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दोस्तों बहुत दिनों से नेट की तबियत नासाज़ होने की वजह से आप सब से दूर रही...अब नेट की तबियत दुरुस्त हो गयी है तो आप से मिलना मिलाना होता रहेगा...तो लीजिये अब हमें झेलिये :)
दोस्तों बहुत दिनों से नेट की तबियत नासाज़ होने की वजह से आप सब से दूर रही...अब नेट की तबियत दुरुस्त हो गयी है तो आप से मिलना मिलाना होता रहेगा...तो लीजिये अब हमें झेलिये :)
हे राघव
क्या उचित था
यूँ मुझे
इस मोड़ पर
ला छोड़ना ?
या उचित था
तुम्हारा
पुरुशोचित्त दंभ में
अपनी सहचरी को
भूलना ?
देवता बना के
पूजा तुम्ही को
मेरी हर
आती - जाती सांस नें .
चरण-रज ही
बनना चाहा मैंने
तुम्हारे जीवन धाम में.
क्या उचित था
अवधेश कि ..
कंटक वन में
अपनी प्रेयसी को
उम्र के भीषण- तम में
यूँ तनहा छोड़ना ?
या मेरे
अडिग विश्वास को
यूँ कण-कण कर
उपल मन से तोडना ?
आह ! कामद,
क्या कभी
मैंने कहा था ..
कि ले चलो
मुझे अरण्य-द्वार
या मेरे मन को
लुभाये
तुम्हारे संसर्ग से
अधिक
विरह संसार.
सोचती हूँ ...
क्या यही थी
मिथिलेश प्रिया की
भाग्य-लिपि ?
उमड़-घुमड़ कर
दर्द से हो दग्ध
आज ये
दृग अम्बु सनी !!
आज ये क्लेश
मेरे मन को
भारी हो रहा
क्यों समष्टि के लिए
व्यष्टि बलिदानी भली ?
या रहेगी
वैदेही सदा
विदेहिनी बनी ?
आज खंडित हो गया
मन में जो एक
द्रिड विश्वास था .
आज जुगुप्सा
से तन-मन मेरा
कम्पित हो रहा.
अंतर-रोदन के तले
सब स्नेह निर्झर
बह गया.
हो गया
ये श्राप जीवन
रेत ज्यूँ
तन रह गया .
डस लिया
अंधेरों ने
उजाला
बस किरणों का
सफ़र
बाकी रह गया !!
50 comments:
आप स्वास्थ्य लाभ करें। जानकी को सदा ही राघव का प्रेम मिला है।
anuttarit prashn, tabhi to ramayan bhi adhuri hai
aur jaldi thik ho jaiye ... shubhkamnayen
सुन्दर कविता... नई दृष्टि दे रही है राधा किशन के प्रेम को..
बहुत सुन्दर ........... हरे कृष्ण....
आपके नेट की तबीयत सुधर गयी हमारी उम्मीदों को भी कुछ राहत मिल गयी ! इतने दिनों के बाद आज आपकी रचना पढ़ने को मिली और मन को मुग्ध कर गयी ! वैदेही की यह पीड़ा शाश्वत है और इसके उत्तर हर काल में सुधीजन तत्कालीन सामाजिक परिप्रेक्ष्य के अनुसार ढालते रहेंगे ! गुरु गंभीर रचना के लिये बधाई एवं शुभकामनायें !
नारी मन की गहराई, उसका अन्तर्द्वन्द्व, मान-अपमान में समान भावुक मन की उमंगे, संवेदनशीलता, सहिष्णुता आदि पर इस कविता में अभिव्यक्ति दी गई है, जो कि वस्तुतः सुलझी हुई वैचारिकता की प्रतीक है।
आपकी कविता ने मुझे नरेश मेहता जी के "प्रवाद पर्व" की याद दिला दी ...आपकी कविता में जानकी के मन की संवेदना एक नए भाव बोध और नयी दृष्टि के साथ अभिव्यक्त हुई है ...आपका आभार
ये मेरा स्वभाव है कि लोग याद रखें या न रखें, मैं लोगों के बारे में पूछ्ताछ करता रहता हूँ.. कल ही आपकी चर्चा हुई और पूछा कि आप दिख नहीं रही हैं..और आज आप हाज़िर हैं..
कविता के बारे में बाद में.. अभी बस आपके आगमन पर ख़ुशआमदीद!!
जनकनंदिनी के मनोभावों का इतना सुंदर चित्रण अनामिकाजी ...बहुत सुंदर ..... वैसे आपको झेलने (पढ़ने )का इंतजार रहता है :) स्वागत
बहुत ही गहरे जज्बात से वैदेही की व्यथा हो आप ने उकेरा है ....... सुंदर प्रस्तुति..
सृजन _ शिखर पर आपका स्वागत है.
हे राघव क्या उचित था, छोड दिया मझधार।
बिना तुम्हारे संग के, कैसे उतरूँ पार।।
--
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति!
