सोमवार, 6 फ़रवरी 2012

मौन डस जाता है रिश्तों को ....





विस्फारित नेत्रों से मन 
टुकुर टुकुर 
देख रहा है ...
पाँव पसारते 
सूनेपन को 
कि.....कैसे 
प्यार के 
अटूट बंधन में  
बंधे रिश्ते भी 
उदासीन हो गए हैं.

आज  कोई चाहत के भाव 
उत्तेजित ही नहीं होते,
एक तरफ 
हलचल हो भी तो क्या ...?
दूसरी तरफ तो 
फैली निस्तब्धता है.

संवाद, विवाद 
सब धाराशायी हो गए हैं.
शिकायतों का चलन भी 
श्वास-हीन हो चला है.

अंत में फिर वही मौन 
डस जाता है रिश्तों को 
यही अंतिम पड़ाव है 
तो क्यों बनाये....संवारे
जाते हैं रिश्ते ?

बेघर कर बादल
सोचता ही नहीं
उस बूँद का हश्र ,
धरा से लिपटे...रोते...
पीले पत्तों की व्यथा 
जानना चाहता ही नहीं
विशाल वृक्ष .

रिश्तों के सारे बंधन 
नकार ही दिए जाते हैं
तो फिर.........
घृणा का भी रिश्ता 
कहाँ रह जाता है !

और.....तब.....

मौन को ही 
अंगीकार करना पड़ता है
अंततः .... 

तो ....

फिर रिश्तों में 
डूबना क्यों....?
मोह - माया में 
फंसना क्यों....?
निर्मोही ही भला 
फिर श्याम सा !
कठोर ही अच्छा 
फिर राम सा !!


45 टिप्‍पणियां:

  1. रिश्तों के मायने ढूंढता गहरा विश्लेषण, बहुत सराहनीय रचना! सधन्यवाद.

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  2. निर्मोही श्याम सा ! कठोर राम सा

    क्या खूब बिम्ब , बेहतरीन रचना रिश्तों को बयां करती

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  3. बिम्ब युक्त और रिश्तों को खंगालती रचना

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  4. संवाद स्थापित रहे, न जाने कितनी पर्तें घुल जाती हैं उसमें आशंका की..

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  5. बेघर कर बादल
    सोचता ही नहीं
    उस बूँद का हश्र ,
    धरा से लिपटे...रोते...
    पीले पत्तों की व्यथा
    जानना चाहता ही नहीं
    विशाल वृक्ष .

    बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना ! संवादहीनता की स्थिति सचमुच बहुत कष्टप्रद होती है और रिश्तों को कमज़ोर बन देती है ! अति सुन्दर !

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  6. रिश्तों को कई आयाम देती हुई प्रवाहमयी अभिव्यक्ति सोचने को बाध्य कर रही है ..

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  7. निर्मोही श्याम से रिश्ता बना कर,
    कठोर राम को दिल में बसा कर जो देखा...तो पाया कि बस वही तो निभाना जानते हैं....बहुत सुंदर !

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  8. रिश्तों के सारे बंधन
    नकार ही दिए जाते हैं
    तो फिर.........
    घृणा का भी रिश्ता
    कहाँ रह जाता है !
    ..........तभी तो रह जाता है मौन !

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  9. रिश्ते बहुत ज़रूरी हैं ,और उन्हें निभाने को संवाद आवश्यक.
    अति सर्वत्र वर्जयेत्- मौन की भी

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  10. अंत में फिर वही मौन
    डस जाता है रिश्तों को
    यही अंतिम पड़ाव है
    तो क्यों बनाये....संवारे
    जाते हैं रिश्ते ?

    बहुत ही सुन्दर और गहनता लिए हुए ये पोस्ट लाजवाब है |

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  11. रिश्तों के बिभिन्न पहलुओं को एक कविता में समेटना एक दुरूह कार्य है जो आपने आसानी से कर दिखाया है.

    अभिनन्दन.

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  12. अंत में फिर वही मौन
    डस जाता है रिश्तों को
    यही अंतिम पड़ाव है
    तो क्यों बनाये....संवारे
    जाते हैं रिश्ते ?

    Sach! Yahee jeewan ka anubhav kahta hai!

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  13. कई बार पढ़ी हर बार एक नया ही अर्थ बताई है रचना...... रिश्तो का एक मौन सच.....

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  14. सच है..मौन खा जाता है रिश्ते को घुन की तरह...

    प्यार ना हो..तकरार सही...
    मगर कुछ तो हो..

    बहुत सुन्दर रचना.
    सस्नेह.

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  15. बेघर कर बादल
    सोचता ही नहीं
    उस बूँद का हश्र
    ...truelly awesome

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  16. अंत में फिर वही मौन
    डस जाता है रिश्तों को
    यही अंतिम पड़ाव है
    तो क्यों बनाये....संवारे
    जाते हैं रिश्ते ?

    रिश्ते तो मौन से भी परे रहते हैं ...
    लाजवाब ... मौन को व्यखित करती रचना ...

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  17. रिश्तों के बंधन को ब्यान करती बेहतरीन रचना अनिमाका जी बहुत खूब लिखा है आपने ...समय मिले कभी तो ज़रूर आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    http://mhare-anubhav.blogspot.com/

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  18. बेघर कर बादल
    सोचता ही नहीं
    उस बूँद का हश्र ,
    धरा से लिपटे...रोते...
    पीले पत्तों की व्यथा
    जानना चाहता ही नहीं
    विशाल वृक्ष .

    सुन्दर शब्दों का संगम!

