बुधवार, 18 जुलाई 2012

जीवन प्रश्न




मैं जीवन और मृत्यु के 
संयोग में हूँ.
अपने जीवन की साँसों के 
कोमल धागों में 
बंधा अवश्य हूँ, लेकिन 
विश्वास की काल्पनिक भित्ति पर
अपने जीवन को थाम रखा है.
किसी की दुत्कारों में हूँ
या दुलार में.
किसी के रोष में हूँ
या स्नेह में.
प्रतीक्षा में हूँ
अथवा नैराश्य में.
राग में हूँ
या वैराग्य में.
विश्वास में हूँ
या विडम्बना में.
मैं इन विचारों के 
उतार-चढ़ाव में 
उलझा पड़ा हूँ,
और प्रयाण की 
अंतिम उच्छवासों में 
लटका हुआ हूँ.
मैं किस ओर हूँ,
किस ओर नहीं,
मैं स्वयं नहीं जानता 
जीवन का यही 
सनातन प्रश्न है.

वास्तविकता में तो 
मैं स्वयं में 
कुछ नहीं हूँ,
माया और साथ का 
ये  मोह.....
आह  ! विश्वास और संदेह का 
ये मोहक मिलन !! 
कैसी विडंबना है ये   
मैं जीवन के हर क्षण में 
भयभीत हूँ  !!



48 टिप्‍पणियां:

  1. और प्रयाण की
    अंतिम उच्छवासों में
    लटका हुआ हूँ.
    Sach! Zindagee hame kitni baar aise makaam pe lake khada kar detee hai!

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  2. बहुत सुन्दर बात कही आपने.....
    मन को छूती रचना.
    सस्नेह
    अनु

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  3. आज बड़ी गंभीर रचना रच डाली है ! इस पार या उस पार की सीमा रेखा पर खड़े व्यक्ति की दुविधा एवं दुश्चिंताओं को बड़ी खूबसूरती के साथ उकेरा है ! बहुत सार्थक प्रस्तुति ! बधाई स्वीकार करें !

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  4. गहन भाव लिए अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने ... आभार

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  5. वाह बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ..पसंद आई आपकी यह रचना बहुत .शुक्रिया

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  6. वैसे तो मैं हूँ क्योंकि मैं अपनी माया के जाल से बाहर हूँ ... अगर इस माया में एक बार फंस गए तो बाहर आना मुमकिन नहीं ... और फिर भटकाव का सिलसिला जीवन भर चलता रहता है ...

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  7. कैसी विडंबना है ये
    मैं जीवन के हर क्षण में
    भयभीत हूँ !!
    बहुत सुंदर ......निर्भय ,निर्भीक ही तो नहीं हो पाते हम ...बहुत प्रबल भाव ...जीवन की सच्चाई के ...

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  8. MANOJ JI DWARA BHEJI GAYI TIPPANI...

    टिप्पणी बॉक्स नहीं खुल रहा है

    “जीवन में अगर खु़द को पहचान लें और जब सारी सोच अपने अंतस की ओर मुड़ जाए फिए तो न सिर्फ़ माया-मोह के बंधनों से आज़ाद होने का मार्ग दीख पड़ता है बल्कि जीवन-मरन के बंधन से भी आज़ादी का मार्ग प्रशस्त होता है।”

    MANOJ

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  9. मैं स्वयं में
    कुछ नहीं हूँ,
    माया और साथ का
    ये मोह.....
    आह ! विश्वास और संदेह का
    ये मोहक मिलन !!
    कैसी विडंबना है ये
    मैं जीवन के हर क्षण में
    भयभीत हूँ !!bahut khoob

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  10. वास्तविकता में तो
    मैं स्वयं में
    कुछ नहीं हूँ,
    माया और साथ का
    ये मोह.....
    आह ! विश्वास और संदेह का
    ये मोहक मिलन !!
    कैसी विडंबना है ये
    मैं जीवन के हर क्षण में
    भयभीत हूँ !!

    ....बिलकुल सच...बहुत गहन और सुन्दर प्रस्तुति...

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  11. हर क्षण दो दो हाथ करेंगे,
    जीवन मृत्यु बदा कर आये।

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  12. बहुत सारे प्रश्न उठाती है यह कविता और पूरी संजीदगी से उनके उत्तर ढूँढने का प्रयास है यह कविता.

