सोमवार, 17 सितंबर 2012

अकेला पन




जन्म से ही 
अकेलेपन से बचता इंसान  
रिश्तो में पड़ता है.
बंधनों में जकड़ता है.

कुछ रिश्ते धरोहर से मिलते  
कुछ को  अपनी ख़ुशी के लिए
खुद बनाता है 

कुछ दोस्त  बनाता है
उम्मीदें  बढाता है
कि वो अपनत्व पा सके 
अकेलेपन से पीछा छुड़ा सके.

लेकिन जब उम्मीदें 
टूटती हैं 
शिकायतों का 
व्यापार चलता है 
फिर द्वेष घर बनाता है

हर रिश्ता चरमराता है
दुख और पीड़ा  से 
इंसान छटपटाता है.

तब एक वक़्त ऐसा आता है
हर जिरह से इन्सान हार जाता है.
संवाद मौन धारण कर 
गुत्थियों को उलझाता है 

बंधन मुक्त हो इंसान 
अकेला पन चाहता है.
विरक्ति की ओर अग्रसर हो
शून्य में चला जाता है 

तब .....

तब न तेरी न मेरी
सब ओर फैली हो 
मानो शांत, श्वेत 
धवल चांदनी सी
बस ...
बस वही पल 
जो शीतलता दे जाता है
वही जीना साकार 
हो  जाता है 

अंत में तो 
इंसान अकेला ही रह जाता है
कोई दोस्त, कोई साथी 
काम न आता  है.
फिर क्यों न अकेलेपन को ही 
अपनाता है

36 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर जीवन दर्शन...
    मगर इंसान बड़ा लालची होता है....जितनी भी चोट खाए....हार नहीं मानता...
    सादर
    अनु

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  2. इंसान अकेला कहाँ है ....हर समय घिरा है ....प्रकृति से ,भावों से ,विचारों से ,रिश्तों से ,आकांक्षाओं से .....
    पूरी हों न हों वो अलग बात है ....!!
    गहन भाव से लिखी रचना ....एक सोच दे गयी ...
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति अनामिका जी ...!!शुभकामनायें ...!!

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  3. अकेला रहना मनुष्य के स्वभाव में नहीं है ,उसके भाव-विचार ,सुख-दुख सब औरों के संपर्क से ही संभव हैं ,और आत्माभिव्यक्ति भी औरोंके ही लिये तो !

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  4. मजबूरी में अपनाए अकेलेपन को इंसान की इच्छा नहीं कहना चाहिए ... दरअसल इंसान हमेशा दोस्तों और अपनों से गिरा रहना चाहता है ...
    सोचने को मजबूर करती पोस्ट ..

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  5. अच्छे मित्रों को पाना कठिन है , वियोग कष्टकारी और भूलना असम्भव होता है। अकेलेपन में ये बातें बहुत सालती हैं।

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  6. बेहतरीन प्रस्तुति
    अरुन = www.arunsblog.in

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  7. अंत में तो
    इंसान अकेला ही रह जाता है
    कोई दोस्त, कोई साथी
    काम न आता है.
    फिर क्यों न अकेलेपन को ही
    अपनाता है


    जीवन दर्शन से भरपूर बहुत गंभीर रचना....

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  8. अकेलापन और रिश्ते ...नजरिया अपना अपना हैं

    पानी का ग्लास आधा भरा या आधा खाली ..ये सोच अपनी अपनी हैं ...सादर

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  9. अरे वाह ! क्या बात है आज तो आप गहन जीवन दर्शन की मीमांसा में व्यस्त हैं ! अच्छे दोस्तों की जीवन में सभी को ज़रूरत होती है ! उनके साथ सुख दुःख बाँट कर इंसान खुद को बहुत अमीर बना लेता है ! ज़रा उस इंसान की घुटन के बारे में सोचिये जिसके पास कहने सुनने के लिये कोई नहीं होता ! वह खुद को कितना निर्धन समझता होगा ! बहुत सुन्दर रचना !

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  10. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार १८/९/१२ को चर्चा मंच पर चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका चर्चा मच पर स्वागत है |

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  11. सब कुछ दूसरे पर निर्भर नहीं होता , बहुत कुछ स्वयं पर भी निर्भर होता है .... स्वयं से बेहतर कोई दोस्त नहीं ...