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  19. निश्चय ही,जो हमने चाहा,वह नहीं मिल सका है। निश्चय ही,जो विकल्प अब तक रहे हैं,आगे उनसे बात नहीं बनेगी। निश्चय ही,संभावना अभी समाप्त नहीं हुई है नई पहल की!

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  20. बादल तो खुद का अस्तित्व ही खो देता है बूंद बूंद में और विशाल वृक्ष भी लगये रहता है कलेजे से पत्ते को ..वो तो पत्ता ही है जो छोड़ देता है साथ कुछ नए पाने की चाह में , पर हो जाता है धूल धूसरित .
    निष्कर्ष बहुत सटीक निकाला है .. लेकिन राम और श्याम बनना भी तो मुमकिन नहीं ...

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  21. प्रायः इकरंगी होती जा रही काव्य-भाषा के बीच आपकी भाषा नया अर्थ और अर्थ सौंदर्य लेकर आई है। कविता में आपकी गहरी संवेदना, अनुभव और अंदाज़े बयां खुलकर प्रकट हुए हैं। यही कह सकता हूं कि आप, मानवीय भावनाओं और व्यवहार के विस्तृर दायरे की अच्छी समझ रखती हैं।

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  22. बहुत सुन्दर रचना, ख़ूबसूरत भावाभिव्यक्ति , बधाई.

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  23. बेहद बेहद बेहद बेहतरीन रचना ..वाह कितनी बारिक नजर और अहसास को आपने शब्दों का जामा पहनाया है... उम्दा

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  24. naye blog par aap ko aamntrn hai,pdhaariyega....

    gauvanshrakshamanch.blogspot.com

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  25. सुन्दर रचना ,लाजवाब प्रस्तुति ..

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  26. 'श्‍याम सा निर्मोही, राम सा कठोर', बहुत खूब.

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  27. फिर रिश्तों में
    डूबना क्यों....?
    मोह - माया में
    फंसना क्यों....?
    निर्मोही ही भला
    फिर श्याम सा !
    कठोर ही अच्छा
    फिर राम सा !!
    gahra vishlehsan kiya aapne rishton ka bahut bahut badhai
    rachana

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  28. अंत में फिर वही मौन
    डस जाता है रिश्तों को
    यही अंतिम पड़ाव है
    तो क्यों बनाये....संवारे
    जाते हैं रिश्ते ?

    रिश्तों को बनाए रखना एक बहुत बड़ी बात होती है । रिश्ते तो आसानी से बन जाते हैं पर इन्हे जीवन भर बनाए रखना बड़ा ही कठिन कार्य है । प्रस्तुति अच्छी लगी ।.मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहता है । धन्यवाद ।

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  29. अनामिका जी सच का दर्पण दिखा दिया है आपने ...अंत में मौन को ही अंगीकार करना पड़ता है ...

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  30. सुन्दर भाव....बेहतरीन अभिव्यक्ति.....
    कृपया इसे भी पढ़े-
    नेता- कुत्ता और वेश्या (भाग-2)

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  31. जिनांक 15-2-2012 के बाद एक बार फिर आपको अशांत करने के लिए उपस्थित हो रहा हूँ । बहुत देर कर दी आपने । मरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

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  32. वाह दर्द को परिभाषित करने में सफल रचना बहुत सुन्दर |

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  33. milna hai sanyog bichdna hai hakeekat....ye jindagi bhee insaan se leti hai kya kya keemat...prikriti ke niyamon par bhavnaon ka jor nahi chalta...maun jindgi kee servoccha awastha hai...aapki sambedansheelata ko naman..sadar badhayee aaur amaantran ke sath

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  34. आपके इस पोस्ट पर अपनी प्रतिक्रिया दे चुका हूं । मेरे नए पोस्ट "भगवती चरण वर्मा" पर आपको आमंत्रित करता हूं । धन्यवाद ।

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  35. कहाँ से लिखूं कहाँ पर छोडूँ....
    सोचा कि कुछ पंक्तियाँ उद्दत करूँ...
    कुछेक पर नज़र टिकाई...फिर दौड़ते दौड़ते अंत में ही आ टिकी......
    कहने का मतलब यही है कि मेरे बस के बाहर है कुछ पंक्तियों पर टिकना...
    पूरी की पूरी रचना ही लाजवाब है...
    कुछ को सेलेक्ट करूँ तो भाव टूटते से लगते हैं......
    आज कल के परिवेश में...और अपने इर्द-गिर्द काफी कुछ ऐसा या बिलकुल ही ऐसा ही देखती हूँ ...वह भी खुली आँख से.....!!
    पूरी तरह सहमत हूँ...आपके भाव को पकड़ते हुए...!!
    रिश्तों की गहनता और छिछलापन सब सामने आता जाता है समय समय पर......!!
    रचना की तारीफ करुँगी...और बहुत करुँगी...शब्दों का चयन एकदम सटीक.....
    लेकिन खूबसूरत कहूँ...???
    शायद .....!!

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  36. बहुत अच्छी प्रस्तुति,
    अनामिका जी,आप ने तो मेरे पोस्ट पर आना ही छोड़ दिया..आइये स्वागत है....

    MY NEW POST ...काव्यान्जलि ...होली में...

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  37. आपकी टिप्पणी मेरे बेटे की कविता "life is not always beautiful" के सन्दर्भ में-
    शुक्रिया अनामिका जी...
    सच कहा आपने..भीतर से बड़ा अशांत और भावुक भी है वो..उलझता है अपने विचारों से अक्सर..
    और घर में बेटे के अलावा हमारे पतिदेव भी लिकते हैं :-)उनकी कविताओं के अनुवाद भी मैंने किये हैं...
    I'M WALKING ALONE......तनहा है ये सफर..
    आप वक्त मिले तो पढियेगा.
    सादर.

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