Friday 15 October 2010

रिश्ते और मजबूरियाँ



















मन  अक्सर यूँ  सोचा करता है
पिछले जन्मों का कोई रिश्ता है  
तुम संग जो गहरी प्रीत बढ़ी 
रूह से रूह का  कोई नाता है 

बिन कहे ही दिल को आभास हुआ 
जब रूह को कोई भी टीस हुई 
फिर ना जाने क्यों मन टूटा 
क्यों प्रीत में गहरी सेंध लगी.

पहले पहरों - पहरों की बातें 
घंटों में सिमटनी शुरू हुई 
आड़े आ गयी मजबूरियाँ सारी 
दीवारें खिंच खिंच बढती गयी .

धीरे से समझाया मन को मैंने 
कि ऐसा भी कभी होता है 
साथी हो मजबूर बहुत तो 
अरमानों को रोना होता है .

दबे पाँव फांसले आये 
कई रूपों में दमन किया 
अश्क प्रवाह बढते गए 
कड़वाहटों ने फिर जन्म लिया.

विचारों के नश्तर यूं टकराए 
जुबा के उच्चारण बदलने लगे 
मन ने मन की नहीं सुनी 
सुख - दुख भी अनजाने हुए .

इक दूजे को आंसू दे 
दिल के जख्म सुखाने चले 
मरहम जो देने थे आपस में 
मवादों के ढेर जमाने लगे .

विकारों की ऐसी आंधी आई 
भाव शून्य दिल होने लगा  
आह ! कितने हम बदल गए 
अश्कों से भी ना मैल धुला .

हर गम को नौटंकी समझे 
रूह की बातें कहाँ रही 
इतना प्यार गहराया देखो 
रूह के रिश्ते चटक गए .

बस एक आखरी अरज है मेरी  
एक करम और कर डालो 
अंतिम बंधन जो शब्दों का है  
विवशता की उस पर भी शिला धरो .

चाहत अपनी कर दो ज़ाहिर 
अब कोई रिश्ता न शेष रहे 
यादों की गंगा -यमुना में 
ना इस रिश्ते का कोई अवशेष रहे  


53 comments:

मनोज कुमार said...

इसे पढकर एक गाना याद आ गया
चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाए हम दोनो।
नज़्म का प्रवाह इसकी पूंजी है, टूटते रिश्ते का दर्द उभर कर सामने आया है। इस रचना में बहुत बेहतर, बहुत गहरे स्तर पर एक बहुत ही छुपी हुई करुणा और गम्भीरता है।

शरद कोकास said...

बहुत सुन्दर प्रेम कविता ।

संजय भास्‍कर said...

चाहत अपनी कर दो ज़ाहिर
अब कोई रिश्ता न शेष रहे
यादों की गंगा -यमुना में
ना इस रिश्ते का कोई अवशेष रहे

.....क्या खूब कहा अनामिका जी..

संजय भास्‍कर said...

Anamika ji aur kavita ki jitani tarif ki jaye kam hai!

Kailash Sharma said...

चाहत अपनी कर दो ज़ाहिर
अब कोई रिश्ता न शेष रहे
यादों की गंगा -यमुना में
ना इस रिश्ते का कोई अवशेष रहे

मनोज जी की प्रतिक्रिया के बाद कुछ कहने को बचा ही नहीं है.
रिश्तों की मजबूरियां और उनके टूटने का दर्द जिंदगी भर को एक टीश
दे जाता है. दिल के दर्द की बहुत सशक्त अभिव्यक्ति. आभार..

निर्मला कपिला said...

विकारों की ऐसी आंधी आई
भाव शून्य दिल होने लगा
आह ! कितने हम बदल गए
अश्कों से भी ना मैल धुला .

दिल का दर्द उकेरती रचना। अच्छी लगी। शुभकामनायें

आपका अख्तर खान अकेला said...

bhnanamikaa ji bhut khub achchaa bhut achchaa likhaa mubark ho . akhtar khan akela kota rajsthan

honesty project democracy said...

शानदार रचना और खूबसूरत प्रस्तुती ...

alka mishra said...

सही सन्देश है कविता का......
रोज रोज मरने से अच्छा है एक बार मर जाना

महेन्‍द्र वर्मा said...

प्रेम का दूसरा पक्ष-दर्द- का भावपूर्ण चित्रण हुआ है इस प्रभावशाली कविता में ।

डॉ. मोनिका शर्मा said...

चाहत अपनी कर दो ज़ाहिर
अब कोई रिश्ता न शेष रहे
यादों की गंगा -यमुना में
ना इस रिश्ते का कोई अवशेष रहे

आप प्रेम के सारे रगों को सुन्दरता से समेट लेती हैं

ZEAL said...

विकारों की ऐसी आंधी आई
भाव शून्य दिल होने लगा
आह ! कितने हम बदल गए
अश्कों से भी ना मैल धुला .

sundar prastuti !

.

