सोमवार, 15 अक्टूबर 2012

देशवासियों तुम मूक ही रहना





आज लोगों  में आग नहीं  है 
कलम  में  भी  धार  नहीं  है 
डर   ने   चादर   फैलायी   है 
या स्वार्थ में दुनियां भर्मायी  है ?

कान  के  बहरे  घूम  रहे  हैं
खुली  आँख  के  ऊंघ  रहे हैं 
फटे   में  टाँग  अड़ाएं  कैसे  
या अपनी बारी तक मूक बने हैं ?

देश तो नहीं  बिका ना अब तक 
दंगों का तांडव हुआ न अब तक 
इंतज़ार  में  हैं  भारतवासी, कि 
पड़ोस में भगत हुआ नहीं है अब तक !

नेता  धन   को  सूत  रहे  हैं 
विपक्षी भी मौका ढूंढ रहे हैं 
संविधान को अपनी रखैल बनाए 
हर  स्कैंडल  से  छूट  रहे  हैं।

खून   सफ़ेद    हुआ    है   शायद 
या जीवन का नव सूत्र ये शायद 
अंधे-बहरे धन-वैभव में  जी लो तब  तक  
देश  न  बिक  जाये  जब तक  ?

देशवासियों  तुम मूक ही रहना   
लिस-लिसेपन सा जीवन जीना 
बलात्कार  करे   कोई  कितना 
किसी आजाद को तुम जन्म न देना !


30 टिप्‍पणियां:

  1. नेता धन को सूत रहे हैं
    विपक्षी भी मौका ढूंढ रहे हैं
    संविधान को अपनी रखैल बनाए
    हर स्कैंडल से छूट रहे हैं,,,,,

    नेता अंत में भ्रष्टाचार से बच ही जाते है,,,,

    RECENT POST ...: यादों की ओढ़नी,,,

    जवाब देंहटाएं
  2. नेता धन को सूत रहे हैं
    विपक्षी भी मौका ढूंढ रहे हैं
    संविधान को अपनी रखैल बनाए
    हर स्कैंडल से छूट रहे हैं।

    सीधी और सच्ची बात
    सुदर रचना, बहुत बढिया

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह तबियत खुश कर दिया आपने उम्दा प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  4. देशवासियों तुम मूक ही रहना....
    जब खुद की बारी आएगी..
    तब आत्मा तक चिल्लाएगी,
    सब चीख-ओ-पुकार तुम्हारी
    सुन कर भी अनसुनी हो जायेगी,
    तब तक
    देशवासियों तुम मूक ही रहना....

    कुँवर जी,

    जवाब देंहटाएं
  5. नेता धन को सूत रहे हैं
    विपक्षी भी मौका ढूंढ रहे हैं
    ....सच्चाई व्यक्त करती हुई उत्‍कृष्‍ट प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  6. नेता धन को सूत रहे हैं
    विपक्षी भी मौका ढूंढ रहे हैं
    संविधान को अपनी रखैल बनाए
    हर स्कैंडल से छूट रहे हैं।

    बहुत सुंदर और सामायिक रचना.

    जवाब देंहटाएं
  7. नेता धन को सूत रहे हैं
    विपक्षी भी मौका ढूंढ रहे हैं
    संविधान को अपनी रखैल बनाए
    हर स्कैंडल से छूट रहे हैं।

    भारतेंदु जी का अंधेर नगरी चौपट राजा पढ़ने का मन करता है। नेता का जाँच नेता ही कर रहा है। कविता का भाव अच्छा लगा। आपके इस भाव की अनुगुंज मेरी कविता "लगता है बेकार गए हम" में विद्यमान है। समय मिले तो देख लें। धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत बढ़िया अनामिका जी ! खूब खरी-खरी सुना दीं आज आपने ! वाकई लोगों ने यही सोच अपना ली है
    कोऊ नृप होई हमहुँ का हानि' ! सब चुप लगाए जो कुछ गलत और अवांछनीय घट रहा है होने दे रहे हैं ! इन बहारों को जगाने के लिये सचमुच एक धमाके की ज़रूरत है ! बहुत सार्थक एवँ सशक्त पोस्ट !

    जवाब देंहटाएं
  9. सशक्त प्रस्तुति .... अंतिम चित्र नहीं भी लगाया होता तब भी सशक्त ही होती रचना ।

    जवाब देंहटाएं
  10. आपने मन के आक्रोश को वाणी दी है, वह मन को झकझोरता है।

    जवाब देंहटाएं
  11. यही हो रहा है - देखो न तीनों बंदर अंध,गूँगे बहरे बने बैठे हैं;
    एक गाल पर चाँटा खा चुके ,अब दूसरे के लिये दोनों हाथ जोड़ कर तैयार हो जाओ निर्लज्जों !

    जवाब देंहटाएं
  12. दुर्भाग्य है... असहाय सी परिस्थिति... बस उम्मीद के शब्द साथ हैं..We shall overcome..
    सादर
    मधुरेश

    जवाब देंहटाएं
  13. एक सच कहती ... उत्‍कृष्‍ट अभिव्‍यक्ति ।

    जवाब देंहटाएं
  14. बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ,अनामिका जी बहुत बढ़िया

    जवाब देंहटाएं
  15. एक भी बात झुठलाने वाली नहीं है !

    जवाब देंहटाएं
  16. बालात्कार (बलात्कार )और अडाए (अड़ाए )शब्द ठीक कर लें .हमारे समय का दस्तावेज़ है यह रचना साक्षी भाव से हम घटनाओं को कब तक देखते रहेंगे .सीधा संवाद है दो टूक देश वासियों से .बधाई .अनामिका की

    सदा को .

    जवाब देंहटाएं
  17. बहुत बढ़िया...
    सच्चाई बयाँ करती रचना....

    सादर
    अनु

    जवाब देंहटाएं
  18. मन के आक्रोश को व्यक्त करती एक सशक्त प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  19. वक़्त और हालात पर प्रहार करती एक सशक्त रचना ..

    जवाब देंहटाएं
  20. वक़्त और हालात पर प्रहार करती एक सशक्त रचना ..

    जवाब देंहटाएं
  21. किसी आजाद को तुम जन्म न देना !

    warna use krantikary nahi manegi.. use Netaji Subhash Chandra Bosh bana degi

    जवाब देंहटाएं
  22. उफ़ कितना लज्जाजनक ...\बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करती मार्मिक प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  23. अनामिका जी नमस्कार, आप का ब्लाग तो बहुत पहले ही शामिल कर लिया गया हे, आप ने शायद कभी देखा नही आप यहां देखे... आप की नयी पोस्ट ३ ... समय ओर दिन के हिसाब से, धन्यवाद
    ब्लाग परिवार

    जवाब देंहटाएं
  24. खून सफ़ेद हुआ है शायद
    या जीवन का नव सूत्र ये शायद
    अंधे-बहरे धन-वैभव में जी लो तब तक
    देश न बिक जाये जब तक ?

    umda vyang

    जवाब देंहटाएं