
अपने दिल को ठोकर मारी हमने
आज एक बार फ़िर.....
हम ख़ुद से रूठे, टूटे.....!!

कैसा ये प्यार है....????
लगता हे जान ले कर जाएगा॥!!
कैसा ये पागलपन है ....???
यु लगता है आज
इसी में दम घुट जायेगा....!!

उफ़ बी करते है तो....
ख़ुद से ही गिला होता है...!!
न रोये तो....
दिल का जनाजा उठता है॥!!

आज फ़िर
मायूसियों की घटाए है॥
आज फ़िर
चमन-ऐ-बरबाद की॥
चीत्कार है...
आज फ़िर
एक मुहोब्बत गुनाहगार है....!!

10 टिप्‍पणियां:

  1. आज फिर
    एक मुहब्बत गुनाहगार है !

    सुंदर कविता.

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  2. सुन्दर ,सुकोमल भावो से भरी रचना

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  3. आज फिर
    एक मुहब्बत गुनाहगार है !


    मिलने का सुख है ...बिछड़ने का ग़म ..
    ऐ ज़िन्दगी तुझे कैसे समझ पायें हम ...
    sunder ..

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  4. बहुत भावपूर्ण रचना "आज दर्द का मेरे घर पर पहरा था ------टूट कर बिखरे सिमटे "
    बहुत सुन्दर |बधाई
    आशा

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  5. आज एक बार फ़िर
    अपने दिल को ठोकर मारी हमने
    आज एक बार फ़िर.....
    हम ख़ुद से रूठे, टूटे.....!!

    अच्छी रचना...
    सादर...

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