बुधवार, 18 जनवरी 2012

माध्यम बनी क्या आज नारी ....?



कुटिल            नीतिज्ञों                के  
हृदय            कितने       मलिन    हैं 
स्वयं        हैं           षड्यंत्र       रचते 
फांसते        निरी         नार          हैं.

शोणित        बहाते     अपनों        के  
आश्वस्त        करते         राज       हैं,
मरवा      निर्दोष       रणभूमि      में 
समझते   बच   गयी   अब   लाज  है.

प्रेम        हृदयों       को          तोड़ते
शायद        पत्थरों        के        बने 
इर्ष्या   की    अनल     में     दहकता 
जिनका       निज        स्वार्थ       है.

प्रतिशोध    लेने     के   लिए    सदा 
उपभोग        करते       नारी      का
सहिष्णुता      कैसे      बसे      जहाँ 
विष-वासना     करती      राज     है.

वासना       में         अंध        रावण 
शक्तिरूपा     से       शक्ति     तोलता   
हुंकार      भर        अभिमान       से 
अपने     अंत      को      ललकारता.

अपहरण     कर     मिथिलेश     का 
निर्लज्ज,    रण-भेरी     में    नाचता  
अग्नि  परीक्षा  ले कर भी  सिया को  
अधिकार  हीना  वन  में  भेजा  गया.

याज्ञसैनी     भी     बच     ना     पाई 
विभाजित  हो  पुरुषों  के  वर्चस्व  से 
केशों  से  घसीटे, कोई  वस्त्र  खींचता  
बाहों में लिपटी देह,विद्रूप है टटोलता.

भगिनी   का   बदला   लेने   कुरों  से 
मामा    पासों     का    खेल    खेलता .
कुरुक्षेत्र   पर   महाभारत  लिख  कर 
इतिहास     द्रौपदी     पर     बिसूरता.

सब   सहे   ये    नारी,  फिर  भी  कहें
नारी       नरक       का       द्वार     है
माध्यम     बनी    क्या   आज   नारी 
सामर्थ्य     दिखाने       के      लिए ?

55 टिप्‍पणियां:

Rajesh Kumari ने कहा…

teekha prahaar kiya hai samaaj par rachna ke maadhyam se bahut aujpoorn prerak rachna.

Sadhana Vaid ने कहा…

इसमें कोई संदेह नहीं पुरुष ने सदैव नारी का उपयोग अपनी शक्ति के प्रदर्शन के लिये किया है ! अपने स्वार्थों की सिद्धि के लिये साम दाम दण्ड भेद की नीति अपना हर तरह से उसका शोषण ही किया है ! लेकिन संतोष की बात यह है कि अब नारी जागरूक हो गयी है और अपने अधिकारों को भी जानती है और अपनी सामर्थ्य को भी पहचानती है ! ओजपूर्ण रचना के लिये बहुत बहुत बधाई !

kshama ने कहा…

Is rachana ne wo geet yaad dila diya:' Aurat ne janam diya mardon ko..'

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

विचारपूर्ण रचना है, सही मूल्य समझने होंगे हम सबको..

Nirantar ने कहा…

anamikaji
naari ko sadiyon se logon ne istemaal kiyaa,jo sammaan milnaa chaahiye wo nahee milaa

M VERMA ने कहा…

नारी त्रासदी का सटीक और भावात्‌मक चित्रण

vidya ने कहा…

बहुत बढ़िया.........
जटिल प्रश्न है..जिसका उत्तर पुरुष दे नहीं सकेगा...इतना बड़ा ह्रदय उसके पास कहाँ ???

सादर.

सदा ने कहा…

विचारणीय बातों के साथ सटीक लेखन ...आभार इस बेहतरीन प्रस्‍तुति के लिए ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

फांसते निरी नार हैं.

यहाँ निरी का अर्थ क्या लूँ ? केवल या निरीह ?

विष-वासना --- या विषय - वासना ?

कुरों की जगह कुरुओं आना चाहिए था शायद .

विचारणीय पोस्ट , कुटिल आचरण पर ध्यान दिलाने में सक्षम है यह रचना

Unknown ने कहा…

सटीक बात , सदियों से माध्यम सिर्फ नारी,प्रत्येक अपयश की भागीदार सिर्फ नारी क्यों ? एक प्रश्न उठाती कृति बधाई

Anita ने कहा…

समाज में नारी की स्थिति का चित्रण करती कविता...भंवरी कांड इसका गवाह है.

मनोज कुमार ने कहा…

इस रचना का तेवर समाज को परिवर्तन के लिए ललकारता है। बहुत ही गंभीर और सोचनिय विषय पर आपने एक सारगर्भित कविता लिखी है।

रश्मि प्रभा... ने कहा…

सब सहे ये नारी, फिर भी कहें
नारी नरक का द्वार है
माध्यम बनी क्या आज नारी
सामर्थ्य दिखाने के लिए ?...बहुत बढ़िया

संजय भास्‍कर ने कहा…

waah....bahut dard hai rachna me...

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

आदरणीय संगीता जी , इतनी लगन से इस रचना को पढने के लिए धन्यवाद.

रचना में शब्दों का प्रयोग जिस तरह से किया गया है वह रचना में भाव-प्रवणता बनाये रखने के लिए किया है.

निरी का अर्थ निरीह ही समझा जाए.

बेनामी ने कहा…

अच्छी है पोस्ट|

Rajput ने कहा…

याज्ञसैनी भी बच ना पाई
विभाजित हो पुरुषों के वर्चस्व से
केशों से घसीटे, कोई वस्त्र खींचता
बाहों में लिपटी देह,विद्रूप है टटोलता.

सटीक और भावात्‌मक चित्रण

Amrita Tanmay ने कहा…

स्वयं नारी को सचेत होना है ताकि वह माध्यम न बनाई जा सके..प्रभावशाली रचना..

नीरज गोस्वामी ने कहा…

वाह...... बेजोड़ रचना...बधाई

नीरज

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

नारी का सजीव और सटीक चित्रण किया है आपने इस रचना में।

sangita ने कहा…

विचारणीय लेखनी है | और यह प्राचीन सभ्यता बड़ी शान से आज भी कायम है, भंवरी देवी की कहानी तो आज की ही है |

Arun sathi ने कहा…

sateek wishleshan...abhaar...gussa he lekhnee me...iskee jaroorat bhi he...

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत सुंदर सारगर्भित प्रस्तुति,बेहतरीन विचारणीय पोस्ट ,....
welcome to new post...वाह रे मंहगाई

vidya ने कहा…

बढ़िया....
सारगर्भित रचना...
बधाई.

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

इस छोटी सी जिंदगी में ....शोषित नारी ही होती है हर हाल में ..

जहाँ से शाख टूटी ,वही से शाख फूटी है
वक्त के लम्हे ,इस ज़ख्म को भरने नहीं देते ||..अनु

विभूति" ने कहा…

बेहतरीन और बहुत कुछ लिख दिया आपने..... सार्थक अभिवयक्ति......

Pallavi saxena ने कहा…

सटीक बात कहती बहुत ही सशक्त एवं प्रभावशाली रचना समय मिले कभी तो आयेगा मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है

कौशल किशोर ने कहा…

अच्छा लिखा .....आपकी कविता लोगों तक पहुँच गयी तो लोग तो सोंच बदलने पर मजबूर हो जायेंगे...........
बधाई ...
मेरी नयी कविता तो नहीं उस जैसी पंक्तियाँ "जोश "पढने के लिए मेरे ब्लॉग पे आयें...
http://dilkikashmakash.blogspot.com/

mridula pradhan ने कहा…

chaap chodti hui......bhawpoorn rachna.

Unknown ने कहा…

vaah anaamika jee , hriday ko ek sukun de rahi hai aapki sundar v prabhavshali rachana

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

बहुत ही उम्दा कविता |स्त्री मनोभावों को बड़े सलीके से आपने शब्दों के माध्यम से उकेर दिया है |

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

बहुत सुंदर विचारणीय बातें लिए पंक्तियाँ .....

Maheshwari kaneri ने कहा…

बहुत सही और सार्थक रचना ,मन को छू गई..

