Sunday 28 February 2010

कहो तो लौट जाते है.








कहो तो लौट जाते है..
आधी राह चल लिए तो क्या..
आधी जिंदगी खो जाए तो क्या..
आधी जिंदगी जी भी तो लिए है..
कहो तो लौट जाते है..
अभी तो अश्क पलकों में कैद है..
अभी जज़्बात दिल के आगोश में है..
अभी सैलाब नही आए..
अभी जुबान ने ज़हर नही उगले..
अभी तो हर बात अपने हाथ में है..
कहो तो लौट जाते है..
अभी तो शुरूआती दर्द-ऐ-गम है..
अभी खंज़र चुभे नही दिल में..
अभी बिलबिलाया नही चाक दिल हो कर..
अभी वफ़ा की उमीदे है दिल में..
बेवफाई के अभी चर्चे आम नही है..
कहो तो लौट जाते है..
अभी तो नए नए मरना सीखे है..
प्यार में ठंडी आहे भरना सीखे है..
दिल अभी जुदाई में तड़पना सीखा है..
आँखों ने अभी तो शब् में जलना सीखा है..
मेरे बारे न कुछ सोचो..
घर नज़दीक है...मंजिल दूर है बाकी..
कहो तो लौट जाते है..
मुझे तो तुम्हारे साथ
जीने मरने की हसरत है..
कांटो से मुझे उलझने की आदत है..
दिल को तार-तार कर
लहू-लुहान हो जीना भी मुझे आता है..
ये रास्ता प्यार का रास्ता..
ये आंधी-खार का रास्ता..
बहुत दुश्वार है जाना..
इस रास्ते का हर जर्रा भी
इक खार है जाना..
कहो तो लौट जाते है..
तुम्हारा साथ पा लू तो ये
दो जहा मिल जाए..
तुम्हारी नजदीकियों से
मुश्किल राहे काफूर हो जाए..
तुम्हारे गेसुओ की छाव से
सूरज की तपिश भी दूर हो जाए..
जिस्मो के नर्म उजालो से..
मेर जिंदगी पुर-नूर हो जाए..
छुडा लो गर हाथ अपना तो
मेरी औकात ही क्या है..
पर तुम अपनी बात बतलाओ..
मेरे बारे न कुछ सोचो..
कहो तो चलते रहते है..
कहो तो लौट जाते है.....!!

Wednesday 24 February 2010

लम्हा-दर-लम्हा मुझे तड्पाते क्यू हो,
















लम्हा-दर-लम्हा मुझे तड्पाते क्यू हो,

हर पळ मुझे याद तुम आते क्यू हो ..!

लो मैने रख तो दिया तुम्हारा हाथ अपने सीने पर

तिनका तिनका अब मुझे और जलाते क्यू हो ??



मुहोब्बत की है हमने, तो ये अधूरी सी क्यू है ,

जुदाई की सजा है हर पळ, मिलन को दूरी क्यू है !

जला के खुद को मैने तो वफा का दस्तूर निभाया है ,

बे-वफा तुम भी नही तो फिर ये मजबूरी क्यू है ?



बहा - बहा के अशक मैने तो मुहोब्बत को पूजा है,

हर अरमान जला कर इस बेल को सींचा है !

हर मजबूरी भी हमने हंस के निकाली है ..

बंदिशो के कांटे फिर तुमने ही बोये क्यू है ?



आने वाले वक़्त की आहट मुझे हर पळ डराती क्यू है ,

फासलो के बाद यू ना चाहोगे, मुझे ये दहशत सी क्यू है ?

मै इस सोच में हर पळ गमगीन हुई सी जाती हू ..

जिंदगी अलाव सी हर पळ जळती नजर आती क्यू है ????

Wednesday 17 February 2010

कटु सत्य





















बिछोह की कराहती वेदना से
मै अस्त-व्यस्त सा हू.
अतीत के रेश्मीन धागे
जल चुके है.
जो बाकी हैं..
वो वेदना और व्यथा से सने हुये हैं .
कर्कशता और कुप्ता का
घाव लिए हुये हैं .
अब आगे की ओर कूच करना है .
जीवन की बंजर भूमी पर
एक छोटा सा सोता लाना जरुरी है .
मगर अभी तो पानी के माद्धिम वेग में
केवळ प्यास है.
इसकी कल-कल में ..
अतृप्ती की बेचैनी घुली हुई है .
इसके किनारो पर
ताप बिखरा है
इसे छूने में भी व्यथा है.
मगर अब विदेह होकर
साहस करने का प्रश्न है.
यदि इस विषम क्षणो के
कीटो के रेशो से आशा के धागे निकल सके तो
निष्चय ही जीवन में
विश्वास को गूथा जा सकता है.
लेकिन ये सब...
म्रिग-मरीचिका सी कल्पना है.
तो फिर....
जीवन की इन बेबसी की कंदराओ में
आगे बढते रहना ही ..
वास्तविक कटु सत्य है.
और में बढता जा रहा हू ..
बढता जा रहा हू..!

