जी जान से चाहती हूँ
तुम्हे मैं भुला नहीं सकती.
मन में बसी तुम्हारी बातों की
खुशबू मैं मिटा नहीं सकती.
सुख दुख में संबल देते हैं
तुम संग बीते क्षण वो सारे
विरह वेदना में तड़प कर
ये मुहोब्बत छुड़ा नहीं सकती.
कठोराघात किये होंगे
मैंने भी बहुत..
वेदना से जल चक्षु
तुम्हारे भी ..
भरे होंगे बहुत.
पर तुमसे मिले
अंतर्नाद को भी
मैं दबा नहीं सकती.
मेरी हर सोच को तुमने
विकृत नजरिया दे डाला
मन की पावनता को
यामिनी रंग में रंग डाला .
सदैव तुमने मुझे
परीक्षा की नजरों से देखा
गुणों की कसौटी पर
सदा परखते हुए देखा.
तुम्हारी परीक्षक नज़र में
गुण भी अवगुण बनते चले गये
सौन्दर्य के रूपक भी
कुरूपता के अर्थो में
ढलते चले गये .
नारी मनोविज्ञान
क्या तुमने जाना नहीं था ?
कि परीक्षक नहीं
प्रेम मयी ह्रदय ही
मेरे मन ने चाहा था.
कभी प्रेम की आँखों के..
प्रेमाभाव दिखाओ प्रिये
आसक्ति के फूल
बरसाओ प्रिये ...
मेरी सोचो को
गंगा की पवित्रता
सी नजर से
नहलाओ प्रिये ..
फिर परीक्षण नहीं..
समर्पण भाव होगा,
अवगुणों का नहीं..
गुणों का भी
प्रादुर्भाव होगा.
तुमसे लागी जो मन की लगन
वो मैं मिटा नहीं सकती.
ह्रदय से एक आह निकलती है
जिसे वर्णों और छन्दो में
मैं बता नहीं सकती.
बस एक बात कहती हूँ
कि मेरे ह्रदय में..
तुम जैसा ना आया कभी
और तुम जा सकते नहीं .
मेरी सांसो की खुशबू में
बसे हो तुम
और इन सांसो को
मैं तो मिटा नहीं सकती.
तुम्हे मैं भुला नहीं सकती.
मन में बसी तुम्हारी बातों की
खुशबू मैं मिटा नहीं सकती.
सुख दुख में संबल देते हैं
तुम संग बीते क्षण वो सारे
विरह वेदना में तड़प कर
ये मुहोब्बत छुड़ा नहीं सकती.
कठोराघात किये होंगे
मैंने भी बहुत..
वेदना से जल चक्षु
तुम्हारे भी ..
भरे होंगे बहुत.
पर तुमसे मिले
अंतर्नाद को भी
मैं दबा नहीं सकती.
मेरी हर सोच को तुमने
विकृत नजरिया दे डाला
मन की पावनता को
यामिनी रंग में रंग डाला .
सदैव तुमने मुझे
परीक्षा की नजरों से देखा
गुणों की कसौटी पर
सदा परखते हुए देखा.
तुम्हारी परीक्षक नज़र में
गुण भी अवगुण बनते चले गये
सौन्दर्य के रूपक भी
कुरूपता के अर्थो में
ढलते चले गये .
नारी मनोविज्ञान
क्या तुमने जाना नहीं था ?
कि परीक्षक नहीं
प्रेम मयी ह्रदय ही
मेरे मन ने चाहा था.
कभी प्रेम की आँखों के..
प्रेमाभाव दिखाओ प्रिये
आसक्ति के फूल
बरसाओ प्रिये ...
मेरी सोचो को
गंगा की पवित्रता
सी नजर से
नहलाओ प्रिये ..
फिर परीक्षण नहीं..
समर्पण भाव होगा,
अवगुणों का नहीं..
गुणों का भी
प्रादुर्भाव होगा.
तुमसे लागी जो मन की लगन
वो मैं मिटा नहीं सकती.
ह्रदय से एक आह निकलती है
जिसे वर्णों और छन्दो में
मैं बता नहीं सकती.
बस एक बात कहती हूँ
कि मेरे ह्रदय में..
तुम जैसा ना आया कभी
और तुम जा सकते नहीं .
मेरी सांसो की खुशबू में
बसे हो तुम
और इन सांसो को
मैं तो मिटा नहीं सकती.
63 टिप्पणियां:
waah prem ki peeda badhiya chalki hai...
