बुधवार, 12 जनवरी 2011

अलगाव

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खाबों की  निद्रा में सोया था 
प्रेम पुष्प महक में खोया था 
मखमली चांदनी सी चादर ओढ़े 
कितनी यादों से अंतस भिगोया था. 

वो  हर पल मेरे साथ रहे 
ज्यूँ निशि संग तारों की बरात रहे 
हो  विकल गगन में जब खो जाता 
वो  चांदनी  बन  सौगात मिले.

कब ये नसीबा  रूठ गए  ?
कब शब्दों से दिल टूट गए  ?
कब उम्मीदें पथ का कांटा बनी ?
जो घायल हो ये अलगाव हुए ?

विश्वास की डोरी टूट गयी 
करुण हृदय से विरक्ति फूट गयी 
कल-कल करती जो प्यासी नदिया थी 
ना जाने कब कैसे सूख गयी ?

हृदय की विकल रागिनी आज
हा-हा-कार सी गूंजा करती है 
क्लांत सी जर्जर अभिलाषाएं 
करवट ले, पलकें भिगोया करती हैं .

उपालंभो के आंसू भर भर 
आज खुद को यूँ समझाता हूँ 
हे चन्द्रामृत पिलाने वाले 
क्यूँ विरह अंगार में जलते हो ?

सुख की बातें सब स्वप्न हुई  
क्यूँ सुप्त व्यथा को  जगाते  हो 
हे करुणे, रो - रो कर क्यों
प्रेम विभूति खोते हो .

61 टिप्‍पणियां:

  1. खाबों की निद्रा में सोया था
    प्रेम पुष्प महक में खोया था
    मखमली चांदनी सी चादर ओढ़े
    कितनी यादों से अंतस भिगोया था.


    प्रेम रस में भीगी भीगी अभिव्यक्ति -
    सुंदर.

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  2. व्यथा प्रकट करती अभिव्यक्ति!!
    एक एक शब्द तीर सा उतर जाता है।

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  3. anamika ji
    bahut hi achhi aur bhavbhini prastuti
    har pankti apne aapme samete hue bhut kuchh kah jaati hai.
    bahut bahut badhai
    poonam

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  4. उपालंभो के आंसू भर भर
    आज खुद को यूँ समझाता हूँ
    हे चन्द्रामृत पिलाने वाले
    क्यूँ विरह अंगार में जलते हो ?
    bejod rachna

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  5. उपालंभो के आंसू भर भर
    आज खुद को यूँ समझाता हूँ
    हे चन्द्रामृत पिलाने वाले
    क्यूँ विरह अंगार में जलते हो ?
    क्या कहें आपके शब्दों को ..एक दम दिल को छु गए ...विरह वेदना का मार्मिक वर्णन हुआ है हर एक पंक्ति में ..बहुत बहुत आभार

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  6. बेहतरीन प्रस्तुती
    तारीफ के लिए हर शब्द छोटा है - बेमिशाल प्रस्तुति - आभार.

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  7. हृदय की विकल रागिनी आज
    हा-हा-कार सी गूंजा करती है
    क्लांत सी जर्जर अभिलाषाएं
    करवट ले, पलकें भिगोया करती हैं .


    विरह वेदना का मार्मिक वर्णन प्रेम पयोध सा छलका दिया है आपने अनामिका जी, सुंदर अभिव्यक्ति सुंदर प्रस्तुति.

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  8. बहुत सुंदर कविता, ओर चित्र भी बहुत सुंदर, धन्यवाद

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  9. सुन्दर मर्म- स्पर्शी काव्य रचना ! बधाई !

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  10. बहुत ही मर्म-स्पर्शी पंक्तियाँ....

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  11. विश्वास की डोरी टूट गयी
    करुण हृदय से विरक्ति फूट गयी
    कल-कल करती जो प्यासी नदिया थी
    ना जाने कब कैसे सूख गयी...

    कितना दर्द बयान किया है आपने रचना में.

