Wednesday 24 November 2010

आओ चलो संवाद करते हैं..

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दो दिलों के 
मनोभाव 
टकराने लगे हैं.
एक दूसरे के 
सारे सहयोग द्वार 
बंद होने लगे हैं.
दो परिपक्व सोचों में 
द्वन्द खड़ा हो गया है .
विकारों का जहर 
भरने लगा है .
संवाद भी अब 
दम तोड़ चुके हैं.
खामोशियों का 
पटाक्षेप हो चला है .
बिसूरती चाहतें 
मनोबल खोती सी 
अपनी ही जमीन में 
गढती जा रही हैं.
अंधेरों को 
अग्रसर होती 
जीवन अभिलाषा 
खुद को कोसती 
अपने ही खोल में 
घुस जाने को
मजबूर, 
नैराश्य की 
चरम सीमा पर है .

कैसे उजास की किरण 
फूटेगी ?
कैसे विकारों के 
बाण शांत होंगे ?
कैसे मन से 
एक बार फिर 
प्यार के सेतु 
टूटेंगे ?
आओ चलो 
संवाद करते हैं 
आओ चलो 
एक बार फिर 
कुंठाओं का 
बहिष्कार करते हैं.
आओ चलो ना 
एक बार फिर 
आलिंगन कर 
मनुहार करते हैं 
मनुहार करते हैं !!

Tuesday 16 November 2010

चक्रव्यूह ...


एक पुरानी रचना जो आखर कलश पर प्रस्तुत की गयी थी...एक बार यहाँ आप सब के लिए प्रस्तुत है..



पानी में  कंकड़ फैकना
और लहरों  का
गोल-गोल
फैलते जाना....
कितना मन को लुभता है...,.
मगर कोई यूं  ही
लहरो के चक्रव्यूह में
फंस  जाए तो
जान गँवा दे..!!

यू ही 'प्यार'...
कितना प्यारा है ये शब्द....
“प्यार.......”!!
जब तक ये मिलता रहे
सब स्वर्ग सा लगता है..
जैसे ही गम, जुदाई और डर
दामन छु जाते है प्यार का..
प्यार भी एक जान लेवा,
लहरों  के चक्रव्यूह सा
रूप अख्तियार कर लेता है...,.
और कर देता है..
कयी जिंदगियां तबाह..!!

कैसा रिश्ता है लहरों  का,
प्यार का, और
चक्रव्यूह का...!

Monday 8 November 2010

क्या ऐसे होगा देश निर्माण ???










चाहते नीव हो देश की
सुदृढ और परिपक्व
बने भविष्य देश का
उज्जवल और कर्मठ .


बताते अभिभावक खुद को
देकर गलत संस्कार और प्यार
निभाते हैं फ़र्ज़ ये, देकर
देश को अविकसित बाढ़.


जहाँ दंड दिया तनिक छात्र को
आलोचनाओ से किया शिकार,
सम्मान नहीं दिया शिक्षक को
अतिक्रमण ने भी किया लाचार.


कर्तव्य निष्ठा पर उठे सवाल
मीडिया ने भी दिया उछाल ,
अनुशासित करते ही शिक्षक को
कोर्ट - कचहरी के दिखा दिए द्वार.


माता-पिता को समय नहीं
कि बच्चों का करें उद्धार
कुछ अनपढ़ अभिभावक भी
शिक्षक का ही मुहं रहे ताक .


विश्वकर्मा बन शिक्षक ने भी
गुरु मन्त्र देना चाहा फूंक
मगर जहाँ चोट दी कच्चे घड़े को
अभिभावक ने लिया कुपित स्वरुप.


भय बिनु होत ना प्रीत भी
स्वः अनुशासन भी जानें नहीं
कैसे नीव रखोगे सुदृढ
कैसे देश का बढ़ेगा मान ?


विद्यार्थी करें उदंड व्यवहार
और मूक रहें अध्यापक गण
क्या ऐसे मिलेगा गुरु ज्ञान
या ऐसे होगा देश निर्माण ??