जाने क्यों आजकल अक्सर
माँ मुझमें चहल - कदमी सी करती
माँ मुझमें चहल - कदमी सी करती
महसूस होती हो
ख्वाबों में ही सही
मंद मंद मुस्काती तुम
उलझनों में फँसी मुझे
दिलासा देती हुई सी
परेशानियों की झाड़ियों से
हाथ पकड़ खींचती हुई सी
माँ आजकल अक्सर
मुझमें ही चहल कदमी करती सी
महसूस होती हो !!
मंद मंद मुस्काती तुम
उलझनों में फँसी मुझे
दिलासा देती हुई सी
परेशानियों की झाड़ियों से
हाथ पकड़ खींचती हुई सी
माँ आजकल अक्सर
मुझमें ही चहल कदमी करती सी
महसूस होती हो !!
रात के ख्वाबों में विचरती
गुमसुम बैठी माँ तुम्हें ही
बुन रही होती हूँ
और लगता है
कि पलभर को तुम्हारा साया
मेरे पास आया और निकल गया
गुमसुम बैठी माँ तुम्हें ही
बुन रही होती हूँ
और लगता है
कि पलभर को तुम्हारा साया
मेरे पास आया और निकल गया
जाने क्यों आजकल अक्सर
माँ मेरे आस पास चहल कदमी सी
करती महसूस होती हो !!
माँ मेरे आस पास चहल कदमी सी
करती महसूस होती हो !!
बच्चे भी ठिठोली कर कहते हैं
‘माँ ’ आजकल आप
अपनी माँ जैसी लगती हो
नानी जैसी बातें करती हो ,
नानी जैसी हँसती हो ,
‘माँ ’ आजकल आप
अपनी माँ जैसी लगती हो
नानी जैसी बातें करती हो ,
नानी जैसी हँसती हो ,
और माँ मैं तब तुम्हारी
होठों के कोरों तक फैली
मुस्कान वाली तस्वीर देखती हूँ
और अपना ही अक्स पाती हूँ
होठों के कोरों तक फैली
मुस्कान वाली तस्वीर देखती हूँ
और अपना ही अक्स पाती हूँ
“माँ " आजकल न जाने क्यूँ
अक्सर तुम
मुझमें ही चहल कदमी करती
महसूस होती हो !!
अक्सर तुम
मुझमें ही चहल कदमी करती
महसूस होती हो !!
हृदयस्पर्शीय।
जवाब देंहटाएंभोजपुरी में एक गीत है "अमृत के धार केहू केतनो पियाई एगो माई बिना , कईसे करेजवा जुड़ाई एगो माई बिना....."
Aadarneey Pandey Ji shukriya kavita k manobhavo tak pahuchne k liye
हटाएंमाँ का अंश है संतान, वह उसमें जीवित रही है जैसे सरिता लेकर पर्वतों का जल मैदानों में बही है
जवाब देंहटाएंAadarneeya Anita Ji shukriya kavita k manobhavo tak pahuchne k liye aur mujhe protsahit karne k liye.
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