    रिश्तों के फलसफे को कहती अच्छी रचना

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  12. तो फिर क्यों न अकेलापन को अपनाता है ...
    क्योंकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है , अकेला नहीं रह सकता :)
    दोस्तों और रिश्तेदारों की अपेक्षा से घबराये तो कई बार अकेलापन ही ठीक लगता है !
    अच्छी कविता !

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  13. इंसान अकेला ही आया है और अकेला ही जाएगा . ये शाश्वत सत्य है और इसी से घबरा कर उसको रिश्तों की जरूरत होती है. फिर भी कभी कभी बहुत तनाव में या फिर परेशानी में वो अकेलेपन को ही खोजता है. क्योंकि वह ही उसका शुरू से लेकर अंत तक का साथी बनता है.

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  14. kuch sochane par mazbur karati rachana....lekin kisi ko bhul kar jina kathin hai didi......sadar

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  15. इंसान अकेला आया और और अकेला ही जायेगा, परन्तु ताजिंदगी अकेलापन उसे काटने दौड़ता है.

    सुंदर विषय और अच्छी रचना के लिये बधाई अनामिका जी.

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  16. अंत में तो
    इंसान अकेला ही रह जाता है
    कोई दोस्त, कोई साथी
    काम न आता है.
    फिर क्यों न अकेलेपन को ही
    अपनाता है

    ....जीवन का यह सत्य अगर इंसान पहले ही समझ जाता तो यह अकेलापन इतना नहीं सालता..बहुत गहन चिंतन...

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  17. एक-एक पंक्ति छू रही थी.. ऐसा लगा जैसे मेरी ही भावनाएं हों.. बहुत अच्छा लगा पढ़कर.. आभार
    सादर
    मधुरेश

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  18. गहन भाव से लिखी रचना.अकेलेपन में ये बातें अक्सर सालती हैं।

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  19. इंसान नाम का चीज बहुत ही आत्मीयता लिए होता है। कुछ विषम परिस्थितियां ही उसे एकाकी कर जाती है ।जड़ इंसान ही अपने को अकेला महसूस करता है जबकि वह अकेला नही रहता है। बहुत सुंदर भाव। मेरे नए पोस्ट पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा ।धन्यवाद।

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  20. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  21. अंत में तो
    इंसान अकेला ही रह जाता है
    कोई दोस्त, कोई साथी
    काम न आता है.
    फिर क्यों न अकेलेपन को ही
    अपनाता है

    anoothi rachna man ke kareeb hal ke saath le jaati hui. Behtareen!!

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  22. अकेलापन ही ज़िन्दगी की सचाईयों से हमें रू-ब-रू कराता है।

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  23. फिर क्यों न अकेलेपन को ही
    अपनाता है....

    मन से तो वह इस स्थिति को नहीं चाहता

    पर आपने कविता में सही स्थिति को अभिव्यक्त किया है

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  24. बहुत खूब ...
    क्या लेकर आया क्या लेकर जायेगा ..तू चल अकेला चल अकेला ....

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  25. अंत में तो
    इंसान अकेला ही रह जाता है
    कोई दोस्त, कोई साथी
    काम न आता है.
    फिर क्यों न अकेलेपन को ही
    अपनाता है
    khoob kaha
    rachana

    जवाब देंहटाएं
  26. सही कहा है अंत में इंसान अकेला ही रह जाता है यही जीवन का अंतिम सच है बहुत अच्छी अभिव्यक्ति बधाई आपको

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  27. .

    अच्छी चिंतनपरक रचना है
    एक वक़्त ऐसा आता है
    हर जिरह से इन्सान हार जाता है.
    संवाद मौन धारण कर गुत्थियों को उलझाता है
    बंधन मुक्त हो इंसान अकेला पन चाहता है.

    विरक्ति की ओर अग्रसर हो शून्य में चला जाता है


    भयावह स्थितियां हैं … घर-परिवार में इनका निदान है लेकिन… … …


    भावनाओं के उतार-चढाव की अच्छी रचना … … …
    साधुवाद !

    शुभकामनाओं सहित…
    राजेन्द्र स्वर्णकार

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  28. बहुत सुन्दर ही ब्लॉग है..!!

    रचना और भी खूबसूरत..!!

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  29. जवानी में जो, अकेलापन नही सुहाता है
    बुढ़ापा वही अकेलापन अपने साथ लाता है...
    गहन अहसास ....

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  30. बहुत उत्कृष्ट अभिव्यक्ति.हार्दिक बधाई और शुभकामनायें!
    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |


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