चित्र एवं नज्म बहुत कुछ कह गये ।
प्रशंसनीय
Ek nari aur ek purush ke nazariye me sadiyon se yah farq raha hai...jiska itnaa khoobsoorat bayaan kar diya aapne!
बहुत अच्छी कविता .. मुझे तो बहुत पसंद आई.
मेरी सांसो की खुशबू में
बसे हो तुम
और इन सांसो को
मैं तो मिटा नहीं सकती.
अनुभूतियों और एहसासों की तीव्रता देखी जा सकती है इस रचना में.
शानदार रचना
सदैव तुमने मुझे
परीक्षा की नजरों से देखा
गुणों की कसौटी पर
सदा परखते हुए देखा.
सोचने पर मजबूर करती हैं ये पंक्तियाँ.
प्रेम से परिपूर्ण ...खूबसूरत अभिव्यक्ति...
मेरी सोचो को
गंगा की पवित्रता
सी नजर से
नहलाओ प्रिये .............लाजवाब
आईये जानें .... मन क्या है!
आचार्य जी
बस एक बात कहती हूँ
कि मेरे ह्रदय में..
तुम जैसा ना आया कभी
और तुम जा सकते नहीं .
मेरी सांसो की खुशबू में
बसे हो तुम
और इन सांसो को
मैं तो मिटा नहीं सकती.
वाह वाह वाह्………नारी मन के भावों को खूबसूरती से उकेरा है।
सादर !
प्रेम पर लिखी बेहद ही खुबसूरत रचना |
रत्नेश त्रिपाठी
प्रेम पर लिखी यह रचना ......रचना बहुत सुंदर लगी....
मेरी हर सोच को तुमने
विकृत नजरिया दे डाला
मन की पावनता को
यामिनी रंग में रंग डाला .
सदैव तुमने मुझे
परीक्षा की नजरों से देखा
गुणों की कसौटी पर
सदा परखते हुए देखा.
bahut hi sundar ,prem kasauti hi hai ,iske rahe aasaan nahi ,khoob likha .....
सुंदर रचना
prem pagi rachna ...jo aapki khasiyat hai ..
bahut sundar hai ji...
...बहुत सुन्दर!!!
मन में बसी तुम्हारी बातों की
खुशबू मैं मिटा नहीं सकती.
सुन्दर!
यह रचना आध्यात्मिक अनुभूति के साथ लिखी गई है जिसमें मीरा से, या फिर महादेवी से भाव दिखते हैं।
वाह!! बहुत खूब कहा!! उम्दा रचना!
ई आपका रचना त दिल्ली में बरसात आने के पहले ही प्रेम के बरसात में सराबोर कर गया... इस अनुभव से त कोनो अछूता नहीं हो सकता है...
प्रेम से भरी .खूबसूरत अभिव्यक्ति
नारी मनोविज्ञान
क्या तुमने जाना नहीं था ?
कि परीक्षक नहीं
प्रेम मयी ह्रदय ही
मेरे मन ने चाहा था....
अच्छी रचना ...!!
कभी प्रेम की आँखों के..
प्रेमाभाव दिखाओ प्रिये
आसक्ति के फूल
बरसाओ प्रिये ..
भावनात्मक ... दिल के ज़ज्बात अच्छे से पिरोए हैं ...
badhiya ma;m
बहुत अच्छी कविता...
Women are from Venus, Men are from Mars...?
Bahut acchha likha hai aapne!
Naari abhiyakti to kar di aapne, purush paksh sunna chahengi???
Kyun Hota Baadal Aawara.....?
शब्द शब्द प्रेम से सराबोर...
आपके प्रेम की अभिव्यक्ति मन को छू गई.......
मेरी सांसो की खुशबू में
बसे हो तुम
और इन सांसो को
मैं तो मिटा नहीं सकती.
vivj2000.blogspot.com
बहुत ही सुन्दर कविता ! किसी के मन को या भावनाओं को परखने में दृष्टिकोण का ज़रा सा भी अंतर किस तरह विग्रह और अलगाव का कारण बन जाता है इसका कोई अनुमान नहीं लगा पाता ! यदि लगा लेता तो अनेकों ह्रदय इस तरह व्यथित तो ना होते !
बहुत मर्मस्पर्शी रचना ! बधाई !
एक ईमानदारी जो महसूस होती है ! आपको शुभकामनायें !
,,........यामिनी रंग मे रंग डाला - अभिनव प्रयोग ।
प्रशंसनीय ।
bahut achhi rachna hai di ..dhadkan film ka ek dialogue yaad aa gaya .." main kisi aur ko chaahun ye ho nahi sakta.. aur tum kisi aur ko chaho ye main hone nahi dunga.. "
आपकी रचना को पढ़कर अच्छा लगा
उन दिनों में लौट गया जहां मुझे नहीं लौटना चाहिए था।
बहुत ही अच्छी रचना.