    बहुत सुंदर और सार्थक प्रस्तुति जो दिल को छूती है.

    आभार.

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  13. मन के अंतरद्वंद्व को बखूबी कहा है .... वैसे जीवन मृत्यु के संयोग में तो उसी समय प्राणी आ जाता है जब उसका जन्म होता है .... बाकी सब माया मोह में पड़ कर ही यह गति होती है ...

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  14. कहीं ज्ञान का प्रकाश नहीं ..
    अज्ञानता भय को जन्‍म देती ही है ..

    समग्र गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष

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  15. गहरी भावनाए व्यक्त करती
    बहुत-बहुत सुन्दर रचना...

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  16. आह ! विश्वास और संदेह का
    ये मोहक मिलन !!
    कैसी विडंबना है ये
    मैं जीवन के हर क्षण में
    भयभीत हूँ !!

    आपने थोड़े ही शब्दों में मन को जितनी गहराई में उतार दिया है,वहां से जल्द बाहर निकल पाना किसी भी संवेदनशील व्यक्ति के लिए आसान कार्य नही है। बहुत सुंदर लगा। मेरे पोस्ट पर आकर मेरा मनोबल बढ़ाने के लिए आपका विशेष आभार। शुभ रात्रि।

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  17. द्विधाओँ के बीच जागे, जीवन के बोध को एक संवेदनशील मन ने कितनी अच्छी तरह व्यक्त किया है -सुन्दर !

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  18. जीवन क्षण भंगुर है इसीलिए भयभीत है ,
    प्रेम शाश्वत है इसीलिए निर्भीक है |

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  19. बेहद सुन्दरता से वर्णन किया है
    (अरुन शर्मा = arunsblog.in)

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  20. जीवन को भिन्न भिन्न रंगों में तलाशती नजर..सुंदर कविता !

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  21. वाह बेहतरीन और ज़बरदस्त.....बहुत ही पसंद आई पोस्ट।

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  22. बहुत ही खूबसूरती से जिन्दगी के प्रशनो को शब्दों में ढाला है आपने.....

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  23. वास्तविकता में तो मैं स्वयं में कुछ नहीं हूँ,माया और साथ का ये  मोह.....आह  ! विश्वास और संदेह का ये मोहक मिलन !! कैसी विडंबना है ये   मैं जीवन के हर क्षण में भयभीत हूँ  !!
    .बिलकुल सच...बहुत गहन और सुन्दर प्रस्तुति...

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  24. विश्वास और संदेह का ये मोहक मिलन !! कैसी विडंबना है ये मैं जीवन के हर क्षण में भयभीत हूँ !!
    गहरी भावनाए व्यक्त करती रचना...!!

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  25. गागर में सागर से हैं भाव।

    बधाई।
    ............
    International Bloggers Conference!

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  26. आह ! विश्वास और संदेह का
    ये मोहक मिलन !!
    कैसी विडंबना है ये
    मैं जीवन के हर क्षण में
    भयभीत हूँ !!

    गहन और सुंदर भाव ...
    सादर !!

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  27. गहन भाव संयोजित किये हैं आपने .
    बहुत सुन्दर. आभार

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  28. शाश्वत प्रश्न... इंसान निःस्तब्ध, बहुत गंभीर रचना, शुभकामनाएँ.

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  29. बहुत सुंदर ....!

    गहन अभिव्यक्ति ....!!

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  30. गहरी भावनाए व्यक्त करती रचना.

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  31. जीवन हर क्षण दो विपरीत धाराओं का मिलन है...

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  32. सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

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  33. Bhaavpuurn prastuti Anamika ji.

    स्वतंत्रता दिवस की बधाई.

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  34. मै हूँ, मै था और मै रहूँगा । यही सच है बाकी सब माया। सुंदर प्रस्तुति ।

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  35. बहुत सुदर लिखा है आपने। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है। धन्यवाद।

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  36. बड़ा ही गम्भीर चिंतन और आत्ममंथन. इस अवस्था तक पहुँचने के बाद सनातन प्रश्न का उत्तर स्वमेव मिल जाता है.

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  37. भाव प्रवण कविता। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है।

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