शनिवार, 14 मार्च 2015

आखिर तो इंसान हूँ ....

Image result for pics of sad feelings



दिल में चुभन हुई
तो मैं हंसने लगा
मानो  हंस के
चुभन को भुलाने चला ..

चुभन जख्म करने लगी
तो मैं खामोशी से
लब  सी गया
क्यूंकि आंसू दिखाने से
डरता रहा ..

रक्त रंजित किया ..
जख्मों ने छलनी किया
अश्क रुक न सके
आँख छलक ही गयी 

आखिर तो हाड-मांस का
पुतला हूँ मैं.
भावों के स्पंदन से
जलता बुझता हूँ मैं  !!

6 टिप्‍पणियां:

  1. आखिर तो इंसान हूँ, हृदय रखता हूँ, भावों को जीता हूँ … बहुत खूब …

    जवाब देंहटाएं
  2. सामाजिक निषेध ,और नैतिक वर्जनाएँ व्यक्ति की मूल प्रवृत्तियों को संयमित करने के लिए होती हैं पर जब वे स्वाभाविकता पर आघात करती हैं तब जीवन में कुंठाओं का उदय होने लगता है.

    जवाब देंहटाएं
  3. अनामिका जी बहुत सुंदर लिखा है ...
    सहज अनुभूति की सुंदर अभिव्यक्ति ...!!

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह क्या बात है बेहतरीन.सच है आखिर हैं तो हम भी इनसान ही हर छोटी बड़ी बात कुछ न कुछ दर्द दे ही जाती है भले हम कुछ न कहें

    जवाब देंहटाएं