Share
मैने कई दशक पहले ही
खुद को मार लिया था..
वक़्त की स्याह चादर ने
मुझे कितनी ही तहों का
मोटा कफ़न पहना दिया था..!!
फिर तुम अचानक तीव्र गति से
मुझमे समाते चले गये..
तुमने सीधा
मेरे गमों पर ....
यूँ वार किया कि..
कफ़न -दर-कफ़न,
तह-दर-तह में लिपटा,
ये तन्हा वज़ूद,
पल भर में...
यूँ खिल उठा,
मानो ठंड से ठिठुरते
बदन पर
सूरज की पहली किरण पड़ी हो..
मानो किसी ने...
नन्हे शिशु को
अपनी गोद में...
समेट लेने का
भरसक प्रयत्न किया हो..!!
मैं इस तेज़ बहाव में,
तीव्र गति से
बहती चली गयी..!!
प्यार का प्यासा मन
ऐसे जी उठा..
मानो मुर्दे में...
जान आ गयी हो..!!
तुमने ऐसा पल भर में
ना जाने,
कैसा प्यार दिया....????
ये क्या हुआ,
ये कैसे हुआ..
पल भर को..
सब कुछ बदल गया...!!
लेकिन .....
सिर्फ़ और सिर्फ़
पल भर को......हाँ
सिर्फ़ पल भर को...!!
फिर ना जाने कौन से एहसास ने
तुम्हे मुझसे जुदा कर दिया..
कहाँ. मैं...
ख्वाबों मे खोने लगी थी..
कि तुमने अचानक..
पल भर में ही
नाता तोड़ दिया...
अपनी दोस्ती की दुहाई दे कर..
प्यार का गला घोंट दिया..!!
मैं तुम्हारे आगे हस्ती रही..
मगर असल में...
वो वक़्त....
फिर से आ चुका था..
कि मैं,
फिर से....
पल-पल में
टूट रही थी..!!
आह......
असमंजस्ता...
विक्षिप्तता...
की हालत का ये दौर...
फिर से...आ गया था..
और मैं जूझ रही थी..
अपने आप से...!!
क्यूंकी.....
आज मैं...
फिर मर गयी हूँ..
दोस्ती के हाथों...
फिर एक बार..
हाँ फिर एक बार
कत्ल कर दी गयी हूँ..!!
मैने तो कई दशक पहले ही
खुद को मार लिया था..
वक़्त की स्याह चादर ने
मुझे कितनी ही..
तहो का कफ़न पहना दिया था..!!
क्यूँ????
तुमने ये सब क्यूँ किया...?
क्यूँ आए थे...
मेरी ज़िंदगी में..???
क्यूँ अपने प्यार के...,
अपने विश्वास के...
अपनेपन के...
पुष्प सजाए थे...???
इस कई कफनों मे लिपटे...
तन्हा बदन पर...?
क्या मिला तुम्हें..?
मुझे यूँ फिर से मार कर..,
मुझ मरी हुई को...
क्या और मारना बाकी था...??
क्या मिला तुम्हें??
बताओ क्या मिला तुम्हे???????
मैने कई दशक पहले ही
खुद को मार लिया था..
वक़्त की स्याह चादर ने
मुझे कितनी ही तहों का
मोटा कफ़न पहना दिया था..!!
फिर तुम अचानक तीव्र गति से
मुझमे समाते चले गये..
तुमने सीधा
मेरे गमों पर ....
यूँ वार किया कि..
कफ़न -दर-कफ़न,
तह-दर-तह में लिपटा,
ये तन्हा वज़ूद,
पल भर में...
यूँ खिल उठा,
मानो ठंड से ठिठुरते
बदन पर
सूरज की पहली किरण पड़ी हो..
मानो किसी ने...
नन्हे शिशु को
अपनी गोद में...
समेट लेने का
भरसक प्रयत्न किया हो..!!
मैं इस तेज़ बहाव में,
तीव्र गति से
बहती चली गयी..!!
प्यार का प्यासा मन
ऐसे जी उठा..
मानो मुर्दे में...
जान आ गयी हो..!!
तुमने ऐसा पल भर में
ना जाने,
कैसा प्यार दिया....????
ये क्या हुआ,
ये कैसे हुआ..
पल भर को..
सब कुछ बदल गया...!!
लेकिन .....
सिर्फ़ और सिर्फ़
पल भर को......हाँ
सिर्फ़ पल भर को...!!
फिर ना जाने कौन से एहसास ने
तुम्हे मुझसे जुदा कर दिया..
कहाँ. मैं...
ख्वाबों मे खोने लगी थी..
कि तुमने अचानक..
पल भर में ही
नाता तोड़ दिया...
अपनी दोस्ती की दुहाई दे कर..
प्यार का गला घोंट दिया..!!
मैं तुम्हारे आगे हस्ती रही..
मगर असल में...
वो वक़्त....
फिर से आ चुका था..
कि मैं,
फिर से....
पल-पल में
टूट रही थी..!!
आह......
असमंजस्ता...
विक्षिप्तता...
की हालत का ये दौर...
फिर से...आ गया था..
और मैं जूझ रही थी..
अपने आप से...!!
क्यूंकी.....
आज मैं...
फिर मर गयी हूँ..
दोस्ती के हाथों...
फिर एक बार..
हाँ फिर एक बार
कत्ल कर दी गयी हूँ..!!
मैने तो कई दशक पहले ही
खुद को मार लिया था..
वक़्त की स्याह चादर ने
मुझे कितनी ही..
तहो का कफ़न पहना दिया था..!!
क्यूँ????
तुमने ये सब क्यूँ किया...?
क्यूँ आए थे...
मेरी ज़िंदगी में..???
क्यूँ अपने प्यार के...,
अपने विश्वास के...
अपनेपन के...
पुष्प सजाए थे...???
इस कई कफनों मे लिपटे...
तन्हा बदन पर...?
क्या मिला तुम्हें..?
मुझे यूँ फिर से मार कर..,
मुझ मरी हुई को...
क्या और मारना बाकी था...??
क्या मिला तुम्हें??
बताओ क्या मिला तुम्हे???????