जानते हैं
सरहद होती नहीं
कोई ईमान की..
ये भी सच है कि
हद होती नहीं
कोई फ़र्ज़ की .
तब क्या करे
वो गरीब विधवा
जो निस्सहाय
और निरीह हो ?
क्या करे वो
जब छोटे बच्चों की
जिंदगी की
सूत्रधार हो ?
इस दुनियां के
मकड़जाल में,
जब रूप की धूप
तन पे हो
और इंसानी
भूखी आँखों का
ना कोई
दीन ईमान हो.
कैसी कठिन डगर है उसकी
जिसका ना
सरमायेदार हो ?
चल दिया जो छोड़
उसे जूतों में लगी
धूल सा,
चल दिया जो
पोंछ कर
कुर्बानियां उसकी
काँटों के पापोश पर.
क्या करे वो जब
आत्मा से बड़े
पेट का संताप हो ?
तब न क्या
रात के अंधेरों में
चिल्लर सी
खर्च हो जायेगी वो ?
या जिंदगी की
शतरंज पर
हर मोहरे से
पिट जायेगी वो ?
हाय कैसी ये दुर्गति,
ये कैसा अभिशाप है
हाय रे विधवा
गरीबी ही तेरा
श्राप है ...!!
51 comments:
अनामिका बहन! एकदम रेखाचित्र खींच दिया है आपने विधवा स्त्री का और उसकी व्यथा का..ऐसी मजबूरियाँ तोड़ देती हैं, सहारा देने वाले कम और अस्मत लूटने वाले कई होते हैं...सिर झुकाए हूँ!
हर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
हाय कैसी ये दुर्गति,
ये कैसा अभिशाप है
हाय रे विधवा
गरीबी ही तेरा
श्राप है ...!!
गहरी सम्वेदनाएं प्रकट करती रचना!!
सभी ही अच्छे शब्दों का चयन
और
अपनी सवेदनाओ को अच्छी अभिव्यक्ति दी है आपने.
क्या करे वो जब
आत्मा से बड़े
पेट का संताप हो...
अनामिका जी...इस भावपूर्ण रचना में
ये पंक्तियां ही आपके सवालों का जवाब बनकर उभर रही हैं.
aapke bhavon ne dil ko chhu liya .
es bhavuk rachna ke liye dhanyvad
एक भावनात्मक सहारा आवश्यक है, वह कोई भी हो।
uttarvihin prashn vah kya bat hai dil ko chhu gayi
हाय कैसी ये दुर्गति,
ये कैसा अभिशाप है
हाय रे विधवा
गरीबी ही तेरा
श्राप है ...!!
मार्मिक अभिवयक्ति है। अच्छी लगी रचना। शुभकामनायें
मार्मिक भावाभिव्यक्ति ...
गहरी सम्वेदनाएं प्रकट करती रचना!!
फर्ज़ के सामने एक गरीब नि:सहाय स्त्री की मर्मान्तक पीड़ा को बहुत सटीक शब्दों में उकेरा है ...
बहुत संवेदनशील रचना
बहुत ही मार्मिक रचना को जन्म दिया है आपने!
--
बधाई!
अच्छी कविता ।अगर थोड़ी सी बात इसमे उस गरीब विधवा के समाज से विद्रोह की जुड़ जाती तो इसके सामाजिक सरोकार स्पष्ट हो जाते ।
गहरी सम्वेदनाएं प्रकट करती बेहतरीन प्रस्तुति
अनामिका जी हर बार की तरह इस बार भी बहुत ही संवेदात्मक कविता की रचना की है आपने !
मार्मिक अभिवयक्ति है।
बहुत ही अच्छी लगी आपकी कविता !
मार्मिक स्थिति है समाज में हर अकेली लड़की की ...इस बेचारी का फायदा उठाते समय हर इंसान मानवीयता और इंसानियत जैसे शब्द भुला देता है ! अकेला होना अभिशाप ही है ..
या जिंदगी की
शतरंज पर
हर मोहरे से
पिट जायेगी वो ?
हाय कैसी ये दुर्गति,
ये कैसा अभिशाप है
हाय रे विधवा
गरीबी ही तेरा
श्राप है ...!!
marmik rachna jo rula de padhte huye ,main samaj ke aese niymo se dukhi ho jaati hoon jo abla ki madd karne ki vajaye use ulahana se kuchal deta hai .bahut sundar likha hai .
राजा राम मोहन राय जिस देश को न समझा पाए उसे सुधारना कटिन तो होगा
गरीबी स्वयं किसी कोढ़ से कम न थी। उस पर से यह वैधव्य! ओह!
अत्यंत भावपूर्ण .............
अगर यही विधबा ओर नि:सहाय स्त्री हिम्मत ना हारे तो, बहुत कुछ कर सकती है, नारी मै बहुत ताकत है, ओर दुनिया भी उसे नि:सहाय ओर कमजोर ना समझे, हमारे घर के पास एक बुढिया थी जिसे सब माता जी कहते थे, जवानी मै ही विधबा हो गई, पांच बच्चे थे छोटे छोटे दुसरो क्र कपडे सी कर मेहनत कर के बच्चो को डा०, इंजिनियर बनाया, ओर अपने जेसी महिलाओ को हमेशा उपदेश देती थी कि कभी भी अपने आप को कमजोर मत समझो, कभी हाथ मत पसारो, किसी का एहसान कभी मत लो, हिम्मत से सब कर हो सकता है कभी हार कर इज्जत मत बेचो.... इसी लिये सभि उन्हे माता जी कहते थे, उन का कहना एक हुक्म की तरह से होता था, जबकि वो सब से प्यार से बोलती थी, आप की रचना बहुत अच्छी लगी लेकिन आप की रचना पढ कर माता जी की बाते याद आ गई
hiiiiiiiiiii
kaisi ho.... :)
bohot hi gehri kavita hai...aur katu satya bhi. bohot khoob...
