मंगलवार, 21 जून 2011

फिर वही गम फिर वही तन्हाई है...

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दोस्तों, सबसे पहले तो उन सब दोस्तों को धन्यवाद जो मुझे  और मेरे लेखन को निरंतर याद करते रहे और मुझसे बार बार आने के लिए आग्रह करते रहे. आप सब का प्यार मुझे एक बार फिर यहाँ आपके बीच  खींच लाया है.  कुछ निजी व्यवस्तताओं की वजह से भी आप सब से दूर रहना पड़ा... अब कोशिश करुँगी कि ये  आपसी भागीदारी बनी रहे.  एक लम्बे अंतराल के बाद आज आपकी महफ़िल में अपनी कलम के उसी पुराने दर्द भरे रंग के साथ हाज़िर हूँ....

















फिर वही गम फिर वही तन्हाई है

हँसते हँसते  फिर मेरी आँख भर आई है..

तुझसे मिलना भी एक इत्तफाक था..
मिल के बे-इंतहा चाह लेना भी मेरा जुनून था 

तेरी बाहों में मैने हर सूँ  सुकून  पाया था
गम पिघल पिघल के तेरे  कन्धों  पे बह आया था

हर अश्क  पोंछ तूने भी मुझे सीने से लगाया था
गुमनामी की इस ज़िंदगी को तूने बखूबी संवारा था

तूने भी चाहा था बेशुमार मुझे..
मेरे बेचैन जज़्बातो को तूने ही सहलाया  था

मेरी ज़िंदगी की मगर बदनसीबियाँ तो देख..
इन लकीरों  ने हर लम्हा आतिश-ए-दोजख बनाया है..

ज़िंदगी मेहरबान होकेर भी ना-गवार हुई..
अरमान महके फिर भी ज़िंदगी जल के खाक हुई..

हर शब पे गम-ज़दा हो ज़िंदगी को खोती हूँ..
लिपट के अपनी लाश से आज मैं रोती हूँ.

फिर वही गम फिर वही तन्हाई है
हँसते हँसते  फिर मेरी आँख भर आई है..!!


54 टिप्‍पणियां:

  1. उफ! इतना दर्द कैसे समेट लेती है आप। क्या तारीफ करू इसकी। कुछ कहना भी सुरज को दिया दिखाने के समान होगा।

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  2. फिर वही गम फिर वही तन्हाई है
    हँसते हँसते फिर मेरी आँख भर आई है..!!

    क्या बात..... गहन अभिव्यक्ति लिए हैं सभी पंक्तियाँ

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  3. nihaya hi ehsason se bhari hui pankityan hain khas baat ye hai ki,saral shabdon mein shandaar abhivyakti,shabkosh dikhane se adikh bhavnayon ka pradarshan,nisandeh apki sadgi or shresthta ka parichayak hai.

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  4. ज़िंदगी मेहरबान होकेर भी ना-गवार हुई..
    अरमान महके फिर भी ज़िंदगी जल के खाक हुई..

    आपने भावनाओं के उफान को अति सुन्दर प्रकार से अभिव्यक्त किया है.हर शब्द में कचोट सी है जो दिल को छूती है.आभार.

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  5. हर शब पे गम-ज़दा हो ज़िंदगी को खोती हूँ..
    लिपट के अपनी लाश से आज मैं रोती हूँ.
    बहुत ही संजीदा शायरी की है आपने , मुबारक हो

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  6. हर शब पे गम-ज़दा हो ज़िंदगी को खोती हूँ..
    लिपट के अपनी लाश से आज मैं रोती हूँ.
    ग़म की इंतहां है।
    दर्द जैसे नज़्म बन कर बह गए हैं। मन के भावों को आपने जो अभिव्यक्ति दी है वह मन को गहरे तक भिंगा गई।

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  7. दर्द ने शब्दों में बह कर नज़्म का रूप ले लिया है ... मार्मिक रचना ...आभार

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  8. कभी हंसते हुए गीत भी लिखा करो...
    शुभकामनायें आपको !

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  9. हर शब पे गम-ज़दा हो ज़िंदगी को खोती हूँ..
    लिपट के अपनी लाश से आज मैं रोती हूँ.

    फिर वही गम फिर वही तन्हाई है
    हँसते हँसते फिर मेरी आँख भर आई है..!!
    Na jane aisa dard ham kitne apne kaandhon pe dhote rahte hain!
    Behad sundar rachana...

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  10. हर शब पे गम-ज़दा हो ज़िंदगी को खोती हूँ..
    लिपट के अपनी लाश से आज मैं रोती हूँ.
    dard ki suder mabhi vyakti
    bahut khub
    rachana

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  11. फिर वही गम फिर वही तन्हाई है
    हँसते हँसते फिर मेरी आँख भर आई है..!!


    -बहुत गहन....अच्छा लगा वापसी देखकर...शुभकामनाएं.