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  12. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  13. इस कविता में बहुत बेहतर, बहुत गहरे स्तर पर एक बहुत ही छुपी हुई करुणा और गम्भीरता है।

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  14. वेदना, करुणा और दुःखानुभूति का अच्छा चित्रण।

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  15. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  16. बहोत ही बहेतारिन! लाजवाब ! दिल को छू गयी ये पंक्तियाँ !

    विश्वास की डोरी टूट गयी
    करुण हृदय से विरक्ति फूट गयी
    कल-कल करती जो प्यासी नदिया थी
    ना जाने कब कैसे सूख गयी ?

    हृदय की विकल रागिनी आज
    हा-हा-कार सी गूंजा करती है
    क्लांत सी जर्जर अभिलाषाएं
    करवट ले, पलकें भिगोया करती हैं .

    जवाब देंहटाएं
  17. मिलन की खुशियाँ और फिर अलगाव का दुःख शब्दों की उदारता ने दोनों को बखूबी प्रकट कर दिया है ...!

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  18. सुन्दर शब्द चयन के साथ लाजवाब प्रस्तुति!

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  19. मिलन और विलगता का सुन्दर मिश्रण ...बहुत भावप्रवण रचना ...

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  20. विरह वेदना और अलगाव के दुख का बहुत ही सुन्दर प्रतीको के माध्यम से चित्रण किया है………दर्द उभर कर आया है।

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  21. विश्वास की डोरी टूट गयी
    करुण हृदय से विरक्ति फूट गयी
    कल-कल करती जो प्यासी नदिया थी
    ना जाने कब कैसे सूख गयी ?

    भावपूर्ण अभिव्यक्ति!

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  22. संयोग श्रृंगार और वियोग श्रंगार का अनुपम शब्दांकन है अनामिकाजी आपकी रचना मैं ! बहुत हृदयस्पर्शी रचना है ! अंतर को गहराई तक आंदोलित कर गयी ! इस अद्वितीय प्रस्तुति के लिये आपको ढेर सारी बधाइयाँ !

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  23. "सुख की बातें सब स्वप्न हुई
    क्यूँ सुप्त व्यथा को जगाते हो
    हे करुणे, रो - रो कर क्यों
    प्रेम विभूति खोते हो ."

    अआह..बहुत खूब
    दिल को छूती हुयी बहुत सुन्दर रचना
    बधाई
    आभार & शुभ कामनाएं

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  24. बहुत ही सुन्‍दर भावमय करते शब्‍द ...बेहतरीन ।

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  25. बेहद मार्मिक और दिल से निकली बातें.सुन्दर शब्द चयन सुदर भावनाएं. सराहनीय प्रस्तुति.

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  26. हृदय की विकल रागिनी आज
    हा-हा-कार सी गूंजा करती है
    क्लांत सी जर्जर अभिलाषाएं
    करवट ले, पलकें भिगोया करती हैं ...

    क्या शब्द दिए हैं आपने अपने भावों को ... हमें निशब्द कर दिया ... उम्दा प्रस्तुति ... शुभकामनाएँ

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  27. हृदय की विकल रागिनी आज
    हा-हा-कार सी गूंजा करती है

    गहन दर्द और विकलता की अनुभूति

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  28. उपालंभो के आंसू भर भर
    आज खुद को यूँ समझाता हूँ
    हे चन्द्रामृत पिलाने वाले
    क्यूँ विरह अंगार में जलते हो ?

    अंतर्मन की व्यथा.... प्रभावी रचना

    जवाब देंहटाएं
  29. किसी और की वेदना समझाना आसान नहीं , और समझ भी पायें तो दर्द साझा कैसे करें ?? शुभकामनायें !

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  30. अति सुंदर पंक्तियाँ.....
    लोहरी पर्व की शुभकामनाएँ !

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  31. ख़wआबों की निद्रा में सोया था, प्रेम पुष्प के महक में ख़ोया था।

    बेहतरीन अभिव्यक्ति, बधाई।

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  32. सक्रांति ...लोहड़ी और पोंगल....हमारे प्यारे-प्यारे त्योंहारों की शुभकामनायें ...

