Wednesday 30 May 2012

चौखटें





तुम्हारे घर की 
चौखटें तो
बहुत संकीर्ण थी...
चुगली भी करती थी
एक दूसरे की...
फिर तुम कैसे
अपने मन की
कर लेते थे...?
शायद तुम्हारी चाहते

 घर की  चौखटों
से ज्यादा बुलंद थी तब.
आज ....
लेकिन आज
हालात जुदा हैं..
चौखटें तो वहीँ हैं 

मगर चाहतों की चौखटों में
 दीमक लग गयी है...इसीलिए
मजबूरियों ने भी
पाँव पसार लिए हैं.
कितना परिवर्तन-पसंद
है ना इंसान ....
घर की चौखटें बदलें  न बदलें ...
मन की चौखटों को तो

 बदल ही सकता है न 
अपनी इच्छानुसार  !!



Friday 18 May 2012

लौट आओ न पापा !


आज १८  मई पर ये चंद शब्द मेरे पापा की ११ वीं बरसी पर .....एक बेटी की बातें अपने पापा से ......



पापा देखो ना आज 
मैं कितनी सायानी हो गयी हूँ.
आँखों में  नमी नहीं आने देती
सदा मुस्कुराती हूँ.
सबके चेहरों पे हंसी लाती हूँ.
आपने ही सिखाई थी न ये सीख  ....
संतुष्टि के धन को संजोना
शिकायत न करना !


आपने ही अपनी धडकनों से 

लगा मेरी धडकनों को
लोरियां सुनाई थी
मैं भी अपने बच्चों को
अपने सीने से लगा
ऐसी ही लोरियां सुनाती  हूँ,  पापा !

आप सदा कहते थे न
मैं आपका अच्छा बेटा  हूँ
मैं अच्छी भी बन गयी हूँ  

पापा अब तो लौट आओ न पापा !

पापा आपके बिना तो मैं

सागर हो कर भी मरुस्थल हूँ.
सबके बीच स्वयं को भुला कर भी
आपको नहीं भुला पाती पापा !

पापा तो सदा पापा ही रहते हैं ना 

फिर आप  'पापा थे'  कैसे हो गए ?
मैं तो आज भी आपकी ही बेटी हूँ.
लौट आओ न पापा !

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पपीहा तरसे ज्यू सावन को
मन तरसे बाबुल अंगना को
कैसे उस घर की राह करूँ, जहाँ
बाबुल नहीं  अब गल्बैयन को


जब जब उस देहरी जाऊं
हर कोने मोरे बाबुल पुकारें
नयन निचोडूं के मन को भींचूं
यादों की अगन जलाये.


पैरों  पर  मेरे पैर संभाले   

दुनिया में चलना सिखाया था 
सीने से लगा इस लाडो की  
हर चोट पे मरहम लगाया था. 

साथ बैठा कर दक्ष कराया
पढ़ा लिखा कर ज्ञान बढाया था
हाथ पकड़ दूजे हाथ में सौपा,
बिटिया का घर संसार सजाया था.


सदाबहार के फूल सुगंध से
बाबुल अनत्स्थल में समाये हो
बाबुल-बाबुल मन ये पुकारे
जहाँ भी छुपे हो आ जाओ ना. 


Wednesday 9 May 2012

संघर्ष



प्रियजनों का प्रिय बनने के लिए
मैंने न जाने कितने ही दांव खेले
अपनी  चाहतों की अकुलाहट को 
सहलाने के लिए कितनों को ही 
अस्त-व्यस्त कर दिया....!
और निरंकुश मन की न होने पर ...
संघर्षों से घबराकर 
मौत मैं तुझे  मांगती रही ...!!

सोचती थी
दुखों से भागकर 
तुमसे आलिंगन 
कर लुंगी...
तुम तो तत्परता से
अपना ही लोगी मुझे !

मगर आज...
आज जब आँखों में 
अन्धकार है 
साँसों के उठाव में 
विषमता है.
देह का  ताप 
शिथिल हो चला है ...
तो ....
मेरा घर !
मेरे बच्चे !
मेरे मित्र !
मेरे आभूषण !
मेरे कपड़े  !
मेरी चाबियां !
मेरी  एश-ओ-आराम की चीजें !
ये सारा सामान
शनैः शनैः 
मुझे अपनी ओर 
खींचते  हैं.

चिर शान्ति के लिए  
मन की यह अशांति भी 
कितनी भयावह है !

चिर निद्रे !
तुम भी कितनी आलसी हो 
कैसी विडम्बना है 
स्वतः कामना करके भी 
आज तुमसे भी 
संघर्ष है !

Tuesday 1 May 2012

वो लफ्ज़ दोहरा दो....









बीते हुए लम्हों को 
इक बार लौटा दो,
फिर से पूरी रात
वो लफ्ज़ दोहरा दो..
कि मुझसे बहुत प्यार करते हो..!!


दिल की बातों को 
पढ़ लेना और...
'जान'  कह...
ढेरों प्यार कर कहना...
कि मुझसे बहुत प्यार करते हो..!!


वो  तुम्हारा 
हिज्र की रातों में

फूट कर रोना और कहना..

कि मुझसे बहुत प्यार करते हो..!!



गुजरी रातों पे आज 
नए वादों की ख्वाहिश है ..
बस एक बार फिर से कह दो...
कि मुझसे बहुत प्यार करते हो..!!




अगर हम हसरतों की 

कब्र में दफ़न हो जाएँ...

तो यह कब्रों पर लिखवा देना..

कि मुझसे बहुत प्यार करते हो..!!