तुम जैसा ना आया कभी
और तुम जा सकते नहीं ...
awesome !
मेरी सोचो को
गंगा की पवित्रता
सी नजर से
नहलाओ प्रिये ..
ati sunder maza agaya ...bahut khoob
कविता में प्रेम भाव तो कहीं उलाहना कहीं बदले मे प्रेम पाने की आस...भावपूर्ण रचना...
मेरी सांसो की खुशबू में
बसे हो तुम
और इन सांसो को
मैं तो मिटा नहीं सकती
prem ki chaashni me pagi rachna...
कभी प्रेम की आँखों के..
प्रेमाभाव दिखाओ प्रिये
आसक्ति के फूल
बरसाओ प्रिये ...
मेरी सोचो को
गंगा की पवित्रता
सी नजर से
नहलाओ प्रिये
देर से आने के लिए माफ़ी चाहूंगी पर क्या बात है !!! आज बहुत कुछ बदला सा है क्या भाषा, क्या प्रेम प्रवाह है.बस कुछ मत पूंछो अब !!!!!!!!!??????????
आईये जानें … सफ़लता का मूल मंत्र।
आचार्य जी
बहुत मर्मस्पर्शी रचना ..प्रशंसनीय
नारी मनोविज्ञान
क्या तुमने जाना नहीं था ?
कि परीक्षक नहीं
प्रेम मयी ह्रदय ही
मेरे मन ने चाहा था.
"very touching expressions"
regards
एक पावन एहसास दिलाती पोस्ट
bahut hi bhavpurn ek ehsaas bhari rachana..uttam rachana ke liye badhai..
ek shabd me kahun...khubsurat
क्षमा करें आज फुर्सत मिली...पद्य और गद्य आपके सारे पढ़े.साफ़ शब्दों में अगर कहूँ कि आपके पास अनुभव है और कहने की कोशिश भी कहीं-कहीं सार्थक लगती है.लेकिन थोड़ा और अभ्यास करें तो निश्चित ही लेखन में और प्रभाव और निखार आ जाए.कुछ पंक्तियाँ मन को छू जाती हैं, ये आपकी सफलता है.
एक आग्रह कि आर्तनाद भले घोर आक्रान्त करे मुस्कान कायम रखें...
मेरे सुझाव को अन्यथा हरगिज़ न लें..लगा कुछ सुझाव भी ज़रूरी है..
सदैव तुमने मुझे
परीक्षा की नजरों से देखा
गुणों की कसौटी पर
सदा परखते हुए देखा.
ये नारी की तकदीर है कि हमेशा उसे ही अपनी प्रीक्षा देनी होती है मर्म्स्पर्शी कविता है बधाई
बहुत भावपूर्ण रचना के लिए बधाई |
आशा
dd
bahut sunder rachna hai....
acha laga apka blog dekh kar
अच्छी प्रेम कविता ।
Khooobsurat Kavita......Wah..
दिल से निकली कविता इसे ही कहते हैं...
बहुत अच्छी कविता .. बहुत पसंद आई.
प्रेम अपने सहज रूप में ऐसा ही होता है.
प्रभावशाली कविता।
(आईये एक आध्यात्मिक लेख पढें .... मैं कौन हूं।)
अच्छी कविता
जिन्दा लोगों की तलाश! मर्जी आपकी, आग्रह हमारा!!
