मंगलवार, 4 अक्टूबर 2011

अश्रु आहड़





मैं ही शायद 
तुम्हें नहीं समझ पायी.
तुमने तो पहले ही दिन 
मुझे अश्रु  आहड़ भेंट किया था,
प्रणय निवेदन से अब तक  सतत  
भरती आई हूँ उसे 
तुम्हारी ही कृपा से .




लेकिन बहुत बार ऐसा भी हुआ 
कि तुमने उसमें  
अनुराग की सुगंध इतनी भरी   
कि मैं पागल हिरणी सी 
मृगतृष्णा लिए 
तुम्हारे पीछे 
आकुल, व्याकुल सी 
मंजिल से भटके 
पथिक की भाँती 
दौड़ती चली गयी.

लेकिन क्या मिला मुझे
इस मरुस्थल में ?
उस सुवास  को  
पा लेने की जिद्द 
और इस इन्तजार के 
घने जंगलों में 
छटपटाते हुए 
बेबस हो, मैं .....
अनवरत 
सूखती चली गयी .

आज भी मैं  
अपने सूख चुके 
जर्द अरमानों 
की तडतड़ाहट का 
शोर सुन - सुन कर 
तड़प उठती  हूँ.

आज तुम्हारे 
भेंट किये गए  
अश्रु आहड़ से 
अविरल प्रवाह को 
रोकने का 
ना कोई 
ओर मिलता है 
ना कोई छोर 
क्यूंकि ...
मुझमे इतना 
भी  साहस  
नहीं  कि
इस भेंट को 
अपने सूने पन
की समाधि पर 
होम कर दूँ.


35 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूबसूरत अहसास समेटे ये पोस्ट लाजवाब है |

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  2. नारी मन की पीडा को खूबसूरती से उभारा है।

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  3. इस कविता में आपकी गहरी संवेदना, अनुभव और अंदाज़े बयां खुलकर प्रकट हुए हैं। इसका शिल्प सलीक़ेदार, प्रखर और प्रभावी है। पढकर ऐसा लगता कि बहुत आत्मीयता से आप अपनी बात कह रही हैं। यह एक ऐसी संवेद्य कविता है जिसमें दर्द का मूक पक्ष भी बिना शोर-शराबे के कुछ कह कर पाठक को स्पंदित कर जाता है।

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  4. मुझमे इतना
    भी साहस
    नहीं कि
    इस भेंट को
    अपने सूने पन
    की समाधि पर
    होम कर दूँ.
    .

    bahut khub! sach me peeda dikh rahi hai....

    जवाब देंहटाएं
  5. मुझमे इतना
    भी साहस
    नहीं कि
    इस भेंट को
    अपने सूने पन
    की समाधि पर
    होम कर दूँ.

    ...बहुत मर्मस्पर्शी अहसास और उनकी प्रभावी अभिव्यक्ति..आभार

    जवाब देंहटाएं
  6. लेकिन क्या मिला मुझे
    इस मरुस्थल में ?
    उस सुवास को
    पा लेने की जिद्द
    और इस इन्तजार के
    घने जंगलों में
    छटपटाते हुए
    बेबस हो, मैं .....
    अनवरत
    सूखती चली गयी .

    अनानिका जी ,
    एक कहावत है - " मिर्चा जितना ही सूखता है उतना ही तिक्त होता है । " संवेदना से पूर्ण आपकी अभिव्यक्ति मन को एक सहज आत्मीय आनंद से प्रभावित कर गयी । जिंदगी में कभी - कभी ऐसा भी होता है । सघन भावों से भरी आपकी अभिव्यक्ति अच्छी लगी ।
    धन्यवाद ।

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  7. बहुत दर्द भरा है आपकी रचना में ! मरीचिकाओं के पीछे भागने का दर्द कैसा होता है आपकी प्रखर लेखनी ने जीवंत कर दिया है ! और मन को कहीं बहुत गहरे द्रवित कर गया है ! बड़ी आत्मीय एवं अन्तरंग सी लगी यह रचना ! सुन्दर लेखन के लिये बधाई स्वीकार करें !

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  8. अनुराग कि सुंगंध सब से तेज होती है जिससे आसानी से पीछा नहीं छूटता. भावपूर्ण प्रस्तुति.

    बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  9. इस भेंट को
    अपने सूने पन
    की समाधि पर
    होम कर दूँ.
    very nice

    जवाब देंहटाएं
  10. स्त्री मन की पीड़ा उकेरते शब्द..... गहन अभिव्यक्ति....