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  33. प्रेम के दो रूपों का वर्णन करती प्रेम और विरक्ति - सुन्दर कविता आज चर्चामंच पर आपकी पोस्ट है...आपका धन्यवाद ...मकर संक्रांति पर हार्दिक बधाई

    http://charchamanch.uchcharan.com/2011/01/blog-post_14.html

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  34. बहुत सुन्दर रचना . लोहड़ी और मकर संक्रांति की शुभकामनायें

    जवाब देंहटाएं
  35. उपालंभो के आंसू भर भर
    आज खुद को यूँ समझाता हूँ
    हे चन्द्रामृत पिलाने वाले
    क्यूँ विरह अंगार में जलते हो ?

    विरह वेदना की बहुत मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति..आभार

    जवाब देंहटाएं
  36. उतरायाण: मकर सक्रांति, लोहड़ी, और पोंगल पर बधाई, धान्य समृद्धि की शुभ्काननाएं।

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  37. बहुत सुंदर लिखती हैं आप. खुदा आपको जोरे कलम और ज्यादा दे

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  38. प्रेम..विरह....वाह अनामिका जी बहुत सुन्दर....

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  39. सुख की बातें सब स्वप्न हुई
    क्यूँ सुप्त व्यथा को जगाते हो
    हे करुणे, रो - रो कर क्यों
    प्रेम विभूति खोते हो .
    bahut achcha likhi hain aap.

    जवाब देंहटाएं
  40. उपालंभो के आंसू भर भर
    आज खुद को यूँ समझाता हूँ
    हे चन्द्रामृत पिलाने वाले
    क्यूँ विरह अंगार में जलते हो ?

    प्रेम के करून पक्ष को बहुत मार्मिकता से उभरा है ....

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  41. जो भी लिखती हूँ, इस दिल को सुकून देने के लिए लिखती हूँ ........
    यहाँ आकर ऐसा ही लग रहा है ,आप वाकई दिल से ही लिखती है ...

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  42. सुख की बातें सब स्वप्न हुई
    क्यूँ सुप्त व्यथा को जगाते हो
    हे करुणे, रो - रो कर क्यों
    प्रेम विभूति खोते हो .
    bahut hi sundar panktiyan . badhaayee..

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  43. सुख की बातें सब स्वप्न हुई
    क्यूँ सुप्त व्यथा को जगाते हो
    हे करुणे, रो - रो कर क्यों
    प्रेम विभूति खोते हो .

    फिर एक बहतरीन रचना ...........

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  44. विश्वास की डोरी टूट गयी
    करुण हृदय से विरक्ति फूट गयी
    कल-कल करती जो प्यासी नदिया थी
    ना जाने कब कैसे सूख गयी ?

    हृदय की विकल रागिनी आज
    हा-हा-कार सी गूंजा करती है
    क्लांत सी जर्जर अभिलाषाएं
    करवट ले, पलकें भिगोया करती हैं .


    Ek behtreen Rachna k liye aapko bahut bahut badhai

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  45. बेहतरीन रचना अनामिकाजी !!!!!!!

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  46. हृदय की विकल रागिनी आज
    हा-हा-कार सी गूंजा करती है
    क्लांत सी जर्जर अभिलाषाएं
    करवट ले, पलकें भिगोया करती हैं .
    behtrin rachna ,gantantra divas ki badhai .vande matram

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  47. bahut sundar kavita ,anamika ji , bahut hi saral shabdo me man ki baat kahi hai aapne .. badhayi

    -----------
    मेरी नयी कविता " तेरा नाम " पर आप का स्वागत है .
    आपसे निवेदन है की इस अवश्य पढ़िए और अपने कमेन्ट से इसे अनुग्रहित करे.
    """" इस कविता का लिंक है ::::
    http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/02/blog-post.html
    विजय

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  48. AMAR BAHADUR RAJBHAR



    NAME-AMAR BAHADUR RAJBHAR
    FATHER,S NAME-SRI SHIV KUMAR RAJBHAR
    VILLAGE-SURHAN(ANAND NAGAR)
    MARKET-MARTINGUNJ
    DISTT-AZAMGARH
    MO-9278447743

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