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एक दिन तुम्ही ने
कहा था प्रिये..
प्यार का संसार
दिल से बसता है.
मैंने भी बखूबी
रमाया था दिल को
तुम संग....
जब प्रेम की माला बुनी थी.
बुद्धि की देवी
आ-आ कर
कई बार
प्यार की चौखट से
बे-आबरु हो कर
लौट गयी.
हालाँकि, तुमने
दामन न छोड़ा था उसका.
मुझे भी समझाया
तुम्हीं ने कई बार
कि यूँ निरादर न करो
बुद्धि का.
तब हर बार
खुद को, और
तुम्हें भी
तुम्हारा ही संवाद
स्मरण कराया मैंने
कि हे प्रिये ....
"प्यार का संसार
दिल से बसता है !"
तुम्हीं ने शायद
मन ही मन
निर्णय ले डाला
और अपने दिल को
सन्मार्ग दिखा ...
मुझी को उस से
बेघर कर दिया.
मैं मौन हो ..
विक्षिप्त सा..
उन घावों को
सहलाता रहा
जो मेरे शरीर पर नहीं..
आत्मा पर लगे थे.
लेकिन अति तो
हर चीज़ की
होती ही है ना प्रिये...!
पीड़ा से दुखती
मेरी आत्मा
आज आदि हो चुकी है
इस दर्द को
सहते रहने की.
अब तो दिल भी
मर चुका है प्रिये,
और बुद्धि....
अपना एक-छत्र
शासन करती है.
आज बुद्धि
अनसुना कर देती है
दिल की हर पुकार को
और तुम्हारी ही
भाषा बोलती है....
कि 'प्रेक्टिकल बनो' !
आज तुम
हैरान-परेशान हो
मेरे इस परिवर्तन पर ?
तुम्हारी ही सीख
पर तो चल रहा हूँ प्रिये...
तुम्हारा ही तो
अनुसरण कर रहा हूँ प्रिये....!!
51 comments:
बहुत सार्थक और सटीक रचना!
बेहतरीन शब्दों से उकेरी गयी अंतर भावनाए बेमिसाल है संवेदनशील हृदय के लिए बधाई
"प्यार का संसार
दिल से बसता है !"
सार्थक,सटीक और सुन्दर प्रस्तुति
प्रेम में गहरे बसे भावों को सटीक उकेरती रचना।
अति गहन ..एवं मर्मस्पर्शी लेखन ...
बहुत सुंदर रचना ...
prem ke bhaav aur samvedna ko darshaati rachna.bahut khoob.
दिल या बुद्धि के अनुसरण पर सुन्दर भाव प्रस्तुत किये हैं आपने.
क्या बुद्धि हमेशा ही दिल को नजरंदाज करती है या ऐसा हम जानबूझ कर करते हैं.
सूक्ष्म प्रखर बुद्धि दिल में सकारात्मक भावों का उदय करने में सहायक भी हो सकती है,जिसमें प्रेम या भक्ति अति उच्च सकारात्मक भाव है.
'बेशक मंदिर मस्जिद तोडो
पर प्यार भरा दिल कभी न तोडो
जिस दिल में दिलवर बसता'
अति सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है.
दिल और दिमाग की कशमकश को बयान करती एक बेहतरीन रचना!
अनामिका जी
बहुत ही सुंदर .....प्रभावित करती बेहतरीन पंक्तियाँ ....
बेहद खूबसूरत आपकी लेखनी का बेसब्री से इंतज़ार रहता है, शब्दों से मन झंझावत से भर जाता है यही तो है कलम का जादू बधाई
हकीकत बयान करती यह रचना अच्छी लगी...शुभकामनायें !!
सच को प्रतिबिम्बित करती बेहतरीन रचना...
ताज़ा बिम्बों-प्रतीकों-संकेतों से युक्त आपकी यह रचना अभिव्यक्ति का माध्यम भर नहीं, दिल की तहों में झांकने वाली आंख है। इस कविता का काव्य-शिल्प हमें सहज ही कवयित्री की भाव-भूमि के साथ जोड़ लेता है। चित्रात्मक वर्णन और प्रयुक्त चित्र कई जगह बांधता है। और अंत में जो अंत है हमारे संवेदन को छूकर आंखों के कोर को गीला कर जाता है?
अनामिका जी......हैट्स ऑफ इस पोस्ट के लिए.......दिल और दिमाग के बिच के अंतर्द्वंध को क्या बाखूबी बयां किया है........प्रेमचंद जी की एक कहानी पढ़ी थी बहुत पहले कुछ इसी ज़द्दोज़हद को बयां करती हुई..........बहुत शानदार|
प्यार का संसार
दिल से बसता है !sach hee kaha aapne...
ye to jaise meri kahani lagti hai... behad sanvedansheel.. dhanywad avinash001.blogspot.com
प्रेम में गहरे बसे भावों को उकेरती रचना।
"आज बुद्धि
अनसुना कर देती है
दिल की हर पुकार को
और तुम्हारी ही
भाषा बोलती है....
कि 'प्रेक्टिकल बनो' !"
अनामिका जी,
बहुत ही सहजता से किसी के वर्चस्व के प्रभाव और परिणाम को उजागर करती रचना.
bahut sunder !!
आज बुद्धि
अनसुना कर देती है
दिल की हर पुकार को
और तुम्हारी ही
भाषा बोलती है....
कि 'प्रेक्टिकल बनो' !
