Sunday 29 August 2010

तो कुछ और कहूँ...






















अपने दिल की उदासी को छुपा लूँ तो कुछ और कहूँ
अपने लफ़्ज़ों से जज्बातों को बहला लूँ तो कुछ और कहूँ.

अपनी साँसों से कुछ बेचैनियों को हटा लूँ तो कुछ और कहूँ
धूप तीखी है, जिंदगी को छाँव की याद दिला दूँ तो कुछ और कहूँ

चांदनी रातें कैसे तडपाती हैं, रुलाती हैं, अरमानों का घूंघट उठाती हैं..
सावन बुलाती हैं, रुखसारों के इन भावो को छुपा लूँ तो कुछ और कहूँ..

जिंदगी के थपेडों से मोहलत मिले, वक़्त कुछ खुशियाँ तो दे झोली में..
कटे पंखों से बहता है लहू, ये टीस सीने से मिटा लूँ तो कुछ और कहूँ .

नरम हाथों ने जिसे पाला था, देखें आकार कितने मायूस हैं जिंदगी से
हम आँखों के तारों के छालों की दवा वो करें तो कुछ और कहूँ ..

प्यार से 'जानाँ' कह कर पुकारा था उनके प्यार की कोई छुवन तो मिले
मन के रिश्ते की पाकीज़गी को वो निभा लें तो कुछ और कहूँ.

अपने हाथों की लकीरों में सजाया था जिसने वो किस्मत भी सजा दे
जन्म देने वाले ओ खुदा मेरी खुशियाँ भी जन्माते तो कुछ और कहूँ.

Tuesday 24 August 2010

कर्मठ बनें..










उम्मीदें ...उम्मीदें
और बस उम्मीदें
फिर कुछ तानें बानें
सपनों के .

कभी सोचा है
कि....जब
उम्मीदें टूटेंगी
तो क्या होगा ?
क्या संभाल पाएंगे
खुद को ?

सपने भी तो
उधार के हैं
सदा दूसरों पर
आधारित ...
सदा किसी का
आवलंबन किये हुए
तो...
उधार के ही तो हुए सपनें.

कितना आहत होता है अंतस
कितना क्रंदन करते हैं जज़्बात
और ऐसा तो नहीं
कि पहली बार ऐसा होता है
कई बार ऐसा होता है
फिर भी हम संभल नहीं पाते.

बार बार ....हर बार
फिर वही उम्मीदें
फिर वही स्वप्न ...
क्या बिना उम्मीदों के
सांसे टूट जाएँगी ?
क्या बिना उम्मीदों के
रिश्ते छूट जायेंगे ?

हमें सीखना होगा
बिन उम्मीदों के जीना
बिन उधार के सपनो के
जीवन यापन करना.

हमें बनना होगा कर्म योद्धा
अपने बाजुओं की ताकत से
पाना होगा आसमान
अपने क़दमों की तेज़ी से
नापनी होगी ये ज़मीन
अपने विवेक बोध से
करना होगा हर मुश्किल
को आसान.

कर्मठ बनें तो
क्यों करें
झूठी उम्मीदों का
व्यापार ?
क्यों जिएँ
उधार के
स्वप्नों की जिंदगी.

Sunday 22 August 2010

जफा के कौर...



















प्यार में मिली तेरी हर रुसवायी पे जान जाती रही
जो भी तूने दे दिया, तेरा तोहफा समझ मुस्कुराती रही

हर मोड़ पे तेरी नज़दीकियाँ हाथ मुझसे छुड़ाती रही
हर फांसले की आहट मेरे अरमानों की राख उड़ाती रही

दिल की उठी हर हूक आंखो में नमी बढ़ाती रही
मेरे दिल पे तेरी मगरूर बातें जख्मों के निशां बनाती रही

याद आते रहे मुझे बीते मनुहार के वो दिन
जिस पर कि सारी रात मैं दर्द की चांदनी में नहाती रही

कैसा बे-दखल किया तूने अपने दिल के मकान से
बावफा होकर भी मै जफा के कौर खाती रही

Tuesday 17 August 2010

कोई अपने गिरेबान में झाँक के बताये..


















सब की जुबा पर एक ही राग है
देश का कैसा बिगड़ा हाल है ?
कोई गरीबी को रोता है
तो किसी ने नेता को कोसा है
कोई चीखता कानून पे
तो कोई गुंडागर्दी पे भड़कता है .

कोई मुझे एक बात बताये ...
अपने गिरेबान में झाँक के आये ...

कितनों ने अँधेरे झोपड़ों में
दीपक जलाए ?
कितनों ने सड़क पे घूमते
फटेहाल बच्चों को
पाठशाला के रस्ते बताये ?
कितनों ने एक वक्त की
थाली किसी भूखे को खिलाई ?

ऊँगली उठाते हैं देश के विकास पर ?
बराबरी करते हैं अमरीका से ?
बात करते हैं बच्चों के संस्कारों की ?

उँगलियों पे जरा वो गिन के बता दें
देश के विकास में कितने काम कर दिखाए ?
अमेरिकन जैसा ईमानदारी से
कितने टैक्स भर पाए ?
अपने बच्चों को कितना
देशभक्ति का पाठ पढा पाए ?

विकास की बात आती है
जब अपने देश की तो
लायक होते ही अपने बच्चों को
कमाने के लिए
विदेशों की तरक्की का
पहिया बना देते हैं .
खुद का बुढापा चाहे दुख में बीते
हरे नोटों की चमक में
मगर जी ललचाता है .
और बड़े गर्व से कहते हैं
हमारे बच्चे विदेश में रहते हैं.

आज के बच्चों को पता नहीं
राम -सीता कौन थे ?
और महाभारत में पांडव कौन थे..?

उन्हें पता नहीं राष्ट्र पिता कौन हैं ?
आजादी किसको कहते हैं
और आजादी के दीवाने कौन हैं ?

हमारा राष्ट्रीय गान क्या है ?
कितनी बार जय हो जय हो
का घोष होता है
और कितनी नदियों के
नाम आते हैं ?

हर माता पिता फौज में
भेजने की बजाये
विदेश भेजना पसंद करते हैं ...
तो कैसे बात करते हैं
देश में कानून की ?
किसको फ़िक्र है
देश की सुरक्षा की ?
किसे चिंता है
भ्रष्ट नेता को
पर्दाफ़ाश करने की ?

बस रोना सभी रोते हैं
फिर भी हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं
और चैन की नींद सोते हैं.
सब की जुबा पर एक ही राग है
देश का कैसा बिगड़ा हाल है .


यहाँ भी देखे....http://www.aakharkalash.blogspot.com/

Saturday 14 August 2010

वीरता को अपरिहार्य करो












सुसज्जित कर दो
संसार की
इस चित्रशाला को
अपने शौर्य से !

जो शूर हैं
वही...
सदियों तक
अमर रहे
इतिहास में..!

राजा, धनि और महाजन
क्या रह पाए कोई अमर ?

शौर्य गुण से श्रृंगार करो
इस जीवन का
जो बिना उधार के
मिल सकता है ...
आपके बाहुल्य से ही
अर्जित हो सकता है !

वैरागी क्या
परास्त करेगा
जीवन को ?

दूर भाग विषमताओं से
क्या अस्तित्व ना
खत्म कर देगा
सृष्टि का..?

शोक त्याग कर
युद्ध करो
और गीता ज्ञान का
ध्यान करो ...

कि.....

वीरता को
त्याज्य नहीं..
अपरिहार्य करो !

खुद ही भैरवी
बन जाओ तुम,
भैरवी संगीत से
रणभूमि में
बिगुल बजाओ तुम !

वीर हो तो
वीर ह्रदय में
जीवन के
अंतिम चरम सौंदर्य के
नग्न रूप को
आत्मसात करो !

केवल एक वीर ही तो
पा सकता है
अत्यंत आनंद
जीवन के अंतिम दृश्य का ..!

आम इंसान क्या
आनंद उठाएगा
मृत्यु संगीत का ?

Tuesday 10 August 2010

खामोशियाँ






















कई बार
खामोशियाँ भी
कितने झन्झावात ले आती हैं .
खामोशियाँ ...
खामोशियाँ ना रह कर
विचारों की
उठा -पटक करती हैं
मानस पटल पर.

मैं ख़ामोशी की
चादर ओढ़
अपने लब
सी लेना चाहती हूँ
नहीं करना चाहती
कुछ भी जिरह
मगर ...
जितना भी
खामोशियों को
अपनाती हूँ
प्रश्नों के कटघरे में
खडी कर दी जाती हूँ .

क्यूँ नहीं रहने देते तुम
मुझे शांत, खामोश
एक प्रश्न के बाद
दूसरा, दूसरे के बाद
फिर तीसरा प्रश्न
थकते नहीं तुम..
जब तक कि
मेरे खामोशियों के
चक्रव्यूह को
तोड़ नहीं देते हो.

मेरा चहकना भी तो
पसंद नहीं है तुम्हें
उस पर भी तो
विश्वास डगमगाता है तुम्हारा .

बात - बे - बात
कटाक्ष करते हो
बींध देते हो
कटाक्षों के वार से

मैं चहचहाना छोड़
खामोशियों को
अपना लेती हूँ
मौन की दीवारें
खडी कर लेती हूँ
अपने चारों तरफ
मगर वो भी तो
स्वीकार्य नहीं है तुम्हें.

मैं खामोशियों की
चादर ओढ़
अपने लब
सी लेती हूँ.

Friday 6 August 2010

मैं तुझसे मुहोब्बत नहीं करता.....??????


















मैं कई बार
खुद को
गफलत में डालता हूँ
कि मैं तुझसे
मुहोब्बत नहीं करता
मगर जब भी
तेरी नज़रों से
दूर होता हूँ
खुद की
आँखों की कोरों में
नमी पाता हूँ.

कई बार लगता है
कि तेरे बगैर
ये जिंदगी जी लूँगा, मगर
एक पल की भी जुदाई
बर्दाश्त से बाहर पाता हूँ.

मैं बे-फ़िक्र होने की
कोशिशें करता हूँ
कि तेरे बगैर
खुश हूँ
लेकिन...
तुझसे दूर रह कर
खुद को
हारा हुआ
जुआरी सा पाता हूँ.

ये धड़कने
चलती तो हैं
तेरे बगैर मुझमें
बेवफा बन कर
मगर...
खुद को
यतीम और
दिल में
दर्द पाता हूँ .

मैं लाख कोशिशे करता हूँ
तुझसे दूर...
खुश रहने की
मगर उड़ता है
जब भी धुंआ
याद-ए-मुहोब्बत का ..
खुद को
तन्हाइयों में
लिपटा हुआ पाता हूँ .

मैं कई बार
खुद को
गफलत में डालता हूँ
कि मैं तुझसे
मुहोब्बत नहीं करता.
मगर....

Sunday 1 August 2010

आत्मा कहाँ जाती है ?















धीमी धीमी साँसे
चल रही हैं
मैंने कहा..
अब मुझे
उस शय्या पर लिटा दो..
जहाँ मैं चिरकाल की
नींद सो सकूँ
मुझे जाना है
अब विदा होना है .

लेकिन ये मन
इन अंतिम घड़ियों में भी
उहा-पोह में भटक रहा है
मुझे सवालों के कटघरे में
खड़ा किये हुए है
मेरे पास जवाब नहीं है
इसके सवालों का .

क्या तुम बता सकते हो
ये आत्मा कहाँ जाती है ?
क्या ये संसार से,
रिश्तों से
बिछुड़ने के बाद
उन रिश्तों को याद नहीं करती ..
जो रिश्ते इसकी याद में ..
इसके बिछोह में
खाली हो जाते हैं
अथाह विरक्तता से
भर जाते हैं ?

जीवन के हर मोड पर
इन रिश्तों को
इस आत्मा के ना होने की ..
इस आत्मा से जुड़े
इस शरीर की
कमी महसूस नहीं होती होगी ?

क्या आत्मा को
एहसास नहीं होता ..
इच्छा नहीं होती
कि वापिस लौट आये
इन्ही अपनों के बीच ?

लेकिन मैं क्या कर सकती हूँ
निरुत्तर हूँ
प्रश्नवाचक हूँ
प्रश्न-भरी निगाहें लिए
मुझे तो अब जाना ही है
इस मृत्युलोक की
जीवनावधि पूरी कर..
वहाँ की यात्रा के लिए
गमन करना है .

इस मोह-माया से
बंधन मुक्त हो
खुले आकाश में
विचरण करना है
इस नश्वर शरीर से
इस आत्मा को
अब मुक्ति पाना है .