काले अंग्रेजों के विरुद्ध जारी संघर्ष को आगे बढाने के लिये, यह टिप्पणी प्रदर्शित होती रहे, आपका इतना सहयोग मिल सके तो भी कम नहीं होगा।
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उक्त शीर्षक पढकर अटपटा जरूर लग रहा होगा, लेकिन सच में इस देश को कुछ जिन्दा लोगों की तलाश है। सागर की तलाश में हम सिर्फ सिर्फ बूंद मात्र हैं, लेकिन सागर बूंद को नकार नहीं सकता। बूंद के बिना सागर को कोई फर्क नहीं पडता हो, लेकिन बूंद का सागर के बिना कोई अस्तित्व नहीं है।
आग्रह है कि बूंद से सागर में मिलन की दुरूह राह में आप सहित प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति का सहयोग जरूरी है। यदि यह टिप्पणी प्रदर्शित होगी तो निश्चय ही विचार की यात्रा में आप भी सारथी बन जायेंगे।
हम ऐसे कुछ जिन्दा लोगों की तलाश में हैं, जिनके दिल में भगत सिंह जैसा जज्बा तो हो, लेकिन इस जज्बे की आग से अपने आपको जलने से बचाने की समझ भी हो, क्योंकि जोश में भगत सिंह ने यही नासमझी की थी। जिसका दुःख आने वाली पीढियों को सदैव सताता रहेगा। गौरे अंग्रेजों के खिलाफ भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, असफाकउल्लाह खाँ, चन्द्र शेखर आजाद जैसे असंख्य आजादी के दीवानों की भांति अलख जगाने वाले समर्पित और जिन्दादिल लोगों की आज के काले अंग्रेजों के आतंक के खिलाफ बुद्धिमतापूर्ण तरीके से लडने हेतु तलाश है।
इस देश में कानून का संरक्षण प्राप्त गुण्डों का राज कायम हो चुका है। सरकार द्वारा देश का विकास एवं उत्थान करने व जवाबदेह प्रशासनिक ढांचा खडा करने के लिये, हमसे हजारों तरीकों से टेक्स वूसला जाता है, लेकिन राजनेताओं के साथ-साथ अफसरशाही ने इस देश को खोखला और लोकतन्त्र को पंगु बना दिया गया है।
अफसर, जिन्हें संविधान में लोक सेवक (जनता के नौकर) कहा गया है, हकीकत में जनता के स्वामी बन बैठे हैं। सरकारी धन को डकारना और जनता पर अत्याचार करना इन्होंने कानूनी अधिकार समझ लिया है। कुछ स्वार्थी लोग इनका साथ देकर देश की अस्सी प्रतिशत जनता का कदम-कदम पर शोषण एवं तिरस्कार कर रहे हैं।
अतः हमें समझना होगा कि आज देश में भूख, चोरी, डकैती, मिलावट, जासूसी, नक्सलवाद, कालाबाजारी, मंहगाई आदि जो कुछ भी गैर-कानूनी ताण्डव हो रहा है, उसका सबसे बडा कारण है, भ्रष्ट एवं बेलगाम अफसरशाही द्वारा सत्ता का मनमाना दुरुपयोग करके भी कानून के शिकंजे बच निकलना।
शहीद-ए-आजम भगत सिंह के आदर्शों को सामने रखकर 1993 में स्थापित-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)-के 17 राज्यों में सेवारत 4300 से अधिक रजिस्टर्ड आजीवन सदस्यों की ओर से दूसरा सवाल-
सरकारी कुर्सी पर बैठकर, भेदभाव, मनमानी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण और गैर-कानूनी काम करने वाले लोक सेवकों को भारतीय दण्ड विधानों के तहत कठोर सजा नहीं मिलने के कारण आम व्यक्ति की प्रगति में रुकावट एवं देश की एकता, शान्ति, सम्प्रभुता और धर्म-निरपेक्षता को लगातार खतरा पैदा हो रहा है! हम हमारे इन नौकरों (लोक सेवकों) को यों हीं कब तक सहते रहेंगे?
जो भी व्यक्ति स्वेच्छा से इस जनान्दोलन से जुडना चाहें, उसका स्वागत है और निःशुल्क सदस्यता फार्म प्राप्ति हेतु लिखें :-
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा, राष्ट्रीय अध्यक्ष
भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय
7, तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)
फोन : 0141-2222225 (सायं : 7 से 8) मो. 098285-02666
E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in
बहुत सुंदर है आपकी रचना, हार्दिक बधाई।
---------
क्या आप बता सकते हैं कि इंसान और साँप में कौन ज़्यादा ज़हरीला होता है?
अगर हाँ, तो फिर चले आइए रहस्य और रोमाँच से भरी एक नवीन दुनिया में आपका स्वागत है।
sunder abhivyakti hai ji...
sunder abhivyakti hai ji...
बस एक बात कहती हूँ
कि मेरे ह्रदय में..
तुम जैसा ना आया कभी
और तुम जा सकते नहीं .
मेरी सांसो की खुशबू में
बसे हो तुम
और इन सांसो को
मैं तो मिटा नहीं सकती.
बहुत ही मार्मिकता से दिल में छिपे दर्द को शब्दों में प्रस्तुत किया है ...दिल को छु गई आप कि ये रचना ...समझ सकती हू आप के दिल कि व्यथा ...
prem ko kis tarah aapne apani saans saans men basaa liya hai aur usako qatara qatra jee gayin hain .....utkrisht rachnaa
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