गहन प्रेम ही तो किया था प्रिय
क्या इसमें भी तुम्हारी
शंकाएं सिर उठाती हैं ?
यह केवल आसक्ति नहीं थी प्रिय !
इसमें दोषी शायद मेरे
कृत्य ही हैं कहीं न कहीं.
अपेक्षाओं से भरी
बदली लिए
उमड़-घुमड़, बस
बरस गयी तुम पर
बिना जाने कि ये
गहन प्रेम तुम्हें भी
मुझसे है या नहीं ...
एक पल को भी
तुम्हारी इच्छा का
प्रस्फुटन तक
होने नहीं दिया मैंने.
आज सोचती हूँ...
कितनी निर्ममता से
मांग की थी
मैंने अपने नेह के
प्रतिदान की ...
उचित ही तो है फिर
तुम्हारा मेरे प्यार पर
शंका करना औ दुत्कारना .
सच है फिर....
तुम्हारा मेरे प्रति
उदासीन होना और
मेरे प्यार को
तथाकथित प्रेम
कह देना..... !!
31 comments:
इकतरफा प्रेम ,इकतरफा ख्याल कुसूरवार ही होता है
सच है अपेक्षाएं ही अंततः दुःख का कारण बन जाती हैं ।
वन-वे ट्रैफिक के नफे और नुकसान दोनों ही हैं!
इकतरफा प्रेम कभी प्रेम नही कहलाता,
RECENT POST LINK...: खता,,,
एकतरफा प्रेम दुःख का सबब बनता ही है :-(
अनु
prem to bas prem hota hai agar apeksha nahi ho to dukh ka karan nahi banta
एक तरफा प्रेम बहुत तकलीफ देता है...
एक सच है रचना में...
उत्कृष्ट अभिव्यक्ति...
:-)
फिर....
तुम्हारा मेरे प्रति
उदासीन होना और
मेरे प्यार को
तथाकथित प्रेम
कह देना..... !!
जी अनामिका जी ऐसा भी होता है ..जिन्दगी में बहुत सोच समझ परख की जरुरत होती है नहीं तो .... जय श्री राधे
भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण
सच कहा .... ऐसे हालात मन को दुःख ही देते हैं......
प्रश्न तो गहरे उतर कर खड़े होते हैं..
भावपूर्ण अभिव्यक्ति ..
इकतरफ़ा प्रेम को बखूबी बयान कि्या है।
भावपूर्ण अभिव्यक्ति ........
आपेक्षाएं ही न सिर्फ प्रेम बल्कि हर रिश्ते के टूटने कि अहम वजह होती है
प्रेम की इस डगर पर प्राय: इंसान को अकेले ही चलना पड़ता है और हर पल शुष्क होकर टूट-टूट कर बिखरती संवेदनाओं को अपनी ही आँखों से देखना होता है ! बहुत ही भावपूर्ण एवँ मर्मस्पर्शी प्रस्तुति ! अति सुन्दर !
अपेक्षा और उपेक्षा के दोराहे का विभ्रम व्याख्यायित करती एक भावपूर्ण रचना!!
मन की ऊहापोह को व्यक्त करती सुन्दर रचना !
प्रेम ख़ुशी ही देता है , एकतरफा हुआ तो भी ....
खुश रहो की तुमने तो प्रेम ही किया ना , नफरत से हर हाल में बेहतर ही किया ...
बहरहाल एकतरफा प्रेम की त्रासदी को खूब बयां किया !
अपेक्षाओं से भरी
बदली लिए
उमड़-घुमड़, बस
बरस गयी तुम पर
बिना जाने कि ये
गहन प्रेम तुम्हें भी
मुझसे है या नहीं ...
बहुत खूब ...
प्रेम करने को क्या आप आप्रेशन करना समझतीं हैं प्रेम गहन कैसे हो सकता है .प्रेम तो अटूट होता है ,गहन तो निगरानी कक्ष होता है -इंटेंसिव केयर यूनिट है क्या प्रेम ?सघन और गहन तो चिकित्सा होती है प्रेम नहीं हो सकता .प्रेम प्रति दान नहीं मांगता ,बस किया जाता है ,हो जाता है ,पूर्ण समर्पण है प्रेम अद्वैत का द्वैत है .
अपना ही प्रक्षेपण है ,प्रोजेक्शन है प्रतिच्छाया है .पनमब्रा (PENUMBRA),उपच्छाया है प्रेम .ग्रहण लगने पर भी चन्द्रमा का कुछ अंश प्रकाशमान रहता है .हाँ आंशिक चन्द्र ग्रहण हो सकता है प्रेम .
संबंधों का अपनापन किसी सामाजिक स्वीकृति और शाब्दिक अभिव्यक्ति का मोहताज़ नहीं है .स्पर्श की अपनी एक भाषा होती है .बशर्ते के दूसरा भी उसे ग्रहण करने की मनस्थिति में हो .सम्बन्ध अपने संबोधन से
कहीं बड़े होते हैं .कितने सहज शब्दों में कह दिया गया था -प्रेम न बाड़ी ऊपजे ,प्रेम न हाट बिकाय ..
सूफी संत गहरे प्रेम की बात तो करते हैं प्रेम के अर्थ में गहरी आसक्ति हो सकती है .कवियित्री को तत्सम शब्दों के स्तेमाल की आदत सी लगती है .प्यार की ऊर्जा तत्सम शब्द प्रयोग से बिखर जाती है .प्यार तो
एक एहसास है .इस एहसास को उभारने के लिए संस्कृत शब्द घुसाने की कहाँ आवश्यकता है .प्रेम जैसे एहसास को गहन शब्द से जोड़ना उपयुक्त नहीं लगता .
मैं ने प्यार ही तो किया था -कह देना भी उतना ही वजन दार लगता .अब अगर कोई कहे मैं आपसे अतीव प्रेम करता हूँ ,गहन प्रेम करता हूँ तो अटपटा सा लगेगा .गहन प्रेम करना अतीव प्रेम करना प्यार के
ज़ज्बात को हल्का कर देता है .
संबंधों का अपनापन किसी सामाजिक स्वीकृति और शाब्दिक अभिव्यक्ति का मोहताज़ नहीं है .स्पर्श की अपनी एक भाषा होती है .बशर्ते के दूसरा भी उसे ग्रहण करने की मनस्थिति में हो .सम्बन्ध अपने संबोधन से
कहीं बड़े होते हैं .कितने सहज शब्दों में कह दिया गया था -प्रेम न बाड़ी ऊपजे ,प्रेम न हाट बिकाय ..
सूफी संत गहरे प्रेम की बात तो करते हैं प्रेम के अर्थ में गहरी आसक्ति हो सकती है .कवियित्री को तत्सम शब्दों के स्तेमाल की आदत सी लगती है .प्यार की ऊर्जा तत्सम शब्द प्रयोग से बिखर जाती है .प्यार तो
एक एहसास है .इस एहसास को उभारने के लिए संस्कृत शब्द घुसाने की कहाँ आवश्यकता है .प्रेम जैसे एहसास को गहन शब्द से जोड़ना उपयुक्त नहीं लगता .
मैं ने प्यार ही तो किया था -कह देना भी उतना ही वजन दार लगता .अब अगर कोई कहे मैं आपसे अतीव प्रेम करता हूँ ,गहन प्रेम करता हूँ तो अटपटा सा लगेगा .गहन प्रेम करना अतीव प्रेम करना प्यार के
ज़ज्बात को हल्का कर देता है .
प्रेम तो बस होता है...या नहीं होता है...
बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति..
सुन्दर कविता |
प्रेम में देना ही देना है अगर अपेक्षाएं ना रहे तो कोई समस्या ही नहीं है.
सुंदर कविता, अच्छी प्रस्तुति.
वेदना की बढ़िया अभिव्यक्ति...
वाह ... बहुत खूब।
प्रेम तो बस प्रेम होता है
ुसमें लेन-देन कहां होता है ।
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