शुक्रवार, 19 अक्टूबर 2012

कैसे गरीब ग़नी हो पाए




नेवैद्य में  धनी  ने  धन था  चढ़ाया 
निधनी ने श्रद्धा से ही काम चलाया 
आज  करोड़ों  के  अभीक   हैं पण्डे   
करें सोने-चांदी की नीलामी के धंधे !

चाह है ये धन, धन-हीनों को मिल जाए 
बाँट  का  नीतिपूर्ण  पर मिले न उपाय 
सरकारी  हाथ  में  बन्दर-बाँट  हो जाये 
कानून  के  प्रहरी  भी  गटक  ही  जायें  !

बैंक  बेकस  तक पहुँच न पाए 
खाता क्या है दीन जान न पाए   
कैसे   गरीब   ग़नी   हो   पाए  
ठग नगरी में कौन राह सुझाये !

सांई  अब  तो   तुम  ही  पधारो 
अपने  अर्घ  को  आप  ही  बांटो 
तुमसे भला न कोई बांटन वाला  
जो  समता   से   करे   बंटवारा  !

सदा  रहे  बाबा  दीन  के  भ्राता 
अकूत  धन के  हो तुम ही दाता 
बेघि हरो हर  विघ्न  निर्बल का 
गरीबी  का  करो  निर्मूल  नाशा !



30 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर बात कही अनामिका जी...
    तुमसे भला न कोई बांटन वाला
    जो समता से करे बंटवारा !


    काश प्रभु खुद आकर समस्याओं का निदान करते..
    सादर
    अनु

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  2. नेवैद्य में धनी ने धन था चढ़ाया
    निधनी ने श्रद्धा से ही काम चलाया
    आज करोड़ों के अभीक हैं पण्डे
    करें सोने-चांदी की नीलामी के धंधे !
    वाह ... बहुत ही सच्‍ची बात कही है आपने इन पंक्तियों में

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  3. ओम साईं, श्री साईं जय जय साईं

    बहुत सुंदर रचना

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  4. नेवैद्य में धनी ने धन था चढ़ाया
    निधनी ने श्रद्धा से ही काम चलाया
    आज करोड़ों के अभीक हैं पण्डे
    करें सोने-चांदी की नीलामी के धंधे !
    Badee nirbheekta se pate kee baat kahee hai!

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  5. सांई अब तो तुम ही पधारो
    अपने अर्घ को आप ही बांटो
    तुमसे भला न कोई बांटन वाला
    जो समता से करे बंटवारा !

    प्रार्थना कुबूल हो !

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  6. सांई ने तो किया सही बंटवारा
    जिसके हिस्से जो आना था वही आया
    पर तुष्ट हो न सका इंसान स्वार्थ में
    इसीलिए भ्रमित होता रहता है प्रलाप में ।

    अच्छी प्रस्तुति

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  7. समान वितरण हो यह चिंता ज़रूरी है। इस चिंता को चिंतन तक ले जाती रचना कम-से-कम विवश तो करती ही है कुछ सोचने पर।

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  8. 18 अक्टूबर को शिर्डी साई बाबा के अर्घ की नीलामी होनी थी---ऐसी न्यूज़ थी लेकिन भक्तों ने याचिका दायर कर कोर्ट से रोक लगवा दी थी ...उसी भाव भूमि पर पर है यह कविता ... ऐसा लगता है।

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  10. काश ! ये पावन पुकार सही जगह पहुँच जाए...
    ~सादर !!!

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  11. सच कहा मनोज जी आपने, मेरी रचना की भाव-भूमि अक्षरश:बिलकुल यही है। आभारी हूँ इसकी गहराई तक जाने के लिए।

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  12. सांई अब तो तुम ही पधारो
    अपने अर्घ को आप ही बांटो
    तुमसे भला न कोई बांटन वाला
    जो समता से करे बंटवारा !... साईं ही सबकुछ हैं

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  13. बहुत सुन्दर और सशक्त अभिव्यक्ति..अब तो भगवान खुद आकर ही कुछ कर सकते हैं...

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  14. सदा रहे बाबा दीन के भ्राता

    अकूत धन के हो तुम ही दाता

    बेघि हरो हर विघ्न निर्बल का

    गरीबी का करो निर्मूल नाशा !

    जन प्रेम से आप्लावित रचना .

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  15. सांई अब तो तुम ही पधारो
    अपने अर्घ को आप ही बांटो
    तुमसे भला न कोई बांटन वाला
    जो समता से करे बंटवारा ! अब तो साईं का ही सहारा है

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  16. सदा रहे बाबा दीन के भ्राता
    अकूत धन के हो तुम ही दाता
    बेघि हरो हर विघ्न निर्बल का
    गरीबी का करो निर्मूल नाशा!

    ओह माय गोड...

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  17. सब को सन्मति दे भगवान ,
    तू ने दिया विवेक ,
    मनुज कर पाये
    अपना ही कल्याण :
    पर मति पलट गई
    अनीति पर तुला हुआ
    बन कर नादान !

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  18. नेवैद्य में धनी ने धन था चढ़ाया
    निधनी ने श्रद्धा से ही काम चलाया
    आज करोड़ों के अभीक हैं पण्डे
    करें सोने-चांदी की नीलामी के धंधे !

    एकदम सटीक प्रस्तुति मेरे दिल की बात कह दी | रचना बहुत अच्छी लगी |

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  19. बहुत सुन्दर एवँ न्यायसंगत सोच है अनामिका जी ! लेकिन बाबा भी तो कहीं अनन्त में विलुप्त हो गये हैं ऐसा लगता है वरना क्या उन्हें इस बन्दर बाँट की खबर नहीं लगती ? अगर जान पाते तो क्या विवश, निर्धन, लाचार और दीन के साथ ऐसा ज़ुल्म वे होने देते ? मन को द्रवित करती एक सशक्त प्रस्तुति !

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  20. सच्चाई यही है ...
    मंगलकामनाएं आपको!

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  21. बहुत शानदार प्रस्तुति ।
    साईं का आशीर्वाद सभी को मिले

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  22. सांई अब तो तुम ही पधारो
    अपने अर्घ को आप ही बांटो

    बहुत सुन्दर प्रार्थना

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  23. जहाँ भौतिकता की चमक ने मन-मस्तिष्क पर आधिपत्य जमा रखा हो, वहाँ संतोष संपदा की किसे पहचान होगी.. निर्धनों के पास वही धन है.. परमात्मा आपकी प्रार्थना सुने!!

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