सोमवार, 7 जनवरी 2013

फ़ासले ....





इजहार, इकरार 
की कोई कसावट 
बुन ही नहीं सका 
तुम्हारे लिए 
ये मन !

बेगानेपन का एहसास 
फांसले तक्सीम 
किये रहा 
तमाम उम्र .

भोंडेपन, घुन्नेपन,
हीनता से ग्रसित अहम्  
और तिस पर 
मगरुरता से 
लिसलिसाता पौरुष 
तुम्हारे अधिकार से 
सदैव दूर करने में 
सहायक रहे 

दायरों,रिवाजों में 
बंधा ये वजूद 
छटपटाता रहा 
मासूम आँखों के 
तिलिस्म से 
निकलने के लिए 
और तुम्हारी 
"मैं-मेरा " की  
हर चोट  को 
सहता रहा 
सिर्फ 
इसी उम्मीद  में 
कि शायद एक दिन 
तुम जिम्मेदारियों 
का बोझ खुद उठा कर 
कर्म की राह पर चल 
सम्पूर्णता की  मजिल 
पा सको।


32 टिप्‍पणियां:

  1. ये 'मैं' 'मेरा' का उपदेश ! समझौता करना चाहा ... पर नहीं हो सकता इस मैं की अति वही जाने जो भोगे

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  2. फासले ऐसे भी होंगे, ये कभी सोचा न था...

    आखिर एक उम्मीद ही तो है इस जीने का बहाना वर्ना बहनेबाजों को बहानों की कभी कमी हुई है.

    सुंदर कविता मार्मिक और बेहद भावपूर्ण.

    नव वर्ष २०१३ की अनेकानेक शुभकामनायें आपको व आपके परिवार को अनामिका जी. इस साल आप ज्यादा पढ़ें, ज्यादा लिखे.

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  3. कितनी भी चोट खाता है आदमी फिर भी उम्मीद नहीं छोड़ता ... ..

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  4. मैं और मेरा...ये अहं ही तो इसे हम होने नहीं देता.....

    सस्नेह
    अनु

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  5. मैं-मेरा का ये अहंकार ही हम नहीं होने देता.....

    recent post: वह सुनयना थी,

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  6. उफ्फ... क्या सब कुछ बांधने को ही है ?

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  7. भोंडेपन, घुन्नेपन,
    हीनता से ग्रसित अहम्
    और तिस पर
    मगरुरता से
    लिसलिसाता पौरुष
    तुम्हारे अधिकार से
    सदैव दूर करने में
    सहायक रहे !

    बहुत खूब....

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  8. 'भय बिन होट न प्रीत'
    दुनिया की रीति है कि अपने-आप कुछ नहीं होता -कोई इतना समझदार नहीं होता!

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  9. मैं का दायरा तोड़ना आसान नहीं होता ...
    मर्म को छूती है रचना ...

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  10. अव्वल तो पसंदीदा मीना कुमारी जी का फोटो और फिर इतनी सशक्त पोस्ट........शानदार ।

    वक़्त मिले तो जज़्बात पर भी आएं ।

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  11. ye aham kab khatm hoga...??
    भोंडेपन, घुन्नेपन, हीनता से ग्रसित अहम्
    behtareen shabd sanyojan...!!

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  12. मैं और मेरा ......कभी खुद से सम्पूर्ण नहीं है

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  13. एक बेहद कसी और शानदार रचना के लिए आपको बधाई।
    इन फासलों के दर्मियान यदि अहम की दीवार खड़ी हो जाए तो दूरिया मिटती नहीं बढ़ती ही जाती है।

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  14. मैं-मेरा " की
    हर चोट को
    सहता रहा
    सच ....

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  15. ये मैं अगर हम हो जाए तो ना फासले हों ना इंकार... गहन भाव... आभार

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  16. बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...बेह्तरीन अभिव्यक्ति ...!!शुभकामनायें.
    आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
    http://madan-saxena.blogspot.in/
    http://mmsaxena.blogspot.in/
    http://madanmohansaxena.blogspot.in/
    http://mmsaxena69.blogspot.in/

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  17. लोहड़ी, मकर संक्रांति और माघ बिहू की शुभकामनायें.

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  18. कमियों को यदि नज़र अंदाज़ किया जाए तो फासले कम हो सकते हैं .... ज़रूरत से ज्यादा उम्मीद फ़ासलों को बढ़ा देती है ...

    भाव प्रधान रचना ।

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  19. इजहार, इकरार
    की कोई कसावट
    बुन ही नहीं सका
    तुम्हारे लिए
    ये मन !

    ...बहुत खूब! बहुत सशक्त और सार्थक प्रस्तुति...

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  20. दायरों,रिवाजों में
    बंधा ये वजूद
    छटपटाता रहा
    मासूम आँखों के
    तिलिस्म से
    निकलने के लिए
    और तुम्हारी
    "मैं-मेरा " की
    हर चोट को
    सहता रहा
    सिर्फ
    इसी उम्मीद में
    कि शायद एक दिन
    तुम जिम्मेदारियों
    का बोझ खुद उठा कर
    कर्म की राह पर चल
    सम्पूर्णता की मजिल
    पा सको।

    नारी मन के क्षोभ और छटपटाहट को बड़ी सशक्र
    अभिव्यक्ति दी है ! मन में सुलगते ज्वालामुखी की आँच हर शब्द में महसूस होती है ! सुन्दर रचना !

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  21. मैंने आपकी दो कविताएं आभार पूर्वक दैनिक सन्मार्ग में प्रकाशित की हैं। आप गूगल में sanmargjharkhand पर जाकर ई-पेपर पेज-6 देख सकते हैं। धन्यवाद

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  22. प्रभावी अभिव्यक्ति । बधाई । सस्नेह

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