अपनी तमाम उम्र से
दो सावन निचोड़ दिए
थे तुमने, और
बंजर पड़ी धरती से
कंटीले झाड हटा मैं भी
खुशियों के अंकुर बो
रंग-बिरंगे फूलों की
लह-लहाती फसल पा
झूम रही थी।
कितने खुशगवार दिन थे
दर्द की सारी परतें
बे-बुनियाद हो
अपना ठिकाना
भटक गयी थीं !
आज भी नजरें
तलाश रही हैं
प्रेम से लबालब
उस कश्ती को
जो डूब गयी थी
शक की नदी में।
कई निशब्द से
पैगाम भेजे और
उम्मीदें बाँधी कि
हर बार की तरह
अनकहे मजमून
पढ़ लोगे तुम !
फलक पे इस बार
धुंध गहरा गयी है
मेरे एहसास
शायद नहीं पहुँचते अब !
अवयवों से सांसों तक
उतरती मौत
न जाने कब आ जाये---
बताओ कब तक
फासले तक्सीम कर
रूठे रहोगे मुझसे
जफा के स्वांग
हमारे बीच
कब तक चलेंगे ???
न बिसरेंगे वो सावन
जानते हो तुम भी ,
जबरन लगे तो
देखो सामने
कुछ लकडिया जल रही हैं
हाँ मैंने ही जलाई हैं
रख आओ उस पर
नकारी हुई मेरी मुहोब्बत को
मैं भी समझा लूँ
अड़ियल मन को
कि श्राद्ध कर ले
अपनी मुहोब्बत का !!
26 comments:
अति सुन्दर भावों को बस भाव ने ग्रहण किया और अति सुन्दर रचना..
सुन्दर....बहुत सुन्दर भाव पिरोये हुए रचना..
अनु
कई निशब्द से
पैगाम भेजे और
उम्मीदें बाँधी कि
हर बार की तरह
अनकहे मजमून
पढ़ लोगे तुम !
................. बहुत अच्छी लगी
सुंदर भाव लिये बहुत अच्छी प्रस्तुति,,,,,,,
RECENT POST:..........सागर
बहुत भावपूर्ण रचना...रचना के भाव अंतस को छू गये...
भावों की गहन प्रस्तुति..
मैं भी समझा लूँ
अड़ियल मन को
कि श्राद्ध कर ले
अपनी मुहोब्बत का !!
वाह अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने
भीगी-भीगी संवेदना से परिपूर्ण एक अनुपम रचना जो मन को गहराई तक झकझोर गयी ! अति सुन्दर !
संवेदनशील भाव लिए अति उत्तम कोमल रचना...
गहरे भाव से ओत- प्रोत...
बहुत खूब...
एक बेहद संतुलित कविता। कई प्रयोग मन को बरबस आकर्षित करते हैं। मन की संवेदना बिम्बों के द्वारा मुखरित होकर प्रकट हो रही हैं।
बहुत अच्छी रचना के लिए बधाई।
संवेदनशील रचना.....
भावपूर्ण प्रस्तुति!
आपने लिंक दिया आभार आपका!
भाव ग्रहण कर कुछ कहते नहीं बनता -चुप अनुभव!
बहुत सुंदर रचना
क्या कहने
आपकी भावप्रवण रचना पढ़ कर निदा फ़ाज़ली की ग़ज़ल के शेर याद आ गए ...
जब किसी से कोई गिला रखना
सामने अपने आईना रखना
यूँ उजालों से वास्ता रखना
शम्मा के पास ही हवा रखना
आपकी कोमल भावनाएँ बहुत खूबसूरती से व्यक्त हुई हैं। बधाई
वाह क्या कहने उम्दा भाव बड़ी सुन्दर रचना
शानदार, लाजवाब।
आज भी नजरें
तलाश रही हैं
प्रेम से लबालब
उस कश्ती को
जो डूब गयी थी
शक की नदी में।
आपकी कविता में मन में अंकुरित भावों की अभिव्यक्ति मुखर हो उठी है। धन्यवाद।
न बिसरेंगे वो सावन
जानते हो तुम भी ,
जबरन लगे तो
देखो सामने
कुछ लकडिया जल रही हैं
हाँ मैंने ही जलाई हैं
रख आओ उस पर
नकारी हुई मेरी मुहोब्बत को
मैं भी समझा लूँ
अड़ियल मन को
कि श्राद्ध कर ले
अपनी मुहोब्बत का !!
सुन्दर भावों का बसेरा
फलक पे इस बार
धुंध गहरा गयी है
मेरे एहसास
शायद नहीं पहुँचते अब !
बहुत सुन्दर....
बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
bahut khoob....atal nishchay ...par kitna mushkil hai....
khubsurat bhaw se paripurn abhivyakti:)
फलक पे इस बार
धुंध गहरा गयी है
मेरे एहसास
शायद नहीं पहुँचते अब
- मौसम का भी कम दोष नहीं.
अभिव्यक्ति बहुत समर्थ है !
देखो सामने
कुछ लकडिया जल रही हैं
हाँ मैंने ही जलाई हैं
रख आओ उस पर
नकारी हुई मेरी मुहोब्बत को ...
प्यारी सी पंक्तियाँ
खुबसूरत भाव भर दिए
आभार
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