आदरणीय अनामिका जी..
नमस्कार
नारी मन की गहराई,गंभीर रचना के लिये बधाई एवं शुभकामनायें !
अनामिका जी आप नेट का पूरी तरह से ख्याल रखिये. समय समय पर बच्चन साब वाला पोलियो ड्रॉप दिलवाती रहिये जिससे वह कभी लंगड़ा न हो और आपका सानिध्य अबाध्य मिलता रहे.
अब बात कविता की सो लगता है काफी उर्जा संचयित कर ली थी आते ही धमाका. बहुत सुंदर लगी कविता. नए प्रश्न नए समीकरण. सुंदर कविता के लिए शत शत बधाइयाँ.
अनामिका जी बहुत ही अच्छी कविता ! जानकी के मन का मार्मिक चित्रण है !!
बधाई !!
बहुत ही गहरे जज्बात से वैदेही की व्यथा को आप ने उकेरा है| धन्यवाद|
जानकी तो कभी प्रभु से अलिप्त रही ही नहीं है....नर लीला मात्र करने से सीता और राम पृथक तो नहीं हो जाते....
"अरी जानकी प्रश्न तुम्हारा उत्तर स्वयं लिए है.
लीला थी वो वरना तुम बिन राघव कभी जिए हैं?"
राजेश कुमार
वैदेही की व्यथा को उकेरती, गहन संवेदनाओं की बेहद मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति. आभार.
सादर,
डोरोथी.
स्वागत है आपका..
एक खूबसूरत कविता के साथ..
बधाई...
bhoot khoob
हो गया
ये श्राप जीवन
रेत ज्यूँ
तन रह गया .
डस लिया
अंधेरों ने
उजाला
बस किरणों का
सफ़र
बाकी रह गया !!
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति!
sita ka tayag,man mai ek tufaan ka aagaz karta hai, yeh koi beeti baat nahi ,yahan har roj kisi na kisi sita ko ban ke liye nikalna padta hai,os yug ki sita se laker is yug ki sita ko aanat kaal tak banvaas bhogna hoga or agni parikshaon ki suci lambi ho gayi hai. ek dukh ka fir se aawaham kiya hai aapne.get well soon
कृष्ण और राधा के प्रेम पर बड़ी ही सुन्दर प्रस्तुति..शुभकामनाएं|
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (7/2/2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
वाह. सुन्दर कविता. इसे झेलना न कहें. बहरहाल, बधाई.
आदरणीय अनामिका जी..
नमस्कार
नारी मन की गहराई,
गंभीर रचना के लिये बधाई एवं शुभकामनायें !
ॐ कश्यप में ब्लॉग जगत में नया हूँ
कृपया आप मेरा मार्ग दर्शन करे
धन्यवाद
http://unluckyblackstar.blogspot.com/
बेहद ही रचनात्मक प्रस्तुति है आपकी। धन्यवाद स्वीकार करें।
सोचती हूँ ...
क्या यही थी
मिथिलेश प्रिया की
भाग्य-लिपि ?
उमड़-घुमड़ कर
दर्द से हो दग्ध
आज ये
दृग अम्बु सनी
naari naam hi kasht ka hai ,aane wali pidhiyo ko sita ne ye bahut bhali bhanti samjha diya hai ,ati uttam .
million dollar question.....still unanswered..
achcha hua aap aa gayeein aapki kami mahsoos ho rahi thi.hamesha ki tarah aapki kavita bhi bahut achchi lagi hai.
वैदेही की वेदना को आपने नई द्ष्टि से निहारा है।
वैदेही के रुप में नारी मन की व्यथा का मार्मिक चित्रण.
उत्तम प्रस्तुति...
इस प्रश्न का उत्तर तो हम भी ढूंढ रहे हैं ..गेट वेल सून ..
आपको वसंत पंचमी की ढेरों शुभकामनाएं!
सादर,
डोरोथी.
नमस्कार....
आज काफी दिनों के उपरांत मैं भी उपस्थित हुआ हूँ और वापस आते ही इतनी सारगर्भित कविता से रु-बा-रु होने का मौका मिला....आपकी कविता, इसके विषयवस्तु और प्रवाह ने मन मोह लिया है....
मेरी शुभकामनायें स्वीकार करें...
दीपक...
सुंदर कविता , राम भी न्याय न कर पाया यही तो दुर्भाग्य है नारी का sahityasurbhi.blogspot.com
यह सवाल युगों -युगों से अनुत्तरित है ...
हर संवेदनशील नारी करती है यह सवाल ...
श्रद्धा और तर्क के द्वंद्व पर अच्छी कविता !
नारी के मन में उठने वाले द्वंद भरे प्रश्न ..संवेदनशील , अच्छी रचना
अनामिका जी अच्छी रचना वैसे नेट को किसी अच्छे डॉ.को दिखाइए इस तरह तबियत का खराब होना अच्छी बात नहीं है
bahut gahari baat..............naari man ki vyatha
एक निवेदन-
मैं वृक्ष हूँ। वही वृक्ष, जो मार्ग की शोभा बढ़ाता है, पथिकों को गर्मी से राहत देता है तथा सभी प्राणियों के लिये प्राणवायु का संचार करता है। वर्तमान में हमारे समक्ष अस्तित्व का संकट उपस्थित है। हमारी अनेक प्रजातियाँ लुप्त हो चुकी हैं तथा अनेक लुप्त होने के कगार पर हैं। दैनंदिन हमारी संख्या घटती जा रही है। हम मानवता के अभिन्न मित्र हैं। मात्र मानव ही नहीं अपितु समस्त पर्यावरण प्रत्यक्षतः अथवा परोक्षतः मुझसे सम्बद्ध है। चूंकि आप मानव हैं, इस धरा पर अवस्थित सबसे बुद्धिमान् प्राणी हैं, अतः आपसे विनम्र निवेदन है कि हमारी रक्षा के लिये, हमारी प्रजातियों के संवर्द्धन, पुष्पन, पल्लवन एवं संरक्षण के लिये एक कदम बढ़ायें। वृक्षारोपण करें। प्रत्येक मांगलिक अवसर यथा जन्मदिन, विवाह, सन्तानप्राप्ति आदि पर एक वृक्ष अवश्य रोपें तथा उसकी देखभाल करें। एक-एक पग से मार्ग बनता है, एक-एक वृक्ष से वन, एक-एक बिन्दु से सागर, अतः आपका एक कदम हमारे संरक्षण के लिये अति महत्त्वपूर्ण है।
शुभकामनायें आपको!!
भावों से परिपूर्ण रचना |उत्तम प्रस्तुति
बधाई |
आशा
नौजवान भारत समाचार पत्र
सभी साथियो को सूचित किया जाता है कि हमने एक खोज शुरू की है युवा प्रतिभाओं की। जिसमें हम देश की उपेक्षित युवा प्रतिभाओं को आगे लाना चाहते है। जो युवा प्रतिभा इस में भाग लेना चाहते हो वो अपनी रचना इस ई मेल पर भेजें
noujawanbharat@gmail.com
noujawanbharat@yahoo.in
contect no. 097825-54044
090241-119668:48 PM
Aapki Rachnadharmita ko namaskar.Janki bina Raghav adhure hain.Bichoh ki is abhivyakhi ko jis tarah se aapne saakar kiya hai wah kabile tareef hai.
Mujhe bahut pasand aayee apki rachnayen..Abhi tak nahi padh paaya tha, iska dukh hai....
Samay mile to mere aalochakon ki shreni me bhi shamil hone ki kripa karein.
बहुत ही सुन्दर शब्द रचना.
राघव और वैदेही अलग थे क्या.
सलाम.
राम-सीता के माध्यम से महिलाओं की वर्तमान व्यथा अभिव्यंजना अच्छी लगी। पाँचवें stanza में "दृग अम्बु सनी" के स्थान पर "आँखें अम्बु सनी" या "दृग अम्बु सने" होना चाहिए। क्योंकि दृग शब्द पुल्लिंग है और आँख स्त्रीलिंग।
anamika ji
kya kahun ,
aapne naari ke man me chalte antardvand ka bahut hi gahrai se sateek chitran kiya hai .
shabd bhi rachna ke prabhav ko aur hi sashakt banate hain
bahut bahut hi bhavpurn abhivykti
badhai.
xhma kijiyega ,aswasthata ke karan aaj-kal nai post nahi daal pa rahi hun ,isiliye aapko comment bhi sabko der se hi de pa rahi hun.
poonam
कितना अच्छा लिखती हैं आप...सच पूछिए तो तारीफ के लिए शब्द ही नहीं मिलते।
Tumne to mujhe nishabd kar diya!Vaidehi kee wyatha,mera bhee weak point hai!
Rajesh Kumar 'Nachiketa' ji और sagebob ji
के विचार अच्छे लगे. राम-सीता की लीला जहाँ अनेक प्रश्न पैदा करती सी दिखाई देती है वहीँ अनेक प्रश्नों के उत्तर भी प्रदान करती है.राम-सीता अभिन्न हैं.राम ने जो भी किया सीताजी की इच्छा पूरी करने के लिए किया,जिसका उद्देश्य समाज को कुछ न कुछ दर्शाना था .फिर चाहे वह अग्नि में प्रवेश हो और चाहे वन गमन.शास्त्रों के सूक्ष्म अवलोकन से ही सब स्पष्ट होता है.लेकिन सब सुनी सुनाई बातों पर ही आधारित रहकर खंडन मंडन की प्रक्रिया अपनाते से लगते हैं. आपकी भावुक अभिव्यक्ति दिल के कोमल भावों को प्रकट करती है.इसके लिए बहुत बहुत आभार .
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