बुधवार, 29 जून 2011

मुझे पनाह दे दे ..















अपनी जिंदगी में मुझे  पनाह दे दे 
आगोश में  छुपा, मुझे जन्नत दे दे. 

प्यासी है रूह, कब से तेरी ही चाहत में 
अपने लबों की छुअन से इसे सागर दे दे .

मर न जाऊँ कहीं,  दुनियाँ के कहर से ...
कयामत आने से पहले शानों का सहारा दे दे.

अपनी जिंदगी में मुझे  पनाह दे दे 
आगोश में  छुपा, मुझे जन्नत दे दे. 

फितरत है दुनियाँ की तो ज़हर देने की 
उस से पहले, इन्ही हाथों से मुझे रुखसत दे दे..

बे-रब्त-ओ-मुतासिफ उम्मीदें डुबो दें ना कहीं 
तू  मुझे शब -ए-महताब सी रैईनाइयाँ दे दे..

अपने मसकान अपनी फासिल का सहारा दे दे...
आतिश-ए-दोज़ख़् मे जाने से पहले अब्र-ए-बहारा दे दे...

अपनी जिंदगी में मुझे  पनाह दे दे 
आगोश में  छुपा, मुझे जन्नत दे दे. 


शानों = shoulders    बे-रब्त = unfulfilled/adhuri    मुतासिफ = sorroful / dukh bhari

शब -ए-महताब = full moon light/poonam ki raat      रैईनाइयाँ  = beauty/sunderta

मसकान  = home/ghar     फासिल  = walls /diware

आतिश-ए-दोज़ख़्  = fires of narak / narak    अब्र-ए-बहारा  = clouds of spring/ khushi ke pal.

37 टिप्‍पणियां:

  1. फितरत है दुनियाँ की तो ज़हर देने की
    उस से पहले, इन्ही हाथों से मुझे रुखसत दे दे..

    बहुत सुंदर ..... गहन अभिव्यकि

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  2. लबों की छुअन से इसे सागर ..
    उम्दा खयाल .. अच्छी रचना

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  3. अपने मसकान अपनी फासिल का सहारा दे दे...
    आतिश-ए-दोज़ख़् मे जाने से पहले अब्र-ए-बहारा दे दे...
    भावपूर्ण रचना जो दिल की गहराइयों से निकली है और दिल को छूती है।

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  4. प्यासी है रूह, कब से तेरी ही चाहत में
    अपने लबों की छुअन से इसे सागर दे दे .

    खूबसूरत लफ्ज ,सुन्दर प्रस्तुति.
    मैंने भी अपनी नई पोस्ट 'चाहत'
    पर ही लिखी है.
    आपका हार्दिक स्वागत है.

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  5. मर न जाऊँ कहीं, दुनियाँ के कहर से ...
    कयामत आने से पहले शानों का सहारा दे दे.

    गहन भावाभिव्यक्ति..बहुत सुन्दर प्रस्तुति..

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  6. प्यासी है रूह, कब से तेरी ही चाहत में
    अपने लबों की छुअन से इसे सागर दे दे .

    मर न जाऊँ कहीं, दुनियाँ के कहर से ...
    कयामत आने से पहले शानों का सहारा दे दे.
    Bahut,bahut pyaree lageen ye pnktiyan!

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  7. ग़ज़ल इतनी सुन्दर लिखी है तो बहुत सुन्दर ही लिखना पड़ेगा!

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  8. अत्यंत भावपूर्ण एवं कोमलता से परिपूर्ण सुन्दर गज़ल ! मन को गहराई तक उद्वेलित कर गयी ! बहुत ही सुन्दर !

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  9. फितरत है दुनियाँ की तो ज़हर देने की
    उस से पहले, इन्ही हाथों से मुझे रुखसत दे दे..

    tareef ko shadb nahi mil rahe
    hats off to u

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  10. सम्पूर्ण रचना में केवल दर्द और प्यास का एहसास ,सुन्दर है प्रस्तुति

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  11. अपनी जिंदगी में मुझे पनाह दे दे
    आगोश में छुपा, मुझे जन्नत दे दे.
    अरे वाह वाह जी बहुत खुब सुरत..

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  12. अपनी जिंदगी में मुझे पनाह दे दे
    आगोश में छुपा, मुझे जन्नत दे दे.

    दिल की गहराइयों से निकली रचना. बहुत ही उम्दा.

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  13. दुनिया जहर दे दे उससे पहले इन हाथों से रुखसत कर दे ...
    गहन पीड़ा की अभिव्यक्ति !

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  14. बहुत खूब उर्दू की मिठास और और उसके खुलूस समेटे नायब ग़ज़ल......मुझे लगा यहाँ ये होना चाहिए था |

    रैईनाइयाँ - रानाइयाँ

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  15. प्यासी है रूह, कब से तेरी ही चाहत में
    अपने लबों की छुअन से इसे सागर दे दे


    behatareen!!!!!!!!!!

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  16. प्यासी है रूह, कब से तेरी ही चाहत में
    अपने लबों की छुअन से इसे सागर दे दे


    behatareen!!!!!!!!!!

    जवाब देंहटाएं
  17. अनामिका जी!! दर्द का इतना ख़ूबसूरत बयान... जी चाहता है दर्द से आशनाई कर लें!!

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  18. भावपूर्ण रचना जो दिल की गहराइयों से निकली है और दिल को छूती है।
    ,,,,,,,बहुत सुन्दर प्रस्तुति.

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  19. करीब १५ दिनों से अस्वस्थता के कारण ब्लॉगजगत से दूर हूँ
    आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,

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  20. फितरत है दुनियाँ की तो ज़हर देने की
    उस से पहले, इन्ही हाथों से मुझे रुखसत दे दे

    गहन भावाभिव्यक्ति,बहुत ही सुन्दर

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  21. बहुत सुंदर,खूबसूरत लफ्ज,गहन पीड़ा की अभिव्यक्ति

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  22. भावपुर्ण प्रस्तुति। शानदार रचना।

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  23. सुन्दर रचना |
    मेरे ब्लॉग में आपका सादर आमंत्रण है |

    http://pradip13m.blogspot.com/

    आये और अच्छा लगे तो जरुर फोलो करें |
    धन्यवाद् |

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  24. आस्था हो ,तो सब संभव ! चाहत भरी लगन ! सुन्दर

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  25. प्रेमियों की अपनी दुनिया है। सिवाय प्रेम के उसमे किसी और के लिए स्थान नहीं। संग प्यार रहे,मैं रहूं ना रहूं......

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  26. बहुत दिनों के बाद कुछ लिखा है आपने आज ... बहुत ही बेहतरीन ... प्रेम की चाहत लिए ...

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  27. Rajani gandha swet pusp tum mujme maadak sugandh bharo
    chhu lo madmaate adhro se
    chir sthai vasant karo

    jiwan k ye mohak pal
    kho n sakegi abhilasha
    pokhar,nadiya-sagar gahre
    fir bhi chatak kyu hai pyasa

    swati nakshatr ki nirmal bundo
    barso aviral anant baho
    chulop madmate adhro se
    chir sthai vasant karo

    sagar kitna gahra bolo
    baandhe kitni khaamoshi
    ye uska gambhiry nahi hai
    hai tumse milne ki madhoshi

    girti uthti shyamal palke
    jhil si aankhe neh se chhalke
    adhar tumhare ras ka sagar
    inko mere adhar pe rakh do
    man me mere sudharas bhar do

    purn chandr ki nirmal kirno
    mujhko shital chandan kar do
    rajni gandha swet pusp rum
    mujhme madak sugandh bharo
    chulo madmate adhro se
    chir sthai vasant karo.....

    जवाब देंहटाएं