सुधिजनो पिछले कई दिनों में ऐसे लेख और रचनायें पढने को मिली जो कन्या भ्रूण हत्या रोको का नारा लगा रही थी. ना... ना.... गलत मत सोचिये...मैं कोई इस नारे के विरोध में नहीं खड़ी हूँ. मैं भी पूर्ण रूप से इसमें भागीदारी रखती हूँ. लेकिन, रह-रह कर एक सवाल जो इन लेखों को पढने के बाद मेरे मनो-मस्तिष्क में सिर उठाता रहा...वो मैं आपके समक्ष रखती हूँ...हलांकी मैने इसमे कानून के ठेकेदारों से सुगठित कानून बनाने का आह्वान किया है ....क्या आप भी इसमे अपनी आहुती डालना चाहेंगे.....?
सब थोथे ढोल पीटते हैं
क़ानून के दो बोल बोल
कलम तकिये तले
दबा के सोते हैं
समाज-सेवक भी
वाह-वाही के लिए
जनता से नारे लगवा
क़ानून को अँधा करते हैं.
कल क़ानून बनाया था
"कन्या भ्रूण हत्या को बंद करो "
पर क्या इसकी तफ्तीश भी की
कि कन्या को
पूरी सुरक्षा मिलेगी कभी ?
कानून बनाने से पहले क्या
कभी उस पिता के
मन को टटोला है
जो आज एक लड़की का
है पिता बना ?
क्या उस माता की
पीर को जाना है
कल जिसने
लड़की को था
जन्म दिया.
क़ानून तो बना दिया
तुमने कि
कन्या भ्रूण हत्या पर
अब दण्डित करो
पर क्या कोई
ऐसा कानून बनाया है
कि उस बेटी पर
राह चलते कोई
कसीदे कसेगा नहीं.
पढने जाती बेटी से
गाडी में कोई
सामूहिक
बालात्कार करेगा नहीं ?
या देर रात तक
काम से लौटने वाली
लडकी का पिता
निश्चिंत हो कर
सो पायेगा कभी ?
ससुराल विदा की बेटी को
जिंदा जला,
दहेज की मांग
करेगा नही ?
इसी दहशत में
कोई माता-पिता
बेटी का पालन-हार
कहो कैसे बने ?
कैसे दुआओं
में अपनी
बेटी के जन्म
की चाह रखे ?
ओ कानून के
ठेकेदारो सुनो
कानून तो
पूरा बनाया करो
ऐसे कानून की
निर्मिति से पहले
आदि- अंत तो
गठित करो !
38 comments:
मन को उद्वेलित करने वाली मार्मिक कविता....
एक सशक्त रचना जो महिलाओं पर हो रहे अत्याचार के विभिन्न पहलुओं पर विचार करती है और व्यवस्था के प्रति प्रश्न-चिह्न भी खड़ी करती है।
तस्वीरों ने तो विषय की मार्मिकता को सजीव कर दिया है। आशा है आपकी ये आवाज़ क़ानून के ठेकेदारों तक भी पहुंचेगी।
कानून बनाने से पहले क्या
कभी उस पिता के
मन को टटोला है
जो आज एक लड़की का
है पिता बना ?
क्या उस माता की
पीर को जाना है
कल जिसने
लड़की को था
जन्म दिया.... jhakjhorti rachna
smsya kee jd ko phchan kr prchlit nare ke virudh likhna bhi sahs ka kam hai
बहुत से प्रश्न उठाती समसामायिक रचना !
गंभीर विचारों की सहज मार्मिक कविता...
वाकई सोचने की जरुरत है
महज कानून बनाना क्या काफी है
मार्मिक रचना
आपका दर्द व आक्रोश दोनों को महसूस किया ...
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 14-07- 2011 को यहाँ भी है
नयी पुरानी हल चल में आज- दर्द जब कागज़ पर उतर आएगा -
बेहद सशक्त और गंभीर अभिव्यक्ति सोचने को विवश करती है।
आपकी रचना तेताला पर भी है ज़रा इधर भी नज़र घुमाइये
http://tetalaa.blogspot.com/
बेहद सशक्त और गंभीर सोचने को विवश करती है।
आपकी रचना .........1
समाज की इस अभिशप्त प्रथा को नए दृष्टिकोण से देखा है ... उद्वेलित करती है आपकी रचना ... नए प्रश्न उठाते हुवे ...
बहुत क्षोभ होता है मन में आज की अक्षम कानूनी व्यवस्था को देख कर.
अति मार्मिक और मन को उद्वेलित करती हुई है आपकी अनुपम प्रस्तुती के लिए आभार.
बहुत मार्मिक किन्तु सत्य.........मेरी आवाज़ आपकी आवाज़ के साथ है .......मेरा हमेशा से ये मानना है की इस देश के कानून में सख्ती की बहुत ज़रूरत है.........बलात्कार जैसे जुर्म की सज़ा केवल फंसी ही हो सकती है.....अभी कुछ दिन पहले न्यूज़ चैनेल पर एक खबर में देखा की सरकार एक कानून पास करेगी जिसमे बलात्कार की शिकार महिला को ५०००० रूपए का मुआवजा दिया जायेगा......क्या ये ही न्याय की परकाष्ठा है ? ज़ुल्म का शिकार बनी महिला को न्याय मिल सके इसके लिए कानून सख्त होना ही चाहिए|
कभी वक़्त मिले तो जज़्बात पर मेरी इसी मुद्दे पर एक पोस्ट देखे-
http://jazbaattheemotions.blogspot.com/2011/06/blog-post.html
मन को झकझोरती कविता।
आपकी कविता के बदलते भावों का स्वागत करते हुए यही कहना चाहता हूँ कि हमारे देश में क़ानून बनाने और उसको लागू करने के बीच एक गहरी खाई है.. जब तक यह खाई नहीं पाती जाती कोइ हल नहीं निकलने वाला..
