रविवार, 4 अप्रैल 2010

मेरी हर सोच मे तुम क्यों हो????


मेरी हर सोच मे तुम क्यों हो?
मेरी हर साँस मे तुम क्यों हो?
मेरा तुम्हारा तो कोई रिश्ता भी नही
फ़िर मेरे दिन और रात मे तुम ही क्यों हो?

मैंने तुम्हें चाहा तो क्या हुआ ..
मैंने तुम्हें पूजा तो क्या हुआ ..
मेरे हर लम्हात पर तुम्हारा हक़ क्यों है?
मैं चाहे हक़ न भी देना चाहू , तो ऐसा क्यों है?



मैंने तो सकूं चाहा था तुम्हें चाह कर ..
मैंने तो तृप्ति चाही थी तुम्हें पाकर ...
फ़िर मैं और बैचैन क्यों हो गई तुम्हें चाह कर?
फ़िर मैं और प्यासी कैसे हो गई तुम्हें पाकर?

मेरी हर सोच में तुम क्यों हो?
मेरी हर साँस में तुम क्यों हो?
मेरा तुम्हारा तो कोई रिश्ता भी नही ..
फ़िर मेरे दिन और रात में तुम ही क्यों हो?

मैंने तो जिंदगी को खुशिया देनी चाही थी ..
मैंने तो ज़ख्मो को मरहम देनी चाही थी ..
मैंने तो तन्हाई को जलन देनी चाही थी ..
मैंने तो दुखती रगों को दावा देनी चाही थी ..

तुम्हें पाकर मैं सब पा तो गई हू !
चैन-ओ-आराम पाकर भी फ़िर बैचैन क्यों हो गई हू ?
तुमारे प्यार से तन्हाई को जलाया है मैंने ..
फ़िर क्यों दवा पाकर भी दुआ की दरकार करती हू ?

क्यू बे-इन्तहा तुमसे प्यार करती हू ?
तृप्त सागर की प्यास बुझा तो चुकी हू ..
फ़िर भी अतृप्त अधूरी सी जिंदगी क्यों हू ?
तुम बिन अधूरी सी बेवजूद सी क्यों हू ?

मेरी हर सोच मे तुम क्यों हो?
मेरी हर साँस मे तुम क्यों हो?
मेरा तुमारा तो कोई रिश्ता भी नही ..
फ़िर मेरे दिन और रात मे तुम ही क्यों हो?

30 टिप्‍पणियां:

  1. क्यू बे-इन्तहा तुमसे प्यार करती हू ?
    तृप्त सागर की प्यास बुझा तो चुकी हू ..
    फ़िर भी अतृप्त अधूरी सी जिंदगी क्यों हू ?
    तुम बिन अधूरी सी बेवजूद सी क्यों हू ?

    मेरी हर सोच मे तुम क्यों हो?
    मेरी हर साँस मे तुम क्यों हो?
    मेरा तुमारा तो कोई रिश्ता भी नही ..
    फ़िर मेरे दिन और रात मे तुम ही क्यों हो?
    bahut sundar rachna ,in baaton ka ek jawab ,dil ka rashta yahan hai kuchh khas .

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  2. क्यू बे-इन्तहा तुमसे प्यार करती हू ?
    तृप्त सागर की प्यास बुझा तो चुकी हू ..
    फ़िर भी अतृप्त अधूरी सी जिंदगी क्यों हू ?
    तुम बिन अधूरी सी बेवजूद सी क्यों हू ?
    यही वो सवाल है जो सदा सवाल ही रहते हैं
    बहुत सुन्दर रचना
    एहसास और भाव दर्शनीय

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  3. कुछ अंजाने रिश्ते चुपके से घर कर लेते हैं दिल में .... खुद को समझ नही आता ... क्या होते हैं वो रिश्ते .. क्यों होते हैं ऐसे रिश्ते ... बाट ही अच्छा लिखा है आपने ...

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  4. अंतर्मन की व्यथा को अक्षरश: व्यक्त करती बहुत ही मार्मिक रचना ! जितने सुन्दर भाव उतनी ही सशक्त शब्द व्यंजना ! आपको बहुत बहुत बधाई और आभार !

    http://sudhinama.blogspot.com
    http://sadhanavaid.blogspot.com

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  5. मन की भावनाओं को व्यक्त करती एक सच्ची कविता..सुंदर अभिव्यक्ति के लिए आभार

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  6. बहुत खूब अनामिका जी ,बहुत ही सुंदर भावों से युक्त रचना ..सच में ही दिल उडेल कर रख दिया आपने तो
    अजय कुमार झा

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  7. अनामिका, शायद यही है इंसान होने का दर्द और फिर स्त्री होने का भी। समंदर के पास आकर भी प्यास से तड़पता फिरना... ज़िदगी की एक तल्ख सच्चाई है। मुकम्मल कुछ नहीं यहां...हर शै में अधूरापन छिपा है।

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  8. मन के भावों को सशक्त शब्दों से बुना है...खूबसूरत अभिव्यक्ति...

