Monday 30 December 2013

तुम बदल जाओगे.....

ये ना सोचा था कभी कि
तुम बदल जाओगे कभी
दुनिया डराएगी तुम्हे, और
तुम भी डर जाओगे कभी

छोड़ दोगे मुझे
औरो के डराने से ही..
दूर चले जाओगे..
मुझसे रूठ कर यूँ  ही...!!

तुम वही हो ना...
सीने से लगाया था 

जिसने मुझे,
तुम वही हो ना,
मेरे अश्क देख
अपने सीने में  भी
दर्द पाया था कभी..!!

आज दूर हुए हो इतने..
कि दूर जाने का भी...
तुमको मलाल नही..!.
ये ना सोचा था कभी
कि तुम बदल जाओगे कभी..!!

प्यार के  बदले प्यार दोगे..
दगा ना दोगे कभी.
यूँ  ही खुद को बहलाया किया..,
कि चाहोगे बे-इंतहा  यूँ  ही..!.
सोचा था ही नही...
कि उम्मीदे टूटेंगी कभी..
और दूर चले जाओगे ..
एक दिन यूँ  ही....!.

सामने आया आज वो सब ..
जो ना सोचा था कभी..
ये ना सोचा था कभी
कि तुम बदल जाओगे कभी..!!





Thursday 14 November 2013

हाय मुझे बचाओ ....

लो जी आज कुछ हास्य रस में डूबा जाये---







अल्पज्ञानी पति ने 
अपने व् पत्नी के टेस्ट करवाए 
रिपोर्ट लेकर 
फेमिली डॉक्टर के पास 
दौड़े आये 

डॉक्टर ने कहा दिल थाम लो 
खुद को जरा संभाल लो 
बी पी ने किया है 
किडनी पर वार 
किडनी फेल होने के 
तुम्हारी पत्नी के पूरे हैं आसार 

बीबी तुम्हारी है मेहमान 
बस 1-2 साल 
किडनी तुम्हारी है बेहतर 
कर दो बीबी को दान 
वर्ना रह जाओगे अकेले 
बैठे हो बुढ़ापे की  कगार 

पति ने डॉक्टर को घूरा 
मुंह थोडा बिसूरा 
ऊपर से भुन-भुनाया 
मन ही मन गुदगुदाया 
फिर थोडा बुदबुदाया 
डॉक्टर हो गया तू पगला  
दिल की मेरी न समझा 
छूट रहा जिससे 
मुश्किल से मेरा पीछा 
उसी को मैं बचा लूं 
देके अपने शरीर का टुकड़ा ?

बुडबक हुआ रे ये तो 
पति सोच के झल्लाया  
साध मेरे दिल की 
जो आज पूरी होने को आई 
क्या रह जाएगी अधूरी 
पत्नी गर बच के आई 
हाय अब मेरा  क्या होगा 
क्या दूजा ब्याह न होगा ?

पर तनिक देर में वो संभला 
उदास सा मुहं  बनाया  
सोचा झट से कोई बहाना 
रुआंसा सा हो के बोला 
डॉक्टर बेशक इसे बचाओ 
पर मेरी रिपोर्ट पे भी तो 
ध्यान लगाओ 
डायबिटिक हूँ मैं पहले ही 
कैसे किडनी लगे बताओ ?

डॉक्टर ने फिर से रिपोट देखि  
बोला हो गया बड़ा घोटाला 
गलती से तुम्हारी रिपोट 
तुम्हारी पत्नी की समझ गया   
फ़ैल होती तुम्हारी किडनी की डीटेल 
तुम्हारी पत्नी की पढ़ गया !

पति का माथा ठनका 
बोला जल्दी करो उपाय 
पत्नी की ही किडनी 
मेरी बॉडी में फिट कराओ 
हाय मुझे बचाओ 

कैसे भी मुझे बचाओ ।



Friday 1 November 2013

कुछ इधर-उधर की .....

दोस्तों नमस्कार.