आज तुम
हैरान-परेशान हो
मेरे इस परिवर्तन पर ?
तुम्हारी ही सीख
पर तो चल रहा हूँ प्रिये...
तुम्हारा ही तो
अनुसरण कर रहा हूँ प्रिये....!!ye hui n baat
सम्वेदना और बुद्धि का युद्ध, शानदार चित्रण!!
मैं मौन हो ..
विक्षिप्त सा..
उन घावों को
सहलाता रहा
जो मेरे शरीर पर नहीं..
आत्मा पर लगे थे.
मन के द्वन्द को बहुत सुन्दर शब्दों में संजोया है ! कई बार लोगों की कथनी और करनी में बहुत अंतर होता है ! प्यार और व्यावहारिकता की परिभाषा तथा मानदण्ड अपने लिये कुछ और एवं औरों के लिये कुछ और ही होते हैं ! इस मानसिकता को आपने बड़ी खूबी से उभारा है ! बहुत सुन्दर रचना ! बधाई एवं शुभकामनायें !
Kya kahun aur kya na kahun? Nishabd kar diya tumne phir ek baar!
क्या बात है बहुत सुन्दर भावप्रद रचना। शुभकामनाएं अनामिका जी।
विचारणीय रचना ...अच्छी प्रस्तुति
"प्यार का संसार
दिल से बसता है !"
सार्थक और बहुत सुंदर रचना ...
manthan karti hui rachna...
बहुत ही कोमल भावों से सजी सँवरी और रची गयी कविता अनामिका जी बधाई और शुभकामनायें |
anamika ji..blog mahasagar mein apni kasti liye firta rahta hoon..kabhi is dweep pe kabhi is dweep pe.. aaj aap ka guldasta dekhne chala aaya..abhi to pravesh dwar ke pushpon ne hi rok liya..tumhara hi to anusaran kar raha hoon priya..bahut acchi kriti...lekin kaviyon ko dil ki hi jeet dikhani chahiya kyonki yahi shaswat hai..na bhi ho to bhi jindagi pyar se to gujar jaati hai..dil se jude rahne pe..aapko hardi badhai...kabhi aapni kasti mein sawar...aayiyega mere blog dwar
Bahut hi bhawpoorn rachna...
Badhai..
anamika ji
man ke andar chlte bhavo ko aapne bahut hi sundarta ke saath shbd diye hain .
bahut hi achhi lagi aapki yah rachna
badhai-----
poonam
कोमल भावनाओं में रची-बसी खूबसूरत रचना ....
सुन्दर प्रस्तुति चित्रात्मक ,प्रतीक लिए .
सच को प्रतिबिम्बित करती बहुत सार्थक और सटीक रचना!शुभकामनायें !!
भावों की ग्रंथियों को आपने अपने गहन शब्द जाल में जिस सार्थकता से उकरा है वह इस कविता की सुंदरता को और बढाती है!!
मर्म स्पर्शी रचना.
खुबसूरत अभिवयक्ति...
सार्थक और सटीक
तुम्हीं ने शायद
मन ही मन
निर्णय ले डाला
और अपने दिल को
सन्मार्ग दिखा ...
मुझी को उस से
बेघर कर दिया.
मैं मौन हो ..
विक्षिप्त सा..
उन घावों को
सहलाता रहा
जो मेरे शरीर पर नहीं..
आत्मा पर लगे थे.
dil ki baaten likhne ke liye aapka badhai
बहुत सुंदर रचना
मैं मौन हो ..
विक्षिप्त सा..
उन घावों को
सहलाता रहा
जो मेरे शरीर पर नहीं..
आत्मा पर लगे थे.
सार्थक और मर्मस्पर्शी लेखन ...
बहुत सुंदर रचना ...
बहुत सुन्दर भाव और प्रस्तुति |
बधाई
आशा
आज तुम
हैरान-परेशान हो
मेरे इस परिवर्तन पर ?
तुम्हारी ही सीख
पर तो चल रहा हूँ प्रिये...
तुम्हारा ही तो
अनुसरण कर रहा हूँ प्रिये....!!
kahne aur karne me yahi fark hota hai ,bahut hi sundar likha hai .badhai ho .
दिल और दिमाग के अंतर्संबंधों को बेहद कोमल अहसासों से सजा कर पेश करने का खूबसूरत अंदाज सराहनीय है.आभार.
सादर
डोरोथी.
बहुत सार्थक और सटीक रचना .....
http://anamika7577.blogspot.com/
bhaut hi prabhaavpurn rachna....
बेहतरीन।
सादर
aapki tippani apane blog par padhii ...ek ek dil ke nikale aapke aatmeey shabd man ko chhoo gaye aur aapkii kavita padhee .. aap ek saamaany see baat kahanaa shuru karati hain aur dekhate hi dekhate bahut gahare utar jatin hain .. kab ho jaata hai aisa isaka bilkul aabhaas bhi nahin milata .. kuchh aisa rach deti hain aap ki shabd nahin unakii sugandh rah jaati hai ..
bahut achchi lagi......
गहरे से कहीं व्यथा सुनाती सदायें\ शुभकामनायें\
बुद्धि की देवी
आ-आ कर
कई बार
प्यार की चौखट से
बे-आबरु हो कर
लौट गयी.
हालाँकि, तुमने
दामन न छोड़ा था उसका....
Very appealing lines !
Badhaii .
.
आंतरिक भावनाओं से बुनी सार्थक रचना!
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