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  12. फिर वही गम फिर वही तन्हाई है
    हँसते हँसते फिर मेरी आँख भर आई है..!!

    वाह,क्या बात है,
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  13. आपकी वापिसी हमारे मन को तो सुकून दे गयी लेकिन आप अपना सुकून कहाँ छोड़ आयीं ! कितनी दर्दभरी रचना के साथ पुरागमन हुआ है ! लेकिन हर पंक्ति लाजवाब है !
    फिर वही गम फिर वही तन्हाई है
    हँसते हँसते फिर मेरी आँख भर आई है..!!
    इस गम और तन्हाई की गिरफ्त से बाहर निकल आइये ! सुन्दर रचना के लिये आभार !

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  14. हर शब पे गम-ज़दा हो ज़िंदगी को खोती हूँ..
    लिपट के अपनी लाश से आज मैं रोती हूँ.

    आप माने या न माने पर मैं भी कई दिन से आपको याद कर रही थी ..आशा है आप स्वस्थ और सानंद होंगी ...कृपया अब नियमित लिखती रहिये ...
    बहुत दर्द भरी रचना है ....ह्रदय चीर गयी ...
    ab aage ke liye aapko dheron..शुभकामनायें .

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  15. पीड़ा भी इतनी स्पष्ट, सुना था आँसू दृश्य धुँधला कर देते हैं।

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  16. tum aa gai .swagat hai tumhara.haan intazaar krti thi main bhii.m.a. ke papers bhi achchhe hue hai.fir kya drd bhri kvita le ke aa gai ho dusht! bhgwan ne blue rng hi diya hai ya jiwn me kuchh khoobsurat rng bhi bhre hain?roti rhti ho hrdm.isliye kahungi 'BAKWAS'
    shuru ki lines to us gaane ki yaad dilati hai 'fir wo hi sham ,wo hi ghm wo hi tanhai hai'
    talented ho kintu uska bhrpoor upyog nhi krti ho.apni lekhni ka sahi yuz kro.tum ek mst hrdm muskraate rhne wali ldki ho ,ye main janti hun.
    dusht....dusht...dusht!ha ha ha

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  17. आपकी वापसी का ही इंतज़ार था।
    बहुत सुन्दर अहसासो को पिरोया है।
    आपकी रचना यहां भ्रमण पर है आप भी घूमते हुए आइये स्‍वागत है
    http://tetalaa.blogspot.com/

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  18. बहुत दिनों बाद आपकी पोस्ट पढ़ कर अच्छा लगा.......दर्द से भरी ये पंक्तियाँ कमाल की हैं.......शानदार |

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  19. हर शब पे गम-ज़दा हो ज़िंदगी को खोती हूँ..
    लिपट के अपनी लाश से आज मैं रोती हूँ...उफ!
    ...मार्मिक रचना

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  20. लगता है दर्द से आपका पुराना रिश्ता है .....

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  21. तुझसे मिलना भी एक इत्तफाक था..
    मिल के बे-इंतहा चाह लेना भी मेरा जुनून था

    बहुत खूब ......गहरी अभिव्यक्ति

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  22. मनोभावों को बेहद खूबसूरती से पिरोया है आपने... हार्दिक बधाई।

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  23. आभार !फिर वही शाम वही गम वही तन्हाई है ,
    दिल को समझाने तेरी याद चली आई है .आपके लौट आने का ,महफ़िल में फिर से कशिश लाने का .

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  24. मिलन आकस्मिक और चाहना पागलपन , गम का आंसुओं के रुप मे कन्धे भिगोना,। इस रचना में सबसे बडी खासियत यह है कि इसमें किसी पर दोषारोपण न करके स्वयं की किस्मत को ही दोष दिया गया है। "अपनी ही लाश से लिपट कर रोना" । बहुत पहले इसका प्रयोग इस प्रकार किया गया था " जैसे कि लाश अपनी खुद ही कोई उठाये "। फिराक साहेब की एक गजल में आया है "वो दर्द उठा फिराक कि मै मुस्करा दिया" वैसे ही यहां पर भी हंसते हंसते आंसू आजाना -अच्छा प्रयोग किया गया है।

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  25. दर्द जब हद से गुज़र जाए तो क्या होता है
    खुद ही मर्ज़ और खुद ही दवा होता है...!

    और इस तरह बाँट देने से दर्द का असर भी तो कम होता है...!!

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  26. बहुत बढ़िया पक्तियां है पढ़कर भाव विभोर हो गया हूँ ...आपकी पक्तियों में गज़ब कि कसक है ...किसी जे जुदा होने का दर्द जितना दर्दीला होता है, उतनी ही प्यारी उसकी यादें होती है !
    "चली गयी जब से परदेश को तुम गीत विरह के मैं गाता हूँ,
    सुना है शहर तेरा सुनी है गलियां फिर भी चक्कर मैं लगता हूँ "

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  27. आपकी किसी पोस्ट की चर्चा होगी शनिवार (25-06-11 ) को नई-पिरानी हलचल पर..रुक जाएँ कुछ पल पर ...! |कृपया पधारें और अपने विचारों से हमें अनुग्रहित करें...!!

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  28. तुझसे मिलना भी एक इत्तफाक था..
    मिल के बे-इंतहा चाह लेना भी मेरा जुनून था ||
    bahut khoobsurat rachna :)
    _________________________________
    मैं , मेरा बचपन और मेरी माँ || (^_^) ||

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  29. हर शब पे गम-ज़दा हो ज़िंदगी को खोती हूँ..
    लिपट के अपनी लाश से आज मैं रोती हूँ.

    ....कितना दर्द भर दिया है हरेक पंक्ति में..बहुत मर्मस्पर्शी...उत्कृष्ट भावपूर्ण अभिव्यक्ति..

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  30. आपके बारे में मैंने भी जहाँ तक हो सकता था, पता लगाने की कोशिश की.. ख़ैर आपका आना सुखद है.. कविता का यह रंग आपकी पहचान बन चुका है.. यह उसी की एक कड़ी है!!

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  31. आप मेरे ब्लॉग पर अभी तक क्यूँ नहीं आयीं?
    आपका आना अच्छा लगता है.
    गम और तन्हाई के आलम में
    'सरयू' स्नान के लिए आपका इंतजार है.
    मुझे पूरी उम्मीद है कि कुछ खुशी अवश्य मिलेगी.

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  32. तनहाई में आँख भर आती ही है

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  33. गम में हंसी कम नहीं होती
    निरंतर दिल को राहत
    वक़्त से लड़ने की शक्ति देती
    हिम्मत और होंसला बढाती
    सुन्दर

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  34. अवकाश के उपरान्त ब्लॉग कि अच्छी शुरुआत खूबसूरत कबिता से. गहन अभिव्यक्ति लिए दिल को छूती सुंदर पेशकश.

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  35. ये ना पूछो की कौन क्या है यहाँ.
    प्यार में दर्द भी दवा है यहाँ.
    जिसको परहेज़ है मुहब्बत से,
    प्यार से वो भी आशना है यहाँ.

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  36. "फिर वही गम फिर वही तन्हाई है
    हँसते हँसते फिर मेरी आँख भर आई है..!!"
    बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ और बेहद खूबसूरती से शब्दों को ढलते हुए..श्रेष्ठ रचना|

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  37. Our saddest songs are drenched in separation and separation .Meeting and departing is a cycle .Sorry ,cant comment in HI for technical reasons .

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  38. jindagi gam hee naheen , khushanuma ehsaas bhee hai.
    khushi talash ke dekho, vo aas-paas hee hai.
    phir bhee sundar rachana,badhai

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  39. फिर वही गम फिर वही तन्हाई है
    हँसते हँसते फिर मेरी आँख भर आई है..!!

    बहुत खूब कहा है आपने इन पंक्तियों में ।

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  40. dard ki itni saaf jhalak......bakhubi dard bayan kiya hai

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  41. HATS OFF....HATS OFF......

    BEHTAREEENNNN...........

    AAPKE DARD KE SHABDON NE MUJHE NISHABD KAR DIYA KI ISKI TAARIF ME KUCHH LIKH PAAUN.........

    HAR EK PANKTI NAHI BALKI EK EK SHABD LAAJWAAB AUR DARD SE LABREJ......

    BAHUT KHOOBSOORAT......ITNI UTKRISHT GAZAL PADHKAR TO KOI BHI STABDH HO SAKTA HAI.................

    AASHA HAI AAGE SE AAP BLOGGING SE GAIR HAAZIR NA HONGI.......

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  42. INDU PURI JEE KI TIPPANI PAR KAHANA CHAHUNGA......

    "JO KOI NAZAR AATA HAI BAAHAR SE MAST KHUSH NUMA,
    UTNA HI DARD ME HAI BHEETAR SE DUBAA HUA"!!!!!

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  43. फिर वही गम फिर वही तन्हाई है
    हँसते हँसते फिर मेरी आँख भर आई है..!!

    बहुत बढ़िया...

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  44. हर शब पे गम-ज़दा हो ज़िंदगी को खोती हूँ..
    लिपट के अपनी लाश से आज मैं रोती हूँ.

    हरेक पंक्ति में कितना दर्द है ...गहन अभिव्यक्ति...

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  45. बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने ! हर एक पंक्तियाँ दिल को छू गयी! प्रशंग्सनीय प्रस्तुती!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://seawave-babli.blogspot.com/
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

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  46. बहुत ही सुंदर और भावभीनी रचना है..

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  47. तेरी बाहों में मैने हर सूँ सुकून पाया था
    गम पिघल पिघल के तेरे कन्धों पे बह आया था
    bahut hi sundar tarike se prastut abhivyakti..badhai

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