सोमवार, 14 नवंबर 2011

लौट आओ.. मेरे देवता !



मैंने सुना था 
कि प्रेम सबके 
भीतर ही है
उसी, स्वयं के प्रेम  को 
पाने और तृप्त होने के लिए 
एक मूर्ती का निर्माण किया था.

अपने असीम आनंद और 
विश्वास के साथ 
इस अराध्यदेव की 
ह्रदय -वाटिका में 
प्रतिष्ठा की थी.

प्रेमाश्रुओं के स्नान 
और अनुराग की धूप से 
उपासना की थी.
उपास्यदेव से  
तादाम्य बनाए रखने  के लिए 
श्रद्धा फूलों की वर्षा भी 
स्थिर मन से 
करती रही.

लेकिन मेरा दुर्भाग्य से 
निरंतर संघर्ष रहा 
और तेरी उदासीनता व् 
अकृपा दुराग्रह बन कर 
मेरे प्रेममयी जीवन पर 
काले मेघ सी  मंडराने लगीं . 

सुखद स्मृतियाँ जलने लगी हैं.
मेरा खोया हुआ प्रेम 
अनंत विरह का 
महासागर हो गया है.
मेरा मन मंदिर 
सूना, प्राणहीन हो चला है .
मैं स्वयं  भग्न-हृदया,
एक उजड़ा हुआ 
भूतहा खंडर सी हो गयी  हूँ.

मैं तुझ में समाना चाहती हूँ,
तेरी आसक्ति  में घुलना चाहती  हूँ,
मेरी साधना तेरे चरण-स्पर्श 
की ओर खींचती है.

हे देव ! मेरे मन के 
नयनों में आ जाओ.
मेरे ह्रदय में स्पंदित हो जाओ.
प्रेम और तृप्तता को
अभीष्ट कर,
मुझे प्रकाश दो 
लौट आओ..
लौट आओ..
मेरे देवता !

52 टिप्‍पणियां:

  1. मैं तुझ में समाना चाहती हूँ,
    तेरी आसक्ति में घुलना चाहती हूँ,

    surrender in totality is the peak of love

    very very nice

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  2. सदा के लिए समर्पित हो जाने का भाव .... बहुत सुंदर

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  3. सम्पूर्ण समर्पण की अभिलाषा से प्रियतम का आह्वान करती आपकी यह रचना अलौकिक दुनिया में ले जाती है ! बहुत ही सुन्दर लिखा है ! बालदिवस की शुभकामनायें !

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  4. समर्पण प्रेम का सांध्रता को गहरा देता है।

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  5. bhtrin andaaz bhtrin soch bhtrin alfaaz maal me piro diye hain bdhaai ho .akhtar khan akela kota rajsthan

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  6. सादर अभिवादन!

    आस्था और आशावादिता से भरपूर स्वर इस कविता में मुखरित हुए हैं।

    भावावेग की स्थिति में अभिव्यक्ति की स्वाभाविक परिणति दीखती है।

    कुछ आध्यात्मिक तत्व के भी दर्शन हो रहे हैं जहां ‘उसके’ पाने की चाह प्रबल है। तुलसी दास जी ने कहा है,

    मनि बिनु फनि जिमि जल बिनु मीना ।
    मम जीवन तिमि तुम्‍हहिं अधीना ।


    जैसे मणि के बीना सांप और जल के बिना मछली नहीं रह सकती, वैसे ही मेरा जीवन आपके अधीन रहे, आपके बिना न रह सके ।

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  7. प्यार की चाह किसे नहीं होती , काश सब कुछ हमारे मन का होता !
    शुभकामनायें आपको !

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  8. प्यार की चाह किसे नहीं होती , काश सब कुछ हमारे मन का होता !
    शुभकामनायें आपको !

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत अच्छी भावाभिव्यक्ति ...

    वैसे इंसान कितना स्वार्थी है न ..भगवान की पूजा - अर्चना भी कुछ पाने की आस में ही करता है ..

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  10. समर्पण-भाव की बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !

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  11. सदायें सुन ली जाती है . ह्रदय तक जाती सदा..