गहरी सम्वेदनाएं प्रकट करती रचना!!
अत्यंत भावपूर्ण !
मन को गहराई तक भिगो गयी आपकी रचना ! गरीब विधवा के विमर्श को बहुत काव्यात्मक और कलात्मक अभिव्यक्ति दी है आपने ! हाय कैसी ये दुर्गति,
ये कैसा अभिशाप है
हाय रे विधवा
गरीबी ही तेरा
श्राप है ...!!
सत्य ही गरीबी किसीके भी जीवन का जीवन का सबसे बड़ा अभिशाप है ! इतनी संवेदनशील रचना के लिये बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं !
क्या लिखूं ...
एक गरीब विधवा की व्यथा को बहुत ही संवेदनशील शब्दों से व्यक्त किया है आपने ...
निःशब्द ...!
बहुत संवेदनशील ....
मार्मिक अभिवयक्ति !!!
बेहद सुन्दर पोस्ट बधाई .
अत्यंत मार्मिक -
बहुत मार्मिक और संवेदनशील रचना । समाज को आइना ।
बेहद मार्मिक और संवेदनशील अभिव्यक्ति।
बहुत ही सही जगह कलम रखी है ....ये भी विडंबना है एक विधवा और लाचार स्त्री की ....वह मजबूरन उस राह पर चलने को मजबूर हो जाती है .....!!
हाय कैसी ये दुर्गति,
ये कैसा अभिशाप है
हाय रे विधवा
गरीबी ही तेरा
श्राप है ..
बहुत ही मार्मिक ... गहरी रचना है .... संवेदनशील ... विधवा नारी के मन को जिया है आपने ....
हाय कैसी ये दुर्गति,
ये कैसा अभिशाप है
हाय रे विधवा
गरीबी ही तेरा
श्राप है ...!!
Bahut hi gahan chintan ko majboora karane vali ek yatharthaparak rachna.
Poonam
क्या करे वो जब
आत्मा से बड़े
पेट का संताप हो ?
तब न क्या
रात के अंधेरों में
चिल्लर सी
खर्च हो जायेगी वो ?
.....बहुत ही मार्मिक रचना....दिल को अन्दर तक छू लेती है...आभार...
संवेदनशील और मार्मिक ....
एक विधवा की व्यथा और कथा को सही रेखांकित किया ....
बेहद मार्मिक। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
कोटि-कोटि नमन बापू, ‘मनोज’ पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें
हाँ, यही त्रासदी हैं एक गरीब विधवा की, विधवा ही क्यों? गरीबी वो अभिशाप है की जिसके बीच में कभी जवान बेटी , बहू और पत्नी सुरक्षित नहीं है. कितनी भूखी आँखें उनकी गरीबी के तबे पर अपनी हवस की रोटियां सेक कर उन्हें ही परोसने का अहसान दिखाना चाहते हैं. वे खुद मेहनत करके भी पेट भरना चाहें तो ये दुनियाँ उन्हें बहुत बार खींचती है दलदल में और वे हर बार बच कर ईश्वर को धन्यवाद देती हैं और कोसती भी है कि ये गरीबी दी तो फिर सुन्दरता और जवानी क्यों दी?
तब न क्या
रात के अंधेरों में
चिल्लर सी
खर्च हो जायेगी वो ?
एक बेरहम सच को शब्द दिए है आपने !
कमाल का कलाम !
मार्मिक चित्रण!
आशीष
--
प्रायश्चित
बढिया.........
सवेदनशीलता कि हद तक कविता के माध्यम से पहुंचा जा सकता है......... आपके ये कविता ये बताती है.
साधुवाद.
समाज की दुखती रग को बहुत ही संवेदनशीलता के साथ टटोल कर आपने शब्दों का मरहम लगाया है...आपकी संवेदना को नमन।
Hmmmm garibi abhishaap to h aur gareeb vidhwa? maano kodh me khaaj.. behad samvedansheel aur hridayasparshi rachna..
Ye rachana padhke to antarme jaane kitni khalbali mach gay...aankh bhar aayi..
गहन अभिव्यक्ति!
क्या करे वो जब
आत्मा से बड़े
पेट का संताप हो ?
संवेदनशील रचना
बहुत ही सुन्दर ग़ज़लरचना ! मर्मस्पर्शी चित्र बनाये हैं आपने !
मार्मिक...वास्तव में शब्द चित्र खीच डाला आपने.
-पंकज झा.
गरीब विधवा की मार्मिक चित्र बनाया आपने
जब वो गुज़र गयी
सब ने कहा-
घर बसा ले
दुनिया चलती रहती है
आखिर दो रोटी बनाने
वाला कोई चाहिए
लेकिन जब वो विधवा हुई
तो सुब्ने ये क्यों नहीं कहा?
घर बसा ले फिर
दो मुट्ठी आटा
लाने वाला तुझे भी
कोई चाहिए............
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