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

धीरे से समझाया मन को मैंने
कि ऐसा भी कभी होता है
साथी हो मजबूर बहुत तो
अरमानों को रोना होता है....
बहुत अच्छे भाव की सुन्दर प्रस्तुति.

प्रवीण पाण्डेय said...

जाहिर कर दो सारे रिश्ते... वाह।

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

यह कविता रिश्तों की गहराइयों को गहरे तक समझाती और अश्रू पूरित नेत्रों से इस प्रकार सिंचित करती है, मानो एक चक्षु से गंगा और दूसरे चक्षु से यमुना की अविरल धार, हृदय प्रयाग में विरह का एक ऐसा संगम निर्मित करती है जिसमें समस्त संबंधों को तिरोहित कर देने वाली एक पीड़ा है और कवयित्री इसी पीड़ा की याचना करती है, क्योंकि यही वेदना उसका सुख है... अद्भुत अभिव्यक्ति!!

राज भाटिय़ा said...

प्रेमरस मे डुबी आप की यह सुंदर रचना, धन्यवाद

अरुणेश मिश्र said...

अनामिका जी क्या लिख रही हो । आशाओं का संचार करो ।
रचना जीवन को छू रही है ।

मनोज भारती said...

चाहत अपनी कर दो ज़ाहिर
अब कोई रिश्ता न शेष रहे
यादों की गंगा -यमुना में
ना इस रिश्ते का कोई अवशेष रहे

चाहत ज़ाहिर करने पर तो रिश्ते बनने चाहिए
आप इन्हें क्यों तोड़ने की गुजारिश कर रही हैं
यादें कब प्रवाह बनी हैं , वे तो ठहर जाती हैं
और जो ठहरा है वह तो अवशेष बन ही गया न !!!

Udan Tashtari said...

बहुत सुन्दर लगी आपकी कविता.

रानीविशाल said...

बड़ी भावमयी रचना है
यहाँ भी पधारे
हे माँ दुर्गे सकल सुखदाता
दुर्गाष्टमी और दशहरे की शुभकामनाएँ

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

दबे पाँव फांसले आये
कई रूपों में दमन किया
अश्क प्रवाह बढते गए
कड़वाहटों ने फिर जन्म लिया.
--
विविधता लिए
सुन्दर रचना!

Sadhana Vaid said...

सतही प्रेम का आवरण हटते ही निर्मम यथार्थ के बदसूरत रंग रिश्तों में दिखाई देने लगते हैं ! जब विश्वास को चोट पहुँचती है तो निराशा और अवसाद से मन भर जाता है ! मन की व्यथा को बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति दी है आपने ! बहुत मर्मस्पर्शी रचना !

अजित गुप्ता का कोना said...

प्रेम के रिश्‍तों पर बुनी हुई कविता है, बस हम तो पढ़ ही रहे हैं, मर्म नहीं जान पा रहे हैं क्‍योंकि इस दर्द की गली से वाकिफ नहीं हैं। इसलिए हम तो अब टिप्‍पणी में क्‍या लिखें?

अनुपमा पाठक said...

rishte ka koi awshesh na rahe...
aah!yah prarthna to aahat hriday ke aansu hain!!!
sundar abhivyakti!
regards,

vandana gupta said...

kai baar rishte aise hi kisi mod par aakar bikhar jaate hain..............behad umda prastuti.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

yah sansaar ek rangmanch hai ayr har insaan waqt ke haathon kathputali . to nautanki to hogi hi ... achchhi bhaav pravan rachna ..bahut khoob shabdon se nawaaza hai ...yun hi likhati rahen ..

Anonymous said...

बहुत सारी बाते करती भाव प्रधान कविता
बहुत अच्छा लेख आभार
हमारा भी ब्लॉग पड़े और मार्गदर्शन करे
http://blondmedia.blogspot.com/2010/10/blog-post_16.

रचना दीक्षित said...

चाहत अपनी कर दो ज़ाहिर
अब कोई रिश्ता न शेष रहे
यादों की गंगा -यमुना में
ना इस रिश्ते का कोई अवशेष रहे
मार्मिक!!! क्या करें ये भी जीवन का ही एक अंग है

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

दर्द भरे भाव कि सुन्दर प्रस्तुति !

Girish Kumar Billore said...

अति उत्तम सुकोमल
रोहतक सम्मेलन में पधार रहीं हैं न आप

Asha Joglekar said...

सुंदर ।
भाव शून्य दिल होने लगा
आह ! कितने हम बदल गए । यही होता है जब सामिप्य का आधिक्य हो जाता है ।

sandhyagupta said...

दशहरा की ढेर सारी शुभकामनाएँ!!

सु-मन (Suman Kapoor) said...

बहुत ही भावुक रचना.........हृदय के मर्म को दर्शाती हुई.............

Dorothy said...

