दोस्तों दर्द-ए-दिल का पैमाना जब छलकता है तो जज्बातों की बरात कुछ यूँ शोर करती है...
ज़रा गौर फरमाइयेगा ....
ज़रा गौर फरमाइयेगा ....
प्यार के बदले में खरीदा उसने
और मुझे हासिल समझ लिया..
पलकों पे चले आये है अश्क मुसाफिर बन कर..
कि मेरे दिल को उसने मेरा बदन समझ लिया...!!
अब एक नज़्म...
मुझे यूं उदास रहने की आदत न थी
खुदा ये मुहोब्बत के गम क्यूँ दे दिए..
मैं अकेला भला था इस संसार में
तूने तन्हाइयों के सागर क्यूँ दे दिए...
खुदा ये मुहोब्बत के गम क्यूँ दे दिए..
मैं अकेला भला था इस संसार में
तूने तन्हाइयों के सागर क्यूँ दे दिए...
मैं तो हँसता था फाके मस्ती में भी..
बे-रब्त उम्मीदों के सैलाब क्यूं दे दिए..
आरज़ू ना की जिसने शब्-ए-महताब की,
उसे खुद पे रोने के सिलसिले क्यूं दे दिए..
ज़ुफ्त्जू ना थी, फिर भी वो आ ही गया तो
उसके आने ने जिन्दगी को शिकन क्यूं दे दिए..
मेरी आँखों में खुशियों के मेले ना सही..
उसे अपना बना मुझे ये आंसू क्यूं दे दिए...!!
29 comments:
waah!!!!!!!!!!!!!
बेहद खूबसूरत नज़्म अनामिका जी....
बहुत खूब.
बहुत सुन्दर वाह!
आपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 09-04-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
पलकों पे चले आये है अश्क मुसाफिर बन कर..
कि मेरे दिल को उसने मेरा बदन समझ लिया...
बेहतरीन भाव पुर्ण प्रस्तुति,सुन्दर गजल ..
वाह!!!!!अनामिका जी बधाई,..
RECENT POST...फुहार....: रूप तुम्हारा...
ज़ुफ्त्जू ना थी, फिर भी वो आ ही गया तो
उसके आने ने जिन्दगी को शिकन क्यूं दे दिए..
मेरी आँखों में खुशियों के मेले ना सही..
उसे अपना बना मुझे ये आंसू क्यूं दे दिए...!!
गहन भाव पूर्ण प्रस्तुति ....बधाईयां अनामिका जी
मैं तो हँसता था फाके मस्ती में भी..
बे-रब्त उम्मीदों के सैलाब क्यूं दे दिए..
आरज़ू ना की जिसने शब्-ए-महताब की,
उसे खुद पे रोने के सिलसिले क्यूं दे दिए..
खूबसूरत नज़्म अनामिका जी
मैं तो हँसता था फाके मस्ती में भी..
बे-रब्त उम्मीदों के सैलाब क्यूं दे दिए..
बिलकुल सच!! छू गयी ये रचना..
शुभकामनाएं अनामिका जी...
मैं तो हँसता था फाके मस्ती में भी..
बे-रब्त उम्मीदों के सैलाब क्यूं दे दिए..
बहुत भावपूर्ण अंदाज़ ...
बधाई एवं शुभकामनायें ...अनामिका जी ...!!
ज़ुफ्त्जू ना थी, फिर भी वो आ ही गया तो
उसके आने ने जिन्दगी को शिकन क्यूं दे दिए..
मेरी आँखों में खुशियों के मेले ना सही..
उसे अपना बना मुझे ये आंसू क्यूं दे दिए...!!दिल तक एहसास जगाती नज़्म
खूबसूरत पंक्तियाँ.....
दिल की गहराइयों से निकले जज़्बात खुद ब खुद दिल में उतरते चले जाते हैं ! बहुत प्यारी नज़्म है अनामिका जी ! बधाई स्वीकार करें !
खूबसूरत नज़्म
Wah! Aur koyi shabd soojh nahee raha!
वाह ...बहुत खूब लिखा है आपने ...
प्रस्तुति का अंदाज़ निराला है..
बेहद सुंदर नज़्म.!!
खूबसूरत नज़्म पेश की हैं आपने आज ... सभी लाजवाब ...
वाह....बहुत खूबसूरत लगी पोस्ट....शानदार।
bahut hi khubsurat....wah.....
bahut hi khubsurat....wah.....
पिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ...
....... बहुत खूबसूरत रचना दी बधाई स्वीकारें.
ज़िन्दगी सीधे बढ़ती जाती है, कुछ मोड़ तड़प दे जाते हैं।
मैं तो हँसता था फाके मस्ती में भी..
बे-रब्त उम्मीदों के सैलाब क्यूं दे दिए..
आरजू ना की जिसने शब्-ए-महताब की,
उसे खुद पे रोने के सिलसिले क्यूं दे दिए..
बहुत ही ख़ूबसूरत नज़्म।
जज़्बात और अलफा़ज़ का बेहतरीन संगम।
मैं अकेला भला था इस संसार में
तूने तन्हाइयों के सागर क्यूँ दे दिए...
बहुत सुंदर नज़्म ।
वाह !!!!!बेहतरीन गज़ल के क्यों ने मेरी एक पुरानी गज़ल याद दिला दी....
बात-बात पर न क्यूँ कहा करो
'क्यूँ' का मैं जवाब नहीं जानता
प्यार के नशे में चूर-चूर हूँ
चीज क्या शराब नहीं जानता
ढाई आखरों में उलझा इस तरह
धर्म की किताब नहीं जानता....
वाह !!!!!बेहतरीन गज़ल के क्यों ने मेरी एक पुरानी गज़ल याद दिला दी....
बात-बात पर न क्यूँ कहा करो
'क्यूँ' का मैं जवाब नहीं जानता
प्यार के नशे में चूर-चूर हूँ
चीज क्या शराब नहीं जानता
ढाई आखरों में उलझा इस तरह
धर्म की किताब नहीं जानता....
सुन्दर अभिव्यक्ति.....बधाई.....
किसी के आने से मन में सितार बज उठता है, किसी के चेहरे पे शिकन मन में आसूं और लब पे खामोशी।
यही तो ज़िन्दगी का अद्भुत नियम है।
मेरी आँखों में खुशियों के मेले ना सही..
उसे अपना बना मुझे ये आंसू क्यूं दे दिए...
कष्टों को क्या याद रखना ....शुभकामनायें आपको !
मैं तो हँसता था फाके मस्ती में भी..
बे-रब्त उम्मीदों के सैलाब क्यूं दे दिए
खूबसूरत नज़्म अनामिका जी, बधाई एवं शुभकामनायें
बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति!
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