आपका आह्वान उद्वेलित करता है!!
दर्दनाक ....
बेहद सशक्त और गंभीर है
आपकी रचना
A very harsh truth...
हजारों प्रश्नों को जन्म देती हुई शानदार रचना,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
एक सार्थक एवं संवेदना से परिपूर्ण रचना ! क़ानून चाहे जितने भी बना दिए जायें लड़कियों के प्रति लोगों के रवैये में अपेक्षित बदलाव तब तक नहीं आएगा जब तक लोगों की क्षुद्र मानसिकता नहीं बदल जाती ! क़ानून दो चार लोगों को सज़ा देगा जिनकी रिपोर्ट की जायेगी लेकिन सैकड़ो मासूम लडकियां उन हैवानों की दरिंदगी का शिकार होती रहेंगी जिनकी ना तो रिपोर्ट की जाती है और ना ही जिन्हें क़ानून का भय है ! लड़कियों के माता पिता इसी तरह अपनी बच्चियों की सुरक्षा को लेकर चिंताग्रस्त और भयभीत रहेंगे और बेटी की कामना करने से डरेंगे ! एक सशक्त एवं सार्थक रचना ! बधाई !
ओ कानून के
ठेकेदारो सुनो
कानून तो
पूरा बनाया करो
ऐसे कानून की
निर्मिति से पहले
आदि- अंत तो
गठित करो !
अनेको प्रश्न उठाती, उद्वेलित करती है आपकी रचना ... आशा है आपकी ये आवाज़ क़ानून के ठेकेदारों तक पहुंचेगी...
smsya ki th tk jakr use samne lati ek bhut hi sshkt rchna ke liye anamika aapko jitni ijjt di jaye vo km hai .
aisi rchnao ki aaj ke mahoul me bhut jyada jroorat hai .
klm ki dhar se khoon nhi bhta mgr asr hota hai . aapki is post pr mile comments iske gwah hai .
भावों को उद्वेलित करती बहुत सशक्त और सटीक प्रस्तुति..बहुत मर्मस्पर्शी..
सशक्त रचना ...
लेकिन क्या यदि लडकी को रास्ते में लोंग छेड़ें ..दहेज की समस्या हो ..बलात्कार की घटनाएँ घटें और इन सब पर कोई काबू न हो तो क्या कन्या भ्रूण हत्या जायज़ है ? इसके लिए कानून बनाना गलत है ?
ओ कानून के
ठेकेदारो सुनो
कानून तो
पूरा बनाया करो
ऐसे कानून की
निर्मिति से पहले
आदि- अंत तो
गठित करो !
Aah! Bahut sahee hai!
सभी सुधि पाठकों की मैं बहुत बहुत आभारी हूँ जिन्होंने अपनी टिप्पणियों द्वारा अपने विचारों से अवगत कराया.
@ आदरणीय संगीता जी ,
आपके उठाये प्रश्न के मद्देनज़र मैं अपनी रचना की अंतिम पंक्तियों पर आपका ध्यान चाहूंगी...
ओ कानून के
ठेकेदारो सुनो
कानून तो
पूरा बनाया करो
ऐसे कानून की
निर्मिति से पहले
आदि- अंत तो
गठित करो !
और इसके अलावा भी पूरी रचना में मैंने कहीं ये नहीं लिखा कि कानून गलत है. जरा मेरी शुरू की पंक्तियों पर भी गौर कीजियेगा...
....... ना... ना.... गलत मत सोचिये...मैं कोई इस नारे के विरोध में नहीं खड़ी हूँ. मैं भी पूर्ण रूप से इसमें भागीदारी रखती हूँ. ...........मैने इसमे कानून के ठेकेदारों से सुगठित कानून बनाने का आह्वान किया है .
सशक्त ..सटीक ...मन पर अमित छाप छोड़ गयी आपकी अद्भुत रचना ..
मर्मस्पर्शी ...
आपकी रचना ने मन को झकझोर कर रख दिया अनामिका जी। कानून बनते ही टूटने और बिगाड़ दिये जाने के लिये हैं।
एक सशक्त और बहुत कुछ सोचने को मजबूर करती रचना...
बिलकुल सही कहा आपने...
क़ानून में भी सार्थक सुधार की जरूरत है और सामाजिक मानसिकता में भी...
dheron sawal uthati rachana, behatar post, badhai
theek likha hai aapne..par ham swal pe swal kiye jate hain...jwab dhundhne ka koi pryas nahi karta..
इसी दहशत में
कोई माता-पिता
बेटी का पालन-हार
कहो कैसे बने ?
कैसे दुआओं
में अपनी
बेटी के जन्म
की चाह रखे ?
बहुत बड़ा और ज़रूरी सवाल उठाया है आपने
अद्भुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी रचना! सटीक कहा है आपने हर एक पंक्तियों में! उम्दा प्रस्तुती!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
सशक्त...जबरदस्त अभिव्यक्ति!!
मर्मस्पर्शी रचना..तस्वीरों ने तो विषय की मार्मिकता को सजीव कर दिया है। ..मन को छू गया..
All these happenings reflects level of degradation of our male oriented society .We lack civility as a society .
गंभीर मुद्दा,सशक्त अभिव्यक्ति के साथ
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