Satish Saxena ने कहा…

नारी दशा का बेहतरीन चित्रण किया है आपने !
शुभकामनायें आपको !

दिगम्बर नासवा ने कहा…

प्रतिशोध लेने के लिए सदा
उपभोग करते नारी का ...

sach likha hai ... adhiktar pratishodh ka shikaar naari hi hoti aai hai ... is sthiti ko badalna hoga samaaj ko ... samvedansheel rachna hai ...

Naveen Mani Tripathi ने कहा…

teekha prahar anamika ji .....bilkul samyik aur prasangik rachana ...bahut bahut badhai .

प्रेम सरोवर ने कहा…

सब सहे ये नारी, फिर भी कहें
नारी नरक का द्वार है
माध्यम बनी क्या आज नारी
सामर्थ्य दिखाने के लिए ?

बहुत संदर प्स्तुति । मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

Rakesh Kumar ने कहा…

ओह! आपका तीखा तेवर उजागर हो रहा
है आपकी कविता से.

सोच में सकारात्मकता और सुधार लाना ही होगा.

सुन्दर विचारोत्तेजक प्रस्तुति के लिए आभार.

समय निकालकर मेरे ब्लॉग पर आईयेगा,अनामिका जी.

कुमार राधारमण ने कहा…

बार-बार पुरुषों को धिक्कारने के लिए लिखी गई कविताएं अब ऊब पैदा कर रही हैं।

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

ऐतिहासिक तथ्यों का सहारा लेकर यक्ष प्रश्न करती कविता सोचने पर विवश करती है।

Kailash Sharma ने कहा…

सब सहे ये नारी, फिर भी कहें
नारी नरक का द्वार है
माध्यम बनी क्या आज नारी
सामर्थ्य दिखाने के लिए ?

....बहुत कटु पर सटीक प्रश्न उठाती लाज़वाब अभिव्यक्ति..

dinesh aggarwal ने कहा…

नारियों को जागृत करने के लिये सुन्दर रचना। निश्चित ही सराहनीय।
कृपया इसे भी पढ़े-
क्या यही गणतंत्र है

Mamta Bajpai ने कहा…

बहुत सटीक व्याख्या की है नारियों के शोषण की
पर राहत की बात ये है कि अब बदलाव की सम्भावना नजर आरही है धीरे धीरे ही सही लेकिन बहुत कुछ बदल रहा है

सूत्रधार ने कहा…

आपके इस उत्‍कृष्‍ठ लेखन का आभार ...

।। गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं ।।

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

विचार करने योग्य बहुत सुंदर प्रस्तुति,भावपूर्ण अच्छी रचना,..
WELCOME TO NEW POST --26 जनवरी आया है....
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाए.....

Anupama Tripathi ने कहा…

आपकी किसी पोस्ट की चर्चा है नयी पुरानी हलचल पर कल शनिवार 28/1/2012 को। कृपया पधारें और अपने अनमोल विचार ज़रूर दें।

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

विचारणीय रचना, प्रस्तुति अच्छी लगी.,

welcome to new post --काव्यान्जलि--हमको भी तडपाओगे....

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

नारी के दर्द और व्यथा को बखूबी व्यक्त किया है
कई सवाल है ? जिनका जवाब नहीं है ..बहुत गहरे भाव है इसमे ,,
सार्थक लेखन

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बेहतरीन विचारणीय लाजबाब प्रस्तुतीकरण..

NEW POST...40,वीं वैवाहिक वर्षगाँठ-पर...

amrendra "amar" ने कहा…

बहुत सुन्दर सृजन , बधाई.

Rakesh Kumar ने कहा…

मेरे ब्लॉग पर आईएगा,अनामिका जी.

'हनुमान लीला -भाग ३' पर आपके सुविचार आमंत्रित हैं.

amrendra "amar" ने कहा…

बहुत संदर प्स्तुति । धन्यवाद ।

Naveen Mani Tripathi ने कहा…

bahut hi khoobsoorat rachana hai bilkul teekha prahar ...badhai Anamika ji

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

प्रभावशाली रचना.विचारणीय...

Anjani Kumar ने कहा…

भावमय प्रस्तुति