आह कोई ऐसा भाव नहीं जो दुख मेरा सहलाए
दुविधा बाँट मेरे मन की जो सुकून थोड़ा दे जाए.
वर्णों की माला के आंखर शब्दों में ना ढलने पायें
मन - संताप जो हर लें मेरा, पीड़ा कुछ तो कम हो जाए.
चार लाल हैं एक मात के, जिन्हें पेट काट कभी पाला
रोज सुबह अब वो छोड़ चौराहे, माँ की उदर पूर्ती हैं करते
नग्न नृत्य करे बेटों की बर्बरता, माँ से भीख मंगवाया करते
देख दुष्टता मानव मन की, नयन आज मेरे हैं रोते.
उधर देखो नित ही एक दुल्हन जलाई जाती
हाड़ - मांस का पुतला हो मानो, यूँ जिन्दा दफनाई जाती.
नारी पूजी जाती जहाँ वो सभ्यता आज है रौंदी जाती.
ये पीडायें रोती रात रात भर, न मुझको सोने देती.
तीन साल की नादान नंदिनी पिशाचों की हवस मिटायें.
पशुओं सा जीवन जीती मानवता, तुच्छ कीटों सी मसली जाए.
घोटाले करें कितने चाहे मुहं कोयले से काले हो जाएँ
बापू के सब बने हैं बंदर , ये न आवाज़ उठायें.
डीजल - पेट्रोल और गैस को पीकर करोड़ों की सैर कर आयें
अनशन करें या बनें हजारे लोक बिल तो ना लाने पायें
महंगाई बढती जाए सुरा सी, सोनिया पर ना काबू आये
गिद्धों का चतुर्दिक तांडव देख, मन मेरा खून के आंसू बहाए.
कहीं कुछ भी सम नहीं
जवाब देंहटाएंसच्ची....
जवाब देंहटाएंसब कुछ उल्टा पुल्टा...
:-(
सादर
अनु
आज का कटु सत्य...बहुत मर्मस्पर्शी..
जवाब देंहटाएंआज का कटु सत्य उजागर करती रचना,,,
जवाब देंहटाएंRECECNT POST: हम देख न सके,,,
कटु मगर सत्य...मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति !!
जवाब देंहटाएंसमाज का आईना.. मर्म को झकझोर देती है यह कविता..
जवाब देंहटाएंबहुत ही सशक्त रचना के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंआज की सच्चाई को आप्ने जिस तरीके से इस कविता में दर्शाया है वह बहुत कुछ सोचने को मज़बूर करता है। हमारे चारो ओर हो रहे कटु यथार्थ का यह बेबाक चित्रण है।
मन को उद्वेलित करती पंक्तियाँ ....
जवाब देंहटाएंहम सब संकल्प लें कि इस स्थिति को बदल कर ही रहेंगे -तभी रचना सार्थक होगी !
जवाब देंहटाएंगिद्धों का तांडव ....
जवाब देंहटाएंवर्तमान समय की अकुलाहट भर देने वाली परिस्थितियों को सार्थक शब्द मिले !
samaj or desh ke katu satya ko prastut karti marmsparshi rachna.....
जवाब देंहटाएंसमाज को आइना दिखाती सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
बेहद सुन्दर और सटीक रचना
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअपनी कविता के माध्यम से देश की दुर्दशा और आज के युग के लोगों की विकृत मानसिकता का सशक्त चित्रण किया है ! मन को विचलित कर गयी आपकी यह रचना !
जवाब देंहटाएंआज के हालात की अलग अलग छवि अंकित की है .... यथार्थ को कहती सार्थक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमचा हुआ है ताण्डव भू पर..
जवाब देंहटाएंAah!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता. बेहद मार्मिक.
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा ... उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंBas sirf ek aah!
जवाब देंहटाएंsargarbhit abhivyakti ...
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब! वाह!
जवाब देंहटाएंकृपया इसे भी देखें-
नाहक़ ही प्यार आया
सामाजिक सरोकारों के प्रति जागरूक रहना हम सभी का कर्त्तव्य बनता है. आपने ऐसे ही मुद्दों को अपनी कविता में उठाया है और ज़माने भर की दुर्दशा का सजीव और मार्मिक चित्रण किया है. यदि यही अकुलाहट सभी में जागे तो ऐसी स्थितियां बनेगी ही नहीं.
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति के लिये बहुत बधाई.
marmik kavita...
जवाब देंहटाएंआस पास हो रहे अमानविक घटनायों का जिवंत चित्रण. दिल को छू गया .बधाई
जवाब देंहटाएंआस पास हो रहे अमानविक घटनायों का जिवंत चित्रण. दिल को छू गया .बधाई
जवाब देंहटाएंज़बरदस्त......बहुत सुन्दर लगी पोस्ट।
जवाब देंहटाएंसमाज का ये आईना देख कर मन उद्वेलित हो गया .....!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी रचना ....
कष्टदायक मगर राक्षसों की सच्चाई...
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