Sunday 14 February 2010

ज़रुरत नही थी तुमको..




















मेरे प्यार की शायद ज़रुरत तो नही थी तुमको..
मैने ग़लत समझा...जो तुम्हे प्यार किया..
तुम्हे प्यासा समझा..तुम्हे जी जान से चाहा किया..
तुम्हे तो चाह ही नही थी फिर क्यू ये प्यार किया..!!

दिल मे बिठा के तुमने मुझे अपना कहा..
बस अपना कहा..पर मन से ना इकरार किया..
मैं पगली दिवानी खुद को ही भूल गयी..
तुम्हारी बाहों मे तकदीर छल रही थी, मैं भूल गयी..

तुम निष्ठुर हो...मैं अश्क बहाउ तो क्या..
तुम चोट देते हो..मैं दर्द से कराहू तो क्या..?
इसलिए आज मैं होटो को सिये आहें भरती हू..!!
मन रोता है मेरा मगर रुखसार पे हँसी रखती हू..!!

रोने को अब अश्क भी बाकी कहाँ बचे है..
प्यास बुझाने को अब मयखाने कहाँ बचे है..!!
प्यार के बोल जो तुम अब बोलते हो ओ जाना..
जख्म और हरे होते है..दिल के दर्द और बड़े है..!!

मत छुओ मुझे अब यू ही तन्हा रहने दो..
अशांत सागर हू मैं और ना पत्थर फैको .
दम ना निकल जाए इस दर्द को पीते-पीते..
रहने भी दो अब और ना मरहम से सेंको .!!

Thursday 11 February 2010

मुझे क्षमा करना...



















सागर तो हू..
मगर सतह मरूस्थल सी है
और तासीर उस रेगीस्तान जैसी..
जो प्यासा है प्यार के लिए..

मै तुम से दूर रह कर
खुद को भुलाये रहता हू..
उमडते सागर की
कल-कल करती लहरो सा
लोगो की भीड में
सवयं को उलझाये रहता हू.

मगर पाता हू जब भी
तुम्हे अपने करीब..
भूल जाता हू सीमाये
बिखर जाता हू,
छुपा लेना चाहता हू खुद को
तुम्हारे दामन में.

पिघला देना चाहता हू..
जर्द पडी दिवारो की
बर्फ को..
गरम सांसो की महक में..

मुक्त होना चाहता हू
कुछ पलों के लिए
विषाक्त, छीछ्लेदार
जिंदगी की केंचुल से

मै जानता हू तुम्हारी सीमाये
मगर अनियंत्रित हो जाता हू
तुम्हारे सानिध्य में
तुम्हारे करीब आने की आकांक्षा
उदिग्न हो जाती है
और मन आत्म -समर्पण
में डूब जाता है.

मनः स्थिती की
इस यात्रा से गुजरता हुआ
मै खो देता हू
खुद के आत्म-बळ को

शरमिंदा हू मै स्वयं से
जो प्रेम लोलुपता में फसा
भूल जाता हू तुम्हारी बेबसी .

आज में पश्चाताप में डूबा हू..
अपनी क्षुद्रता के लिए
क्षमा याचना भी नही कर सकता
डूबा हू अपने ही अहम में..
और कुचला जा रहा हू..
खुद-ब- खुद ही
अपने संताप के पहियो में.
हो सके तो
मुझे क्षमा करना.

Thursday 4 February 2010

मत करो मां मुझे इतना प्यार...


















मत लगाओ अपने सीने के पास
मत करो मां मुझे दिल से प्यार
नसीब ने ठोकरे दी हो जिसे
क्यू सुखाने चले तुम
उसके आंसू तमाम
छोड दो अकेला
जहां में उसे
छोड दिया जिसके रब ही ने जिसे
रेहने दो उसे उसकी
कडवाहटो के साथ
मत बढाओ मा दर्द मेरा
देकर अपने आंचल की छांव
सूख चला जो वृक्ष हू मै
वेदनाओ से आतप वक्ष हू मै ..
सीलन भरी है ये जिंदगी मेरी
नासूरो से है दिल की धरती अटी
कोशिश बहुत थी, कि
दो पळ को सुख की धूप पकड पाऊ
अपने गीले जज्बात सुखा पाऊ
कही कोई हवा मिल जायें
दिल के कोठर की बंद..
सीली गलियो को अपनी
लहर दे जायें.
मगर मां ऐसा होता नही
जिसे अपनाना चाहा
वो मेरा होता नही
पळ दो पळ की खुशियो के पीछे
म्रिग -मारीचीका सी जिंदगी
भागी जाती हैं क्यू
अनजान, असीमित मंजिल हैं..
फिर भी ये जिंदगी जीती जाती हैं क्यू
मां तुम भी दुत्कारो ना मुझे
जो आ गयी हू तुम्हारे दिल के पास
मत लगाओ इतना करीब
अपने सीने से
मत करो मां मुझे इतना
दिल से प्यार.