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  9. सुन्दर रचना! चाहत को शब्दों में बहुत खूबसूरती से पिरोया है.

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  10. मेरी हर सोच मे तुम क्यों हो?
    मेरी हर साँस मे तुम क्यों हो?
    Dil nikal kar rakh diya hai...

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  11. गाना फिल्माया जा सकता है इस विषयवस्तु पर । वाह ।

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  12. क्यू बे-इन्तहा तुमसे प्यार करती हू ?
    तृप्त सागर की प्यास बुझा तो चुकी हू ..
    फ़िर भी अतृप्त अधूरी सी जिंदगी क्यों हू ?
    तुम बिन अधूरी सी बेवजूद सी क्यों हू ?

    -यही कौन कब समझ पाया है..ये अहसास का सागर है..कितना गहरा..कौन जाने!!

    बहुत बढ़िया रचना..देर से आने के लिए क्षमाप्रार्थी.

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  13. बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति।मन को खोल कर रख दिया।बहुत मुश्किल है इतना उधड़ना।भावोँ की तरलता और अभिव्यक्ति कि सुघड़ता प्रभावित करती है।

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  14. बहुत ही सुन्दर व्यञ्जना प्रस्तुत की है आपने!

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  15. इमली खाने के बाद कैसी तृप्ति सी होती है तो क्‍या दोबारा खाने को मन नहीं मचलता है? अच्‍छी अभिव्‍यक्ति है।

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  16. मेरी हर सोच मे तुम क्यों हो?
    मेरी हर साँस मे तुम क्यों हो?
    मेरा तुमारा तो कोई रिश्ता भी नही ..
    फ़िर मेरे दिन और रात मे तुम ही क्यों हो?

    वाह अनामिका जी, बहुत बेहतरीन प्रस्तुती.मन के भाव कितनी सहजता के साथ सामने आये है जैसे की बहता हुआ पानी. चाहें आँखों से या जल स्रोत से.

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  17. मैंने तो सकूं चाहा था तुम्हें चाह कर ..
    मैंने तो तृप्ति चाही थी तुम्हें पाकर ...
    फ़िर मैं और बैचैन क्यों हो गई तुम्हें चाह कर?
    फ़िर मैं और प्यासी कैसे हो गई तुम्हें पाकर?

    atript prem ko abhivyakt karti bahut hi sundar panktiyan!!!!

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  18. मेरी हर सोच में तुम क्यों हो?
    मेरी हर साँस में तुम क्यों हो?
    मेरा तुम्हारा तो कोई रिश्ता भी नही ..
    फ़िर मेरे दिन और रात में तुम ही क्यों हो?
    क्या बात है...बहुत खूब....सुन्दर अभिव्यक्ति

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  19. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  20. क्यों.....?????

    यही तो है जो तड़पाता है,लिखवाता है और ना जाने क्या-क्या करवाता है.....

    बहुत सुन्दर रचना जी,

    कुंवर जी,

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  21. क्यू बे-इन्तहा तुमसे प्यार करती हू ?
    तृप्त सागर की प्यास बुझा तो चुकी हू ..
    फ़िर भी अतृप्त अधूरी सी जिंदगी क्यों हू ?
    तुम बिन अधूरी सी बेवजूद सी क्यों हू ?

    ये अहसास का सागर है..कुछ अजीब सा लगा...
    कितना गहरा..कौन जाने!!

    बहुत बढ़िया रचना..देर से आने के लिए क्षमाप्रार्थी.

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  22. man kibhavnao ko bahut hi saralta avam komalata se abhivykt kiya hai aapane.bahut hi lazwab.

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  23. दिल का मामला है अनामिका जी .......

    कोई तूफ़ान दस्तक दे रहा है
    मोहब्बत के रिसाले बोलते हैं ......

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  24. शायद ही कोई कोना बचा ओ मन का जिसे छुआ नही गया ।

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  25. but khoob anamika ji ;

    sundar ahsaaso ki maasum rachna ..bahut ache shabdo se sanwaara hai aapne .. badhayi sweekar kariye ...

    aabhar

    vijay
    - pls read my new poem at my blog -www.poemsofvijay.blogspot.com

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