शुक्रवार, 1 अगस्त 2014

चाँद पिघल रहा है

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चाँद की तासीर 
ठंडक लिए होती है 
तो क्यों आज 
पिघल रहे हो 
चाँद तुम … ?

जानती हूँ 
इस पिघलन में 
कितनी व्याकुलता है 
कितनी अपने ही टुकड़ो में 
टूटने की विवशता है     

कितनी वेदना को 
आत्मसात किया  होगा 
चाँद तुमने 
तब कहीं जा कर 
पिघलने पर 
मजबूर हुए होंगे. 

देखती हूँ 
तुमसे ही अवभासित  
तुम्हारी आँखों के तारे 
तुम्हारे ये तारे 
इतरा रहे हैं  
अपने रूप पर 

तुमसे अस्तित्व पाकर 
तुम में ही दाग दिखाते हैं  
तुम पर प्रहार कर  
तुमसे अपृक्त (विलग ) हो 
तुम्हे ही नगन्य बताते हैं  !!

आज के युग के ये तारे 
पूर्वाग्रहों में डूबे 
छद्य समाज से परिष्कृत 
कठुराघात करते 
टमकाते, मटकाते  
ओ चाँद, 
तुझे ही 
खंड खंड करते 
तेरी शीतलता को 
उच्छिन्न कर तुझे 

गर्माते ही जाते हैं !!



23 टिप्‍पणियां:

  1. आज के हालात पर प्रभावशाली ढंग से उठी कलम..

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  2. तुमसे अस्तित्व पाकर
    तुम में ही दाग दिखाते हैं
    तुम पर प्रहार कर
    तुमसे अपृक्त (विलग ) हो
    तुम्हे ही नगन्य बताते हैं !!

    आज की पीढ़ी का सच प्रगट करती है !
    नई पोस्ट माँ है धरती !

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  3. सार्थकता लिये ... बेहतरीन अभिव्‍यक्ति

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  4. कितनी वेदना को
    आत्मसात किया होगा
    चाँद तुमने
    तब कहीं जा कर
    पिघलने पर
    मजबूर हुए होंगे.
    गहन अनुभूति …

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  5. ' तुमसे अस्तित्व पाकर
    तुम में ही दाग दिखाते हैं
    तुम पर प्रहार कर
    तुमसे अपृक्त (विलग ) हो
    तुम्हे ही नगन्य बताते हैं !!'
    - यही होता आया है:कृतज्ञता, कृतघ्नता मे बदल जाती है और अपना महत्व दिखाने को वही लोग दूसरे को नगण्य समझ लेते हैं !
    संवेदनाओं से पूर्ण कविता!

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  6. बहुत सुन्दर रचना ! चाँद तारों के माध्यम से कितनों की व्यथा कथा को उकेर दिया है ! बहुत बढ़िया ! आज की दुनिया का यही चलन हो गया है जैसे !

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  7. सच आस पास का वातावरण जब अच्छा न हो तो फिर अच्छे की आस बेमानी है .. "company does affect"
    बहुत बढ़िया

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  8. उफ़्फ़! कितना दर्द है! कहां से लाती हैं? चांद को इस पिघलन से बचाना होगा!

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  9. बहुत प्रभावी विम्ब...आज के यथार्थ का बहुत मर्मस्पर्शी चित्रण...

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  10. aadarneyaa ..bhavmayee samvednaaon ko jagaane waalee shaskt rachna ke liye the dil badhaaayee.saadar

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  11. aadarneyaa ..bhavmayee samvednaaon ko jagaane waalee shaskt rachna ke liye the dil badhaaayee.saadar

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  12. चाँद तुमने
    तब कहीं जा कर
    पिघलने पर
    मजबूर हुए होंगे.
    ......गहन अनुभूत!

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  13. आपकी संवेदनशील रचना मन के भावों को दोलायमान कर गई। मेरे नए पोस्ट पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है। शुभ रात्रि।

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  14. गहन अभिव्यक्ति आज के समाज में अच्छाईयों में भी बुराईयां ढूँढने के प्रवृत्ति पर कटाक्ष करती शशक्त रचना
    शुभ कामनाएँ

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