बहुत लम्बे अंतराल के बाद आज आप सब  से मुखातिब हुई हूँ।  लेकिन ये सत्य है कि इतने अंतराल में,  मैं आप सब साथियों को अपनी प्रतिदिन की दिनचर्या  में कभी भुला  नहीं पायी और सच में कभी ऐसा चाहा  भी नहीं . आज आप सब के बीच आने के लिए ऐसा नहीं है कि  कोई प्रेरणा स्त्रोत रहा...… लेकिन मन आज बरबस ही आप सब की तरफ खींच लाया, बेशक इसकी वजह आप सब से मिला अनंत प्यार ही रहा है. 

साथियों इस लम्बे अंतराल के बीच बहुत कुछ देश में घटित होता गया . कुछ हालातों ने कई बार मन को व्याकुल, अस्त-व्यस्त किया, झिंझोड़ा। शायद  शब्द ही  नहीं है अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिये….शयद यही वजह रही होगी की मन निशब्द हो गया और कुछ भी आप सब से सांझा न कर सकी …अभि भी देश के हालात उस देहलीज़ पर खड़े हैं कि  कहीं भी कुछ भी घटित हो सकता है…और  जो भी घटित हो जाये कोई आश्चर्य-जनक हादसा न  कहलायेगा …क्युकि  देश के राजनेता सदाचार, आचार-विचार, विवेक , भ्रष्टाचार , लालच की सभी सीमायें लांघ चुके हैं  . 

हाँ इतना अवश्य महसूस किया जा रहा है की देश अब नयी करवट लेने को है… और कौन सा चेहरा नेताओं का अब सामने आता है ये सब अभी अंधकार  और विचार-मय  है. 

एक तरफ पाकिस्तान हम पर आँखे लगाए बैठा है, दूसरी तरफ चीन हर रोज नयी वेश-भूषा में रंग बदलता हुआ नज़र आता है. अन्य पडोसी देश  भी मौके के इंतज़ार में है तो इधर नेता लोग हर रोज एक नया इतिहास गढ़ने में लगे हैं …. 
आज भी मन कुंठाओं में घिरा कुछ लिख कर अपने मनोभावोन को पूर्ण रूप देने में असमर्थ महसूस करता है.  लेकिन आप सब से आज मन ने कुछ साँझा करने की तीव्र इच्छा की ही है तो इस बीच जो कुछ मैंने फेसबुक पर कभी कभी पोस्ट किया उसी में से कुछ  आप सब के लिए पेश करती हूँ, और हाँ वादा तो नहीं करती लेकिन कोशिश जरूर करुँगी की अब फिर से आप सब के बीच ही यथासंभव रहने की कोशिश करुँगी ….वो कहते हैं न…कोशिशे कामयाब रहती हैं …वादे टूट जाते हैं …. तो चलिये… हो जाइये तैयार पढने के लिए मेरी अभिव्यक्तियां  … 

आज जिस भ्रष्टाचार से देश गुजर रहा है तो जरूरत है एक ऐसे प्रतिनिधि की जो अपनी तानाशाही दिखा कर, डंडे के जोर पर इस देश की व्यवस्था को दुरुस्त कर सके. और बेशक जनता अगर मोदी में वही तानाशाह वाला रूप देखती है तो कोई गलत नहीं है. आज मोदी जैसे ही सख्त नेता की जरूरत है हमे.

माना नमो ने देवालय संग शौचालय का आलाप किया 
युवराज ने भी बकवास कह क्या न उपहास किया ?
हाथ ने जब न उसका विरोधाभास किया 
तो फिर नमो पर क्यूँ हा-हा-कार किया !!

लालू जी अब कैदियों को पढ़ा रहे 
राजनीति का क, ख , ग 
बिहारी बे-चारा हो गये 
बोलो रा -रा - रा- !!

