Wednesday 29 June 2011

मुझे पनाह दे दे ..















अपनी जिंदगी में मुझे  पनाह दे दे 
आगोश में  छुपा, मुझे जन्नत दे दे. 

प्यासी है रूह, कब से तेरी ही चाहत में 
अपने लबों की छुअन से इसे सागर दे दे .

मर न जाऊँ कहीं,  दुनियाँ के कहर से ...
कयामत आने से पहले शानों का सहारा दे दे.

अपनी जिंदगी में मुझे  पनाह दे दे 
आगोश में  छुपा, मुझे जन्नत दे दे. 

फितरत है दुनियाँ की तो ज़हर देने की 
उस से पहले, इन्ही हाथों से मुझे रुखसत दे दे..

बे-रब्त-ओ-मुतासिफ उम्मीदें डुबो दें ना कहीं 
तू  मुझे शब -ए-महताब सी रैईनाइयाँ दे दे..

अपने मसकान अपनी फासिल का सहारा दे दे...
आतिश-ए-दोज़ख़् मे जाने से पहले अब्र-ए-बहारा दे दे...

अपनी जिंदगी में मुझे  पनाह दे दे 
आगोश में  छुपा, मुझे जन्नत दे दे. 


शानों = shoulders    बे-रब्त = unfulfilled/adhuri    मुतासिफ = sorroful / dukh bhari

शब -ए-महताब = full moon light/poonam ki raat      रैईनाइयाँ  = beauty/sunderta

मसकान  = home/ghar     फासिल  = walls /diware

आतिश-ए-दोज़ख़्  = fires of narak / narak    अब्र-ए-बहारा  = clouds of spring/ khushi ke pal.

Tuesday 21 June 2011

फिर वही गम फिर वही तन्हाई है...

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दोस्तों, सबसे पहले तो उन सब दोस्तों को धन्यवाद जो मुझे  और मेरे लेखन को निरंतर याद करते रहे और मुझसे बार बार आने के लिए आग्रह करते रहे. आप सब का प्यार मुझे एक बार फिर यहाँ आपके बीच  खींच लाया है.  कुछ निजी व्यवस्तताओं की वजह से भी आप सब से दूर रहना पड़ा... अब कोशिश करुँगी कि ये  आपसी भागीदारी बनी रहे.  एक लम्बे अंतराल के बाद आज आपकी महफ़िल में अपनी कलम के उसी पुराने दर्द भरे रंग के साथ हाज़िर हूँ....

















फिर वही गम फिर वही तन्हाई है

हँसते हँसते  फिर मेरी आँख भर आई है..

तुझसे मिलना भी एक इत्तफाक था..
मिल के बे-इंतहा चाह लेना भी मेरा जुनून था 

तेरी बाहों में मैने हर सूँ  सुकून  पाया था
गम पिघल पिघल के तेरे  कन्धों  पे बह आया था

हर अश्क  पोंछ तूने भी मुझे सीने से लगाया था
गुमनामी की इस ज़िंदगी को तूने बखूबी संवारा था

तूने भी चाहा था बेशुमार मुझे..
मेरे बेचैन जज़्बातो को तूने ही सहलाया  था

मेरी ज़िंदगी की मगर बदनसीबियाँ तो देख..
इन लकीरों  ने हर लम्हा आतिश-ए-दोजख बनाया है..

ज़िंदगी मेहरबान होकेर भी ना-गवार हुई..
अरमान महके फिर भी ज़िंदगी जल के खाक हुई..

हर शब पे गम-ज़दा हो ज़िंदगी को खोती हूँ..
लिपट के अपनी लाश से आज मैं रोती हूँ.

फिर वही गम फिर वही तन्हाई है
हँसते हँसते  फिर मेरी आँख भर आई है..!!