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  12. हे देव ! मेरे मन के
    नयनों में आ जाओ.
    मेरे ह्रदय में स्पंदित हो जाओ.
    प्रेम और तृप्तता को
    अभीष्ट कर,
    मुझे प्रकाश दो
    लौट आओ..
    लौट आओ..
    मेरे देवता !
    Phir ek baar alfaaz kee mohtaaji mahsoos kar rahee hun.....tum nishabd kar detee ho aur shikayat ye ki mai kuchh kahtee nahee!!:);)

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  13. समर्पण और सामीप्य, आस और आसक्ति!!!!!!
    लाजवाब

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  14. वाह ...बहुत खूब कहा है आपने ...।

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  15. सम्पूर्ण समर्पण का भाव .... बहुत सुंदर

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  16. सम्पूर्ण समर्पण ही तो प्रेम की पराकाष्ठा है...बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति..

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  17. समर्पण का भाव भक्ति का मूल है!
    सुन्दर रचना!

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  18. ऊपर से तीसरे चित्र पर चटका लगायें आपको आपकी पोस्ट देखेगी ... हर चित्र में एक पोस्ट का लिंक छिपा हुआ है ...

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  19. सम्पूर्ण समर्पण ..बहुत सुन्दर भाव...

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  20. मन का हो तो अच्छा, न हो तो और भी अच्छा!! आपके चिर-परिचित अंदाज़ में लिखी भावपूर्ण रचना!!

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  21. बहुत सुंदर भाव।

    गजब की अभिव्‍यक्ति।
    आभार....

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  22. हे देव ! मेरे मन के
    नयनों में आ जाओ.
    मेरे ह्रदय में स्पंदित हो जाओ.
    प्रेम और तृप्तता को
    अभीष्ट कर,
    मुझे प्रकाश दो
    लौट आओ..
    लौट आओ..
    मेरे देवता !

    मन को छूती हुई सुंदर रचना !!

    ,मेरी साधना
    तेरे चरण-स्पर्श की ओर खींचती है
    क्या बात है !!
    वाह !

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  23. समर्पण-भाव की बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !

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  24. समर्पण ही मूल है अध्यात्म का.......बहुत सुन्दर पोस्ट|

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  25. प्रेम में विरह का बहुत बड़ा स्थान है... विरह के अनुपम भावों से युक्त कविता!

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  26. ये सच अहि की प्रेम अपने अंदर ही है ... पर किसी का स्पर्श चाहिय उसमें जन डालने के लिए ... सुन्दर रचना है ...

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  27. बहुत भावमयी, अंतरस्पर्शी रचना...
    सादर बधाई...

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  28. प्रेमाश्रुओं के स्नान
    और अनुराग की धूप से
    उपासना की थी.
    उपास्यदेव से
    तादाम्य बनाए रखने के लिए
    श्रद्धा फूलों की वर्षा भी
    स्थिर मन से
    करती रही.

    बहुत सुंदर

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  29. टूट के चाहना बेतरह तोड के रख देता है... मगर अच्छी बात ये है कि इस से इस किस्म कि कवितायें जन्म लेती हैं.ेहद पसंद आई, ये बात इस्लिये ज़ोर दे कर कह रही हूं जिससे आप विश्वास कर पायें कि आप वो लडकी नहीं जिसकी मैं तारीफ नहीं करती.. हे हे हे!!!
    :D

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  30. प्रेम में डूब कर लिखी गई कविता...अदभुद समर्पण...

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  31. सम्पूर्ण समर्पण ....अच्छी भावाभिव्यक्ति ...बधाई!!

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  32. अनामिका जी बहुत सुंदर रचना .......

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  33. बहुत सुन्दर एवं भावपूर्ण रचना !
    आभार आपका ..
    मेरी नई पोस्ट " बेबसी की आँधी " के लिए पधारे आपका हार्दिक स्वागत है !

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  34. कविता के साथ-साथ ब्लॉग भी बहुत सुन्दर लगा

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  35. प्रेम और समर्पण की भावमयी सुंदर रचना....
    मेरे पोस्ट पर भी आइये ...

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  36. सुंदर कविता, मन की भटकन से छुटकारा पाने की अच्छी जुगाड़। बधाई।

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  37. Aap apni kalam, bhav, Anubhav aur shabd kya mujhe udhar hi sahi de deti to kitna Achha hota !
    Your poem is your heart in which every reflection of your inner feeling has got its due importance. Heart touchig post. Thanks.

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  38. हे देव ! मेरे मन के
    नयनों में आ जाओ.
    मेरे ह्रदय में स्पंदित हो जाओ

    SUNDAR BHAVABHIVYKTI.

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  39. समर्पण-भाव की बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.....

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  40. बहुत सुन्दर कविता....ऐसी प्रार्थना तो ईश्वर भी नहीं ठुकरा सकेगा...
    आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा.बधाई.

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