आज भी कितने अधूरेपन मे जीती हे वो...उसके अंदर जो मा का प्यार पाने का आभाव है..जो आज भी उसे एक अजीब सी खलिश दे जाता है...बचपन मे मिला ये अधूरापन उसकी ज़िंदगी का अधूरापन बन चुका है..ये ऐसा दर्द हे जिसे वो शब्दो मे ढाल कर भी कम नही कर पाती..!!
जब मा की गोद मे रह कर बच्चा बड़ा होता है तब उसकी मा को उसे छोड़ कर जाना पड़ा अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए..क्यूकी घर की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नही थी की पिता घर का खर्च अकेले वहन कर सकते...घर के हालात सुधारने के लिए मा को आगे पढ़ना था, अपनी एक महीने की बच्ची को छोड़ दो साल के लिए किसी ट्रेनिंग के लिए बाहर जाना था..शायद मा के पास उसे छोडने के अलावा और कोई रास्ता नही था..शायद मा को ये एहसास भी नही था की जिस बच्ची को वो अपने सीने से अलग कर के मज़बूरीवश दूर जा रही है..वो बच्ची कितना तडफेगी ज़िंदगी भर इस प्यार के लिए..!!
शायद बाद मे मा अपने प्यार से उसकी इस कमी को पूरा कर पाती..लेकिन विधि का विधान कुच्छ और ही था..मा दो साल बाद वापिस आई तो हालात के चलते उस बच्ची को उसकी आंटी के पास भेज दिया गया..और उसकी आंटी के बारे मे तो जो कुच्छ कहा जाए कम है..एक ऐसी स्त्री जिसे मा की ममता क्या होती है, बच्चो को कैसे प्यार किया जाता है..कैसे पाला जाता है, वो नही जानती थी..ज़रा सी उस तीन साल की बच्ची की छोटी सी ग़लती पर उसे खूब पीटा जाता, आग से उसके शरीर पर घाव दिए जाते, बे-रहमी से मार खाने से उसके गाल सूज जाते....उस नन्ही सी परी का वो कांटो भरा बचपन ज़िंदगी भर का वो नासूर बन गया जो उम्र भर उसकी ज़िंदगी को टीस देता रहा...और वही मा की ममता का आभाव उसे हमेशा के लिए एक अंतहीन अधूरापन दे गया..और ये अधूरापन हमेशा हमेशा के लिए एक दर्द बन कर ठहर गया..जिसे वक़्त भी नही मिटा सका...!!
शायद बाद मे मा अपने प्यार से उसकी इस कमी को पूरा कर पाती..लेकिन विधि का विधान कुच्छ और ही था..मा दो साल बाद वापिस आई तो हालात के चलते उस बच्ची को उसकी आंटी के पास भेज दिया गया..और उसकी आंटी के बारे मे तो जो कुच्छ कहा जाए कम है..एक ऐसी स्त्री जिसे मा की ममता क्या होती है, बच्चो को कैसे प्यार किया जाता है..कैसे पाला जाता है, वो नही जानती थी..ज़रा सी उस तीन साल की बच्ची की छोटी सी ग़लती पर उसे खूब पीटा जाता, आग से उसके शरीर पर घाव दिए जाते, बे-रहमी से मार खाने से उसके गाल सूज जाते....उस नन्ही सी परी का वो कांटो भरा बचपन ज़िंदगी भर का वो नासूर बन गया जो उम्र भर उसकी ज़िंदगी को टीस देता रहा...और वही मा की ममता का आभाव उसे हमेशा के लिए एक अंतहीन अधूरापन दे गया..और ये अधूरापन हमेशा हमेशा के लिए एक दर्द बन कर ठहर गया..जिसे वक़्त भी नही मिटा सका...!!
19 comments:
कुछ बातें, कुछ पल जिंदगी भर साथ आयी छोड़ते ...... इंसान की मजबूरी या हालात पर किसी का बस नही ...... छू गया अंदर तक आपका लिखा .......
बहुत भावपूर्ण विचार , बेहद संजीदगी से भरपूर ...बहुत अच्छा लिखती हैं आप..
शुभकामनायें ...
अनामिका जी आदाब
जाने कितनी अभागी बच्चियों की कहानी बयान की गई है
भावुक कर दिया आपने
संसार अपनी गति से चलता है
जो खुद से हो सके, ऐसे बच्चों की मदद ज़रूर करनी चाहिये
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
बहुत मार्मिक लघु कथा....
ohh.. bahut hi marmik rachna...bhavuk kar diya aapne...
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श्रेष्ठ सृजन प्रतियोगिता
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प्रत्येक रविवार प्रातः 10 बजे C.M. Quiz
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क्रियेटिव मंच
bahut sunder dhang se pesh kiya hai ....aapne to chand panktyo se rula diya...bahut umda anamika ji....ati sunder
अच्छी पोस्ट!
दिल को छु गयी आपकी लिखी यह मार्मिक कहानी .शुक्रिया
तस्वीर देखते ही आँखें नम हो गयी। मार्मिक प्रस्तुति धन्यवाद्
Very impressive. Congratulations for such a nice thought stream.
Blog par aane aur sunder tippani preshit karne ke liye shukriya...likhti aap bahut achchha hein...
Atyant marmik post ---
Poonam
Aapne aankhen nam kar deen..
Gantantr diwas anek shubhkamnayen!
उफ़! दर्दनाक किन्तु सत्य.
जीवन की आपाधापी है जो जीवन से दूर लिये जाती है, जहां हम यह नहीं सोच पाते कि क्या सही और क्या गलत। बस परिस्थितियों के हाथों बिके हुए होते हैं। किसकी गलती, क्यों गलती? आदि इत्यादि पर सोचने से पूर्व मैं यह मानता हूं कि हमें सुखद घटनाओं के प्रति भी अपनी ठोस मानसिकता रखनी चाहिये। वैसे यहां मुझे ग्लैडी टैबर के नावेल कांट्री क्रानिकल की वो उक्ति बरबस ही याद आती है जिसमे उन्होने जीवन सम्बन्धित लिखा था कि- " जब तक आप की खिडकी है, जिन्दगी सनसनीखेज है।"
बहरहाल, संवेदना झलकाती हुई रचना है। किंतु मेरी नज़र में ऐसा हमारे देश मे महज 10 प्रतिशत होता होगा। वो भी शहरी जिन्दगी में।
बहुत कुछ कह डाला इस छोटी सी पोस्ट में. दिल भर आया और ऑंखें नम. सिर्फ एक माँ ही समझ सकती है इस बच्चे का दर्द बहुत सटीक और मार्मिक चित्रण किया है
बहुत मार्मिक रचना...
बच्चे का दर्द माँ ही समझ सकती है .....मार्मिक रचना
.........मार्मिक प्रस्तुति
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