बुधवार, 6 अप्रैल 2011

फितरत

Share
















घर  के आंगन को

रोशन कर दिया है  
असीम प्रकाश से
मन के आंगन में
पसरा अंधेरा मगर
सिमटता ही नही है .

हालात की कंटीली झाड़ियाँ 
छेदे जाती हैं वज़ूद को 
रिस रिस कर भी लहू 
जिस्म सांसे छोडता नही है  .

बहुत कोलाहल है  
जिंदगी के इर्द-गिर्द 
तन्हाइयों  का तूफ़ान 
मगर  भीतर का 
सिमटता ही नही है .

शिकवे लाखों  किये,
अश्क बहाये बहुत,
पुकारा किया मेरी सदाओं  ने,
सजदे किये तेरी राहों  में,
तूने मगर ना आना था,
और तू आया भी नही है .

बंद कर दिये हैं रोशनदान 
हर उम्मीद के ...
तेरे आने की उम्मीद 
फिर क्यूँ  रुकती नही है ?

मजबूरियों  की आढ में 
दगा दिया है  तूने मुझे
तुझे निकाल, जिगर से बाहर करूँ 
ये भी तो मुझसे होता नही है.

चाहत है कि मैं  भी 
तुझसे दगा करू, 
उफ्फ, 'तन्हा' की ये भी तो
फितरत नही है .


43 टिप्‍पणियां:

  1. भूलना चाहते भी हैं तुम्हें भूल ना पाते हैं
    चाहत भी है तुमसे कुछ चाहते भी नहीं हैं ।
    भावों की अच्छी अभिव्यक्ति ।

    जवाब देंहटाएं
  2. मन में उठ रही भावों की तरंगों को
    आपने बहुत सुन्दर ढंग से अपनी रचना में पिरोया है!
    --
    बढ़िया रचना!

    जवाब देंहटाएं
  3. ye awsaad kahin na kahin todta bhi hai aur apne aap se jodta bhi hai...beautiful!

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत खूबसूरत रचना !
    बंद कर दिये हैं रोशनदान
    हर उम्मीद के ...
    तेरे आने की उम्मीद
    फिर क्यूँ रुकती नही है ?
    यही उम्मीद है जो अनंत है, अमर है, शाश्वत है और जीने की वजह बन जाती है ! बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ! बधाई एवं शुभकामनायें !

    जवाब देंहटाएं
  5. चाहत है कि मैं भी
    तुझसे दगा करू,
    उफ्फ, 'तन्हा' की ये भी तो
    फितरत नही है .

    खुबसुरत रचना।

    जवाब देंहटाएं
  6. Har pal tujhe paane ki dua aur har pal tujhe khone ka darr sath lie chalti hu... m ishq k nuksaano se waaqif hote hue bhi tujhse bepanaah ishq karti hu...

    जवाब देंहटाएं
  7. दगा पाए मन से निकली भावनाएं ...खूबसूरती से लिखी हैं ..अच्छी प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  8. बंद कर दिये हैं रोशनदान
    हर उम्मीद के ...
    तेरे आने की उम्मीद
    फिर क्यूँ रुकती नही है ?

    मजबूरियों की आढ में
    दगा दिया है तूने मुझे
    तुझे निकाल, जिगर से बाहर करूँ
    ये भी तो मुझसे होता नही है.

    बहुत अच्छी अभिव्यक्ति !

    जवाब देंहटाएं
  9. wah kya likha. bhut khoob.. app bhut hi gahrai se likhti ho so thanks

    जवाब देंहटाएं
  10. बंद कर दिये हैं रोशनदान
    हर उम्मीद के ...
    तेरे आने की उम्मीद
    फिर क्यूँ रुकती नही है ?

    सुंदर अभिव्यक्ति...बेहतरीन पंक्तियाँ

    जवाब देंहटाएं
  11. घर का आँगन तो प्रकाश से भर गया मगर मन का अँधेरा मिटता नहीं ...
    भावपूर्ण अभिव्यक्ति !

    जवाब देंहटाएं
  12. मजबूरियों की आढ में
    दगा दिया है तूने मुझे
    तुझे निकाल, जिगर से बाहर करूँ
    ये भी तो मुझसे होता नही है.

    जीवन की यही तो विडंबना है हम जिस पर विश्वास करते हैं वह हमें दगा दे जाता है .. हम उसके प्रति समर्पित होते हैं और हम उसे अपने दिल से नहीं निकाल पाते .....हमें ऐसे लोगों से सजग रहना चाहिए पर क्या करें दिल है की मानता नहीं ...आपका आभार

    जवाब देंहटाएं
  13. अनन्त से मिलन की सार्थक अभिव्यक्ति…………सुन्दर रचना।

    जवाब देंहटाएं
  14. बंद कर दिये हैं रोशनदान
    हर उम्मीद के ...
    तेरे आने की उम्मीद
    फिर क्यूँ रुकती नही है ?
    अनंत आस की सुन्दर भावाभिव्यक्ति...
    बेहतरीन पंक्तियाँ..

    जवाब देंहटाएं
  15. बंद कर दिये हैं रोशनदान
    हर उम्मीद के ...
    तेरे आने की उम्मीद
    फिर क्यूँ रुकती नही है ?