    जवाब देंहटाएं
  11. मृगतृष्णा तो यूँ भी भ्रम ही है , फिर इसका मातम क्यों ...
    बहरहाल, कविता में दर्द की सघन अनुभूतियां हैं !

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  12. बहुत मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति|
    आप को दशहरे की हार्दिक शुभकामनाएँ|

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  13. दर्द से भीगी कविता... दर्द के पंक से ही प्रेम का कमल खिलता है... आभार!

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  14. कुछ-कुछ कमी दोनों ओर से रही होगी।

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  15. गहरी संवेदना की सुंदर अभिव्यक्ति बधाई

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  16. अंतर्मन की पीड़ा को व्यक्त करती भावपूर्ण कविता|

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  17. NICE.
    --
    Happy Dushara.
    VIJAYA-DASHMI KEE SHUBHKAMNAYEN.
    --
    MOBILE SE TIPPANI DE RAHA HU.
    ISLIYE ROMAN ME COMMENT DE RAHA HU.
    Net nahi chal raha hai.

    जवाब देंहटाएं
  18. आज भी मैं
    अपने सूख चुके
    जर्द अरमानों
    की तडतड़ाहट का
    शोर सुन - सुन कर
    तड़प उठती हूँ.
    एहसास के बहुत करीबी स्वर ..
    शानदार अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  19. उम्दा रचना...बधाई.
    संवाद मीडिया के लिए रचनाएं आमंत्रित हैं...
    विवरण जज़्बात पर है
    http://shahidmirza.blogspot.com/

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  20. दिल के अरमां आंसुओं में बह गए,
    हम वफ़ा करके भी तनहा रह गए!!
    भग्न ह्रदय से रक्त का रिसाव प्रायः नयन से अश्रु के रिसाव के रूप में प्रकट होता है और वह आपकी इस कविता में पूर्णतया अभिव्यक्त हो रहा है!!

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  21. भावभरी खुबसूरत कविता

    विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  22. लेकिन बहुत बार ऐसा भी हुआ
    कि तुमने उसमें
    अनुराग की सुगंध इतनी भरी
    कि मैं पागल हिरणी सी
    मृगतृष्णा लिए
    तुम्हारे पीछे
    आकुल, व्याकुल सी
    मंजिल से भटके
    पथिक की भाँती
    दौड़ती चली गयी..behtarin panktiyan..sadar badhayee aaur amantran ke sath

    जवाब देंहटाएं
  23. लेकिन बहुत बार ऐसा भी हुआ
    कि तुमने उसमें
    अनुराग की सुगंध इतनी भरी
    कि मैं पागल हिरणी सी
    मृगतृष्णा लिए
    तुम्हारे पीछे
    आकुल, व्याकुल सी
    मंजिल से भटके
    पथिक की भाँती
    दौड़ती चली गयी..behtarin panktiyan..sadar badhayee aaur amantran ke sath

    जवाब देंहटाएं
  24. लेकिन बहुत बार ऐसा भी हुआ
    कि तुमने उसमें
    अनुराग की सुगंध इतनी भरी
    कि मैं पागल हिरणी सी
    मृगतृष्णा लिए
    तुम्हारे पीछे
    आकुल, व्याकुल सी
    मंजिल से भटके
    पथिक की भाँती
    दौड़ती चली गयी..behtarin panktiyan..sadar badhayee aaur amantran ke sath

    जवाब देंहटाएं
  25. I know i am so late to read this post. but thank you for this excellent information. I hope to get a lot of good information like this here

    जगजीत सिंह आधुनिक गजल गायन की अग्रणी है.एक ऐसा बेहतरीन कलाकार जिसने ग़ज़ल गायकी के सारे अंदाज़ बदल दिए ग़ज़ल को जन जन तक पहुचाया, ऐसा महान गायक आज हमारे बिच नहीं रहा,
    उनके बारे में और अधिक पढ़ें : जगजीत सिंह

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  26. anamika ji
    dil kebhige hue jajbaaton ko aapne bahut hi behatareen shabdon me piroya hai.
    aisa lagta hai ki main bhi iske charon or bhatak rahi hi.
    man ko chhoti hui anuthi prstuti
    badhai
    poonam

    जवाब देंहटाएं
  27. आज भी मैं
    अपने सूख चुके
    जर्द अरमानों
    की तडतड़ाहट का
    शोर सुन - सुन कर
    तड़प उठती हूँ.

    wah wah...bahut sundar..

    जवाब देंहटाएं