संबंधो में बढ़ती दूरियों के कारण आई दरार की वजह से प्रेम भी असंपृक्त नहीं रह पाता और एक दिन चुक जाता है, और बच जाता है सिर्फ़ टूटे संबंधों का दंश हर वक्त टीसता और सालता हुआ. इस सबसे उपजी वेदना और व्यथा का बेहद संवेदनशील और मार्मिक चित्रण. आभार.
सादर
डोरोथी.

वाणी गीत said...

बहुत सालता है यह दर्द ....
करीब आकर रिश्तों के रंग कई बार इतने बदरंग क्यूँ लगते हैं ...
कैसे समझाए दिल को न रोया करे ज़ार -ज़ार
जो लगती है चोट उस पर बार -बार ..
इस कविता से " चलो एक बार फिर से अजनबी हो जाएँ " की याद हो आई ...

असत्य पर सत्य के विजय पर्व की हार्दिक शुभकामनायें ...

Aruna Kapoor said...

prem shabd hi aatm-manthan ke liye paryaapt hai!....bahut sundar rachna!..shubh dashhara!

वन्दना अवस्थी दुबे said...

सुन्दर कविता है अनामिका जी.
विजयादशमी की अनन्त शुभकामनाएं.

राजभाषा हिंदी said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
बेटी .......प्यारी सी धुन

Anonymous said...

अनामिका जी, भाव प्रवाह और कलात्मक सौंदर्य का मिलन हो तो रचना क्लासिक बन जाती है. आपके अंदर सच्चा भाव प्रवाह है, सिर्फ कलात्मकता में थोड़ी सी कसर है.बस लिखते रहिये.अपने शब्दों को तराशते रहिये.गुस्ताखी माफ.

Anupama Tripathi said...

हकीकत से नज़दीक -दिल को छू लेने वाली रचना-
बहुत सुंदर.

Avinash Chandra said...

यादों की गंगा -यमुना में
ना इस रिश्ते का कोई अवशेष रहे

ये पढना आज अच्छा लगा...और इसे मैं पहचान सकता हूँ भीड़ में भी कि आपने लिखा है :)

Parul kanani said...

बस एक आखरी अरज है मेरी
एक करम और कर डालो
अंतिम बंधन जो शब्दों का है
विवशता की उस पर भी शिला धरो .

beautiful...........!

कुमार राधारमण said...

जाने वो कैसे लोग थे जिनके प्यार को प्यार मिला........

kshama said...

चाहत अपनी कर दो ज़ाहिर
अब कोई रिश्ता न शेष रहे
यादों की गंगा -यमुना में
ना इस रिश्ते का कोई अवशेष रहे

Uf! Aah! Kitna aseem dard simat aaya hai...rishta chatkhaneka dard,dararon ka dard....aur ab uske avshesh bhee mitane kaa dard!
Aaur Anamikaji! Aap 'dastk' yaa sadayen den,aur ham dwar na kholen....aisa ho sakta hai kabhi?
Mujhe aapka mail ID de sakti hain? Bahut dil karta hai aapse baatcheet karneka...!

Coral said...

प्यार के रिश्ते को दिखाती दर्द से भरी भावपूर्ण रचना !

अरुण चन्द्र रॉय said...

" चाहत अपनी कर दो ज़ाहिर
अब कोई रिश्ता न शेष रहे
यादों की गंगा -यमुना में
ना इस रिश्ते का कोई अवशेष रहे "
bahut marmsaprshi rachna.. antim panktiyo ke dard ko dekh aankhen nam ho gain...

मृत्युंजय त्रिपाठी said...

यूं तो हम जिसे चाहते हैं वह हमारे दिल की बात जान ही जाता है, पर इजहार तो जरूरी ही है। इजहार एक तरफ का कन्‍फर्मेशन है दोनों के बीच प्‍यार का।
चाहत अपनी कर दो ज़ाहिर
अब कोई रिश्ता न शेष रहे
यादों की गंगा -यमुना में
ना इस रिश्ते का कोई अवशेष रहे... वाकई ये पंक्तियां तो दिल को छू गयीं।

सदा said...

बहुत ही सुन्‍दर एवं भावमय प्रस्‍तुति ।

Satish Saxena said...

कष्टदायक रचना !

ज्योति सिंह said...

चाहत अपनी कर दो ज़ाहिर
अब कोई रिश्ता न शेष रहे
यादों की गंगा -यमुना में
ना इस रिश्ते का कोई अवशेष रहे
gahra dard umad pada hai ,behad sundar .

दिगम्बर नासवा said...

चाहत अपनी कर दो ज़ाहिर
अब कोई रिश्ता न शेष रहे
यादों की गंगा -यमुना में
ना इस रिश्ते का कोई अवशेष रहे


अपने रिश्तों को खुद ही जलाना ... अफ .... बहुत दर्द भरा होता है ....

Manua Beparwah said...

हर रिश्ता नायापन ढूंढता है , शायद उसकी कमी रह गयी |
रिश्तों की की गहरी और कटु सच्चाई परोस दी है आपने कविता के माध्यम से |

Manua Beparwah said...

http://padchihna.blogspot.com/2010/10/blog-post_12.html