Thursday 14 January 2010

नये दौर की मुहोब्बत...

















अब शिकायतो का दौर खतम हो गया
तेरी महफिल से उठा और बेगाना हो गया

तूने पलट के भी ना देखा अपने तलबगार को
ऐसा छिटका दामन से कि दिल से भी जुदा हो गया

हश्र ऐसा होगा मुहोब्बत का तेरी महफिल में
दर्द वालो के ही घर में दर्द अजनबी हो गया

क्या फरक रह गया तुझमे और बे- वफाओ में
वक़्त की मजबूरियो का तू भी खैर-ख्वा हो गया

आज अपनो की खातिर तेरा प्यार इतना बढ गया
मुझे अपनो से जुदा कर तू मुझ से ही जुदा हो गया

वाह नये दौर की मुहोब्बत के दस्तूर भी हैं नये
जिस मोड पे मिला था उसी मोड पे ला के छोडा गया.

जिस दर्द से बिल्बिलाते हुये दामन पकडा था तेरा
'तन्हा' आज उसी दर्द से फिर रु-ब-रु हो गया.

17 comments:

Udan Tashtari said...

वाह नये दौर की मुहोब्बत के दस्तूर भी हैं नये
जिस मोड पे मिला था उसी मोड पे ला के छोडा गया.

-बहुत उम्दा!!

अजय कुमार said...

बेवाफ़ाई ,जुदाई और तन्हाई को अच्छे से संजोया गया है , बधाई

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

हश्र ऐसा होगा मुहोब्बत का तेरी महफिल में
दर्द वालो के ही घर में दर्द अजनबी हो गया

दर्द हो जाये अजनबी तो ज़िन्दगी में सुकून आ जाये
इसी गफलत में शायद थोड़ा वक़्त निकल जाए....

दर्द से भर-पूर ग़ज़ल.....कितना समेटेंगे दर्द को भी.....
बहुत खूब लिखा है..

श्रद्धा जैन said...

वाह नये दौर की मुहोब्बत के दस्तूर भी हैं नये
जिस मोड पे मिला था उसी मोड पे ला के छोडा गया.

bahut hi khoobsurati se likha hai aajkal sab aisa hi hai

हास्यफुहार said...

बेहतरीन।

वाणी गीत said...

वाह नये दौर की मुहोब्बत के दस्तूर भी हैं नये
जिस मोड पे मिला था उसी मोड पे ला के छोडा गया

क्या कम है की उसी मोड़ पर छोड़ गया ...जहाँ से दूसरा रास्ता तो नजर आएगा ...

जिस दर्द से बिल्बिलाते हुये दामन पकडा था तेरा
'तन्हा' आज उसी दर्द से फिर रु-ब-रु हो गया.

दर्द से घबराकर क्यों किसी का दामन पकडे..क्यों न दर्द को ही हमदर्द बना ले..दर्द खुद दवा हो जाएगा

मार्मिक ग़ज़ल....

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

dastur bhee badal gaye mohabbat ke.narayan narayan

दिगम्बर नासवा said...

जिस दर्द से बिल्बिलाते हुये दामन पकडा था तेरा
'तन्हा' आज उसी दर्द से फिर रु-ब-रु हो गया....

BAHUT KHOOBSOORAT SHER HAI .... DARD PEECHA NAHI CHODTA .....

हरकीरत ' हीर' said...

बहुत बढ़िया लिखी है अनामिका जी ये नज़्म ....मुहब्बत के दर्द से निकली आह है ये ....बहुत खूब .....!!

रंजू भाटिया said...

वाह नये दौर की मुहोब्बत के दस्तूर भी हैं नये.....बढ़िया कहा आपने ..सुन्दर लगी यह पंक्तियाँ सच्ची और अच्छी शुक्रिया

अलीम आज़मी said...

हश्र ऐसा होगा मुहोब्बत का तेरी महफिल में
दर्द वालो के ही घर में दर्द अजनबी हो गया
waah ji kya shair aapne likha hai bahut umda jitni tareef ki jaaye aapki kam hai

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

अनामिका जी आदाब
'वाह नये दौर की मुहब्बत के दस्तूर भी हैं नये
जिस मोड पे मिला था उसी मोड पे ला के छोडा गया'

खूबसूरती के साथ पेश किये हैं तमाम शिकवे-गिले
ये जीवन है, सब चलता है
आगे बढ़ते रहना चाहिये

Ravi Rajbhar said...

Bahut sunder....
Vadi Geet ki achchhi tipadi .

संजय भास्‍कर said...

bahut hi khoobsurati se likha hai aajkal sab aisa hi hai

संजय भास्‍कर said...

nice.....

संजय भास्‍कर said...

वाह नये दौर की मुहोब्बत के दस्तूर भी हैं नये.....बढ़िया कहा आपने ..सुन्दर लगी यह पंक्तियाँ सच्ची और अच्छी शुक्रिया

CS Devendra K Sharma "Man without Brain" said...

दर्द वालो के ही घर में दर्द अजनबी हो गया
.........wah.....isse bada dard dard ko aur kya ho sakta hai!!!!! masha allah!!!