    सुंदर अभिव्यक्ति...बेहतरीन पंक्तियाँ

    जवाब देंहटाएं
  16. गहन एकाकीपन की अन्यतम भावाभिव्यक्ति से मन सिक्त हुआ।

    जवाब देंहटाएं
  17. Hi Anamika ji , I just keep thinking about you every moment ...

    जवाब देंहटाएं
  18. बंद कर दिये हैं रोशनदान
    हर उम्मीद के ...
    तेरे आने की उम्मीद
    फिर क्यूँ रुकती नही है ?

    कितनी कसक है हरेक पंक्ति में...बहुत मर्मस्पर्शी भावपूर्ण अभिव्यक्ति..

    जवाब देंहटाएं
  19. इस ब्लॉग पर आकर अक्सर निराश होता हूं। शायद,कुछ कमी मेरी चाहत में ही है।

    जवाब देंहटाएं
  20. बंद कर दिये हैं रोशनदान
    हर उम्मीद के ...
    तेरे आने की उम्मीद
    फिर क्यूँ रुकती नही है ?

    इन पंक्तियों में जिंदगी कितनी मासूमियत से सिमट आई है. यही तो है अनुराग. खूबसूरत.

    जवाब देंहटाएं
  21. आपकी कविता हमेशा चकित करती है... शब्द स्वतः प्रवाह में बहते चलेजाते हैं.. और बहा ले जाते हैं पढ़ने वाले को अपने साथ..

    जवाब देंहटाएं
  22. तेरे आने की उम्मीद
    फिर क्यूँ रुकती नही है ?

    सुंदर अभिव्यक्ति...बेहतरीन पंक्तियाँ

    जवाब देंहटाएं
  23. मन में उठ रही भावों की तरंगों को
    आपने बहुत सुन्दर ढंग से अपनी रचना में पिरोया है!
    बढ़िया रचना!

    जवाब देंहटाएं
  24. चाहत है कि मैं भी
    तुझसे दगा करू,
    उफ्फ, 'तन्हा' की ये भी तो
    फितरत नही है .
    फितरत से अलग कौन जा सकता है भला ..
    बेहतरीन रचना

    जवाब देंहटाएं
  25. bhut sochta rha aaj din doobe nhi bcha loon
    bhut sochta rha hwa ko apne sath bha loon
    pr dono ne kiya vhijo un kee mjboori thi
    mujh ko bhi smjhaya main apne mn ko smjha loon

    जवाब देंहटाएं
  26. बहुत सुन्दर कविता.. हर पंक्ति बहुत खूब..
    हालात की कंटीली झाड़ियाँ
    छेदे जाती हैं वज़ूद को
    रिस रिस कर भी लहू
    जिस्म सांसे छोडता नही है .

    बहुत सुन्दर

    जवाब देंहटाएं
  27. हो जाते हैं क्यू आद्र नयन,
    मन क्यूं अधीर हो जाता है,
    स्वयं का अतीत लहर बन कर ,
    तेरी और बहा ले जाता है।
    बहुत ही सघन भावों से सिक्त कविता मन के संवेदनशील तारों को झंकृत कर गयी। धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  28. Aapke is blog k liye dhanywaad...
    bahut hi sundar rachna hai....

    Please Appreciate this blog and follow this...
    He needs the followers
    samratonlyfor.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  29. बहुत कोलाहल है
    जिंदगी के इर्द-गिर्द
    तन्हाइयों का तूफ़ान
    मगर भीतर का
    सिमटता ही नही है .
    bahut hi sundar ,dhero badhai .

    जवाब देंहटाएं
  30. रोशन कर दिया है
    असीम प्रकाश से
    मन के आंगन में
    पसरा अंधेरा मगर
    सिमटता ही नही है


    bahut khoob....

    जवाब देंहटाएं
  31. बंद कर दिये हैं रोशनदान
    हर उम्मीद के ...
    तेरे आने की उम्मीद
    फिर क्यूँ रुकती नही है ?

    उम्मीद से परिपूर्ण इस रचना के लिए बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  32. बहुत कोलाहल है
    जिंदगी के इर्द-गिर्द
    तन्हाइयों का तूफ़ान
    मगर भीतर का
    सिमटता ही नही है
    बेहतरीन सम्वेदनशील रचना के लिए बधाई

    जवाब देंहटाएं
  33. "मजबूरियों की आढ में
    दगा दिया है तूने मुझे
    तुझे निकाल, जिगर से बाहर करूँ
    ये भी तो मुझसे होता नही है"
    वाह.

    जवाब देंहटाएं
  34. घर के आंगन को

    रोशन कर दिया है
    असीम प्रकाश से
    मन के आंगन में
    पसरा अंधेरा मगर
    सिमटता ही नही है ...
    और ...
    बहुत कोलाहल है
    जिंदगी के इर्द-गिर्द
    तन्हाइयों का तूफ़ान
    मगर भीतर का
    सिमटता ही नही है .
    बहुत सुन्दर भाव प्रवाह !

    http://anandkdwivedi.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं