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सारी कुंठाओं
और उदासियों को
गठरी में बाँध
टांड पर चढ़ा कर
रख दिया है.
और अब....
अपनी स्मृति से भी
भुला देना चाहती हूँ
इस गठरी को.
लेकिन जब-तब
मन की आँखें
हर दिवार को
टटोलती हुई सी
अपने गंतव्य तक
पहुँच ही जाती हैं.
और मन...
भटक ही जाता है
बार-बार ...
उन उदास,अँधेरी,
सीलन भरी
गलियों में.
तब....
खलबली सी
मच जाती है
और चीत्कार करते हुए
सारे भाव
नमी ला देते हैं
पलकों पर.
मीलों आगे
बढ़ आने पर भी
हर बार
मैं वापिस
वहीँ आ खड़ी होती हूँ ..
जहाँ से चली थी.
मेरी हालत
उस मेमने जैसी है
जो हर बार
कोशिश करता है
दो कदम आगे बढ़ने की
और फिर लौट आता है
अपने पिछले ही
पद-चिन्हों पर.
ये प्रवृत्ति है या..
नियति......?
कि मैं चाह कर भी
भुला नहीं पाती
उन पलों को
जो भीगे हैं
मेरी नेह से
निकले अवसाद से.
41 comments:
और अब....
अपनी स्मृति से भी
भुला देना चाहती हूँ
इस गठरी को.
kahan sambhaw hota hai aisa !
बहुत दिनों के बाद आपका शुभागमन हुआ है। सक्रियता और निरंतरता बनी रहेगी उम्मीद है।
सारी कुंठाओं
और उदासियों को
गठरी में बाँध
टांड पर चढ़ा कर
रख दिया है.
ये तो अच्छी बात है, उस ओर दुबारा झांकना भी नहीं चाहिए।
मीलों आगे
बढ़ आने पर भी
हर बार
मैं वापिस
वहीँ आ खड़ी होती हूँ ..
जहाँ से चली थी.
ये प्रवृत्ति त्यागना ही अच्छा है।
ये प्रवृत्ति है या
नियति
कि मैं चाह कर भी
भुला नहीं पाती
उन पलों को
जो भीगे हैं
मेरी नेह से
निकले अवसाद से
अतीत की कुछ यादें जीवन का संबल भी बन जाती हैं।
मेरी हालत
उस मेमने जैसी है
जो हर बार
कोशिश करता है
दो कदम आगे बढ़ने की
और फिर लौट आता है
bahut sundar
ये प्रवृत्ति है या..
नियति......?
कि मैं चाह कर भी
भुला नहीं पाती
उन पलों को
जो भीगे हैं
मेरी नेह से
निकले अवसाद से.
मनह पटल पर गहरी छाप कहाँ मिटती है -?
sunder rachna
सारी कुंठाओं
और उदासियों को
गठरी में बाँध
टांड पर चढ़ा कर
रख दिया है.
बड़े दिनों की अधीर प्रतीक्षा के बाद आज आपका आगमन हुआ है ! दुआ है कि उदासी के यह गठरी टाँड से ही कोई चुरा ले जाये और यह कभी आपके पास दोबारा ना आ पाये ! मन की वेदना को बहुत मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति दी है ! बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनायें !
ये प्रवृत्ति है या..
नियति......?
कि मैं चाह कर भी
भुला नहीं पाती
उन पलों को
जो भीगे हैं
मेरी नेह से
निकले अवसाद से.
Bahut khoob! Aapka punaragaman behad achha laga! Aage bhee hamesha intezaar rahega!
सारी कुंठाओं
और उदासियों को
गठरी में बाँध
टांड पर चढ़ा कर
रख दिया है.
--
आशा का संचार करती सुन्दर रचना!
सारी कुंठाओं
और उदासियों को
गठरी में बाँध
टांड पर चढ़ा कर
रख दिया है.... इस काम के लिए प्रवर्त रहें ...
जो नियति है उसमें कुछ कर नहीं सकते ...खुश रहना या उदास होना यह हामारे वश में है ...उसके लिए प्रयास की ज़रूरत है ..भावनाओं को बहुत खूबसूरती से उकेरा है ...खूबसूरत रचना ..
ये प्रवृत्ति है या..
नियति......?
कि मैं चाह कर भी
भुला नहीं पाती
उन पलों को
जो भीगे हैं
मेरी नेह से
निकले अवसाद से.
wah.bahut achcha likhi hain aap.
मेरी हालत
उस मेमने जैसी है
जो हर बार
कोशिश करता है
दो कदम आगे बढ़ने की
और फिर लौट आता है
अपने पिछले ही
पद-चिन्हों पर.
एक दिन इस मेमने का होस्सला भी बढेगा,
ओर फ़िर यह अपना रास्ता आप बनाऎगा,
बहुत ही मर्मस्पर्शी लगी आप की यह रचना धन्यवाद
सिर्फ हमारे चाहने मात्र से क्या होता है?...यादें तो किसी बंधन से बंधी हुई नहीं होती..और फिर जिसे हम भूलना चाहें वो उतना ही और अधिक हमें याद आने लगता है...
प्रभावी रचना
बहुत गहन अनुभूति.ये जीवन के कटु अनुभव ही तो हैं जो हमें जीवन में हर असफलता के बाद एक नया रास्ता दिखाते है और प्रेरणा देते हैं
लेकिन जब-तब
मन की आँखें
हर दिवार को
टटोलती हुई सी
अपने गंतव्य तक
पहुँच ही जाती हैं.
और मन...
भटक ही जाता है
बार-बार ...
उन उदास,अँधेरी,
सीलन भरी
गलियों में.
बेहतरीन शब्द संचयन, सारगर्भित कविता बधाई
मीलों आगे
बढ़ आने पर भी
हर बार
मैं वापिस
वहीँ आ खड़ी होती हूँ ..
जहाँ से चली थी.
बहुत सुंदर अनामिका जी ..बेहद अर्थपूर्ण पंक्तियाँ हैं....
काश की कुंठाएं और उदासियाँ गठरी की तरह ताक पर रखी जा सकती ...
बहुत गैप हो रहा है तुम्हारी रचनाओं में ..सब ठीक है ?
ये प्रवृत्ति है या..
नियति......?
कि मैं चाह कर भी
भुला नहीं पाती
उन पलों को
जो भीगे हैं
मेरी नेह से
निकले अवसाद से.
aisa sayad adhiktar logo ke saath hota hai..
bahut pyari rachna......
बहुत खूब ....।
क्या इतना आसान होता है यादों की गठरी बना कर अपने आप से दूर कर देना।
सच कहा कुछ यादें ऐसी होती है जिनसे जितना दूर जाना चाहो आ आकर तडपा ही जाती है…………जिन्हे हम भूलना चाहे वो अक्सर याद आते हैं…………बस ऐसा ही हाल इनका होता है।
बहुत खूबसूरत ... न जाने क्यूँ या मन उन्ही पलों को खोजता रहता है ...
ये प्रवृत्ति है या..
नियति......?
कि मैं चाह कर भी
भुला नहीं पाती
उन पलों को
जो भीगे हैं
मेरी नेह से
निकले अवसाद से.
bahut dino baad aana hua is sundar rachna ke saath ,pravati aur niyati in shabdo ne gahri chhap dali .......
सब कहीं छोड़कर वर्तमान को जी लें, उमंगपूर्ण।
उम्दा भावपूर्ण..
कमजोर न पड़ें ! उस टांड के पास भी नहीं जाना ....जीवन अमूल्य है और सारे कष्टों के बाद भी हँसते हुए जीना है !! शुभकामनायें !
खूबसूरती से भावों को बांध लिया है कविता ने, एक प्रभावशाली प्रस्तुति।
ये प्रवृत्ति है या..
नियति......?
कि मैं चाह कर भी
भुला नहीं पाती
उन पलों को
जो भीगे हैं
मेरी नेह से
निकले अवसाद से ...
किसी गहरे दर्द की अभिव्यक्ति है आपकी रचना .... बहुत ही कमाल का लिखा है ....
अनामिका जी, आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आयी हूँ आते ही जब पढ़ा कि जो भी लिखती हूँ इस दिल को सुकूं देने के लिये तो भई दिल तो आज तक न सुकून से किसी का बैठा है न बैठने देता है दिल के पार जाकर ही सुकून मिला है और एक बार जिसने मन के पार जाना सीख लिया वह हंसता है अपने दिल की नादानियों पर, न वहाँ नियति है न प्रवृति वहाँ है एक अनोखा आनंद और उजाला...
मीलों आगे
बढ़ आने पर भी
हर बार
मैं वापिस
वहीँ आ खड़ी होती हूँ ..
जहाँ से चली थी.
हरेक पंक्ति बहुत मर्मस्पर्शी...बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना..
anamika ji .bilkul yatharth saty likh diya hai aapne .yaado se kabhi peechha chhota hi nahi chahe achhi ho ya buri.
jindgi ke paanne par apni amid chhap chod jaati hain .
mitati kabhi nahi han, dhndhali jarur pad jaati hain par jab man bhag kar kahin chhup jaana chahta hai to ek ek drishy aankho ke samne pari laxhit hota jata hain .
bahut hi mar saparshi v samvedna se bhar pur prastuti------
poonam
आशा का संचार करती सुन्दर रचना| धन्यवाद|
really have no words for urz compliments....bahut umdaaa...likhte rahiye
bahut gahari abhivyakti.....
मन की आँखें
हर दिवार को
टटोलती हुई सी
अपने गंतव्य तक
पहुँच ही जाती हैं.....
गहन अनुभूतियों की सुन्दर अभिव्यक्ति ...बधाई.
ये प्रवृत्ति है या
नियति
कि मैं चाह कर भी
भुला नहीं पाती
उन पलों को
जो भीगे हैं
मेरी नेह से
निकले अवसाद से
वाह क्या खूब लिखा है अवसाद तो है, पर नेह से भीगे हुए
बेहतरीन शब्द संयोजन, सारगर्भित कविता... बधाई
bahut sunder blog hai aur naam bhi khoobsoorat hai
गहरी संवेदना से उपजी आप की कविता पाठक को अपने साथ दूर तक ले जाती है !
मन कुछ तो ढूढने लगता है किसी सूने जंगल में अकेले !
स्मृतियाँ पीछा नही छोडतीं ,यह तय है पर यदि वे आपको आगे नही जाने देतीं तो छोडना ही बेहतर है । अनामिका जी कविता अच्छी लगी ।
अनामिका जी, हरेक पंक्ति बहुत मर्मस्पर्शी है। कविता अच्छी लगी ।
Anita ji के विचार अच्छे लगे.मन के पार जाना कठिन लगता है ,लेकिन दृष्टा बनकर जब मन का अवलोकन करतें हैं तो मन की बहुत सी नकारात्मक बातें निरर्थक सी लगने लगती हैं.सद्चिन्तन से मन में आनन्द और उमंग जगते हैं.
मेरे ब्लॉग 'मनसा वाचा कर्मणा' पर आपका स्वागत है.
ये प्रवृत्ति है या..
नियति......?
कि मैं चाह कर भी
भुला नहीं पाती
निश्चित ही नियती है\ तभी तो भुला नही पाते चाहे कितनी भी कोशिश कर लें। भावमय रचना। शुभकामनायें।
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