कोई रोता घोटालों को कोई रोता शौचालयों को 
सेना न जाने कब तक बलि देती रहेगी 
कुर्सी के कुकरमुत्तो के कर्मो की सजा खुद सह जाने को ॥




दीपावली की  सबको हार्दिक बधाई। 


Monday 28 January 2013

हाँ मैं नारी हूँ--


रश्मि प्रभा जी के आह्वान पर इस रचना को रचा गया------और गणतंत्र दिवस पर उनके ब्लॉग परिचर्चा पर इसे शोभा पाने का अवसर मिला---लीजिये आपके विचारों हेतु प्रस्तुत है ---

हाँ मैं नारी हूँ--





जिस   पैदाइश   पर   मुंह  बिसूरा   गया 
फिर   कंजक   बना   बेशक   पूजा   गया 
लिख  दिए  कुछ  शब्द मेरी सलेट पर कि -- 
ढका, नपा -तुला, दबा रहना सिखाया गया 
हाँ   वही  संस्कारों  में   दबी  नारी  हूँ  मैं।

चुभती    नज़रें    बदन    पर   सरकती   रही 
अफ़सोस शर्म से खुद की ही नजर झुकती रही 
पढ़-लिख  के  नवाबी   सनदें  छुपा   दी  गयी 
चूल्हे-चौके  की  मजहबी  सरहदें  बना दी गयी --
हाँ   वही   अपनों   में  मिटती  नारी  हूँ  मैं।

बूँद-बूँद    रिश्तों     को     बचाती    रही 
आजन्म सौगाती रिश्तों  में संवरती  रही 
हादसों से  खंडर  में  तब्दील  होती  गयी  
बर्दाश्त की हदें भी  मुझी को दिखाई गयी --
हाँ  वही  टुकड़ों  में  बिखरी  नारी  हूँ  मैं।

कभी उम्र तो कभी जिन्दगी को जलाया गया
जख्म   देकर   नासूरों    को    छीला   गया 
धिक्कार  कर  सारे  अधिकार हनन कर दिए  
चोटों    को    सहलाती,    मर्माती,   रंभाती 
हाँ   वही   दर्द  की   परछाई   नारी   हूँ   मैं।

मुझ  पर ईमान खोता, मेरे पहलु में रोता 
मुझसे  ही जन्मा,  मुझी में विलीन होगा 
ओ अधूरे पुरुष मुझसे ही तू सम्पूर्ण होगा 
मैं    ही    हूँ    दुर्गा,   मैं    ही    भवानी, 
हाँ    वही    सम्पूर्ण     नारी     हूँ     मैं।

मैं   चाहूँ   तो   क्षण   में  तुझे  रौंद  दूं 
अपने  ही  जख्मों   से   तुझे   तोल  दूँ 
मगर  अम्बा  से  पहले  जगदम्बा हूँ मैं 
दुर्गा     से      पहले    गौरा     हूँ    मैं 
तेरी तरह अधूरी नहीं,सम्पूर्ण नारी हूँ मैं।


http://paricharcha-rashmiprabha.blogspot.in/2013/01/5.html

Monday 7 January 2013

फ़ासले ....





इजहार, इकरार 
की कोई कसावट 
बुन ही नहीं सका 
तुम्हारे लिए 
ये मन !

बेगानेपन का एहसास 
फांसले तक्सीम 
किये रहा 
तमाम उम्र .

भोंडेपन, घुन्नेपन,
हीनता से ग्रसित अहम्  
और तिस पर 
मगरुरता से 
लिसलिसाता पौरुष 
तुम्हारे अधिकार से 
सदैव दूर करने में 
सहायक रहे 

दायरों,रिवाजों में 
बंधा ये वजूद 
छटपटाता रहा 
मासूम आँखों के 
तिलिस्म से 
निकलने के लिए 
और तुम्हारी 
"मैं-मेरा " की  
हर चोट  को 
सहता रहा 
सिर्फ 
इसी उम्मीद  में 
कि शायद एक दिन 
तुम जिम्मेदारियों 
का बोझ खुद उठा कर 
कर्म की राह पर चल 
सम्पूर्णता की  मजिल 
पा सको।