Monday 28 January 2013

हाँ मैं नारी हूँ--


रश्मि प्रभा जी के आह्वान पर इस रचना को रचा गया------और गणतंत्र दिवस पर उनके ब्लॉग परिचर्चा पर इसे शोभा पाने का अवसर मिला---लीजिये आपके विचारों हेतु प्रस्तुत है ---

हाँ मैं नारी हूँ--





जिस   पैदाइश   पर   मुंह  बिसूरा   गया 
फिर   कंजक   बना   बेशक   पूजा   गया 
लिख  दिए  कुछ  शब्द मेरी सलेट पर कि -- 
ढका, नपा -तुला, दबा रहना सिखाया गया 
हाँ   वही  संस्कारों  में   दबी  नारी  हूँ  मैं।

चुभती    नज़रें    बदन    पर   सरकती   रही 
अफ़सोस शर्म से खुद की ही नजर झुकती रही 
पढ़-लिख  के  नवाबी   सनदें  छुपा   दी  गयी 
चूल्हे-चौके  की  मजहबी  सरहदें  बना दी गयी --
हाँ   वही   अपनों   में  मिटती  नारी  हूँ  मैं।

बूँद-बूँद    रिश्तों     को     बचाती    रही 
आजन्म सौगाती रिश्तों  में संवरती  रही 
हादसों से  खंडर  में  तब्दील  होती  गयी  
बर्दाश्त की हदें भी  मुझी को दिखाई गयी --
हाँ  वही  टुकड़ों  में  बिखरी  नारी  हूँ  मैं।

कभी उम्र तो कभी जिन्दगी को जलाया गया
जख्म   देकर   नासूरों    को    छीला   गया 
धिक्कार  कर  सारे  अधिकार हनन कर दिए  
चोटों    को    सहलाती,    मर्माती,   रंभाती 
हाँ   वही   दर्द  की   परछाई   नारी   हूँ   मैं।

मुझ  पर ईमान खोता, मेरे पहलु में रोता 
मुझसे  ही जन्मा,  मुझी में विलीन होगा 
ओ अधूरे पुरुष मुझसे ही तू सम्पूर्ण होगा 
मैं    ही    हूँ    दुर्गा,   मैं    ही    भवानी, 
हाँ    वही    सम्पूर्ण     नारी     हूँ     मैं।

मैं   चाहूँ   तो   क्षण   में  तुझे  रौंद  दूं 
अपने  ही  जख्मों   से   तुझे   तोल  दूँ 
मगर  अम्बा  से  पहले  जगदम्बा हूँ मैं 
दुर्गा     से      पहले    गौरा     हूँ    मैं 
तेरी तरह अधूरी नहीं,सम्पूर्ण नारी हूँ मैं।


http://paricharcha-rashmiprabha.blogspot.in/2013/01/5.html

36 comments:

Pallavi saxena said...

सत्य वचन....काश बस एक यही बात समझ पाते जो यह पुरुष तो आज शायद हमारे समाज का आईना ही कुछ और होता।

प्रवीण पाण्डेय said...

सशक्त और सामयिक रचना..

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

बेहतरीन,लाजबाब अभिव्यक्ति,,,,

recent post: कैसा,यह गणतंत्र हमारा,

Anita said...

मगर अम्बा से पहले जगदम्बा हूँ मैं
दुर्गा से पहले गौरा हूँ मैं

वाह ! नारी को अपनी शक्ति को स्वयं ही पहचानना होगा..

कालीपद "प्रसाद" said...

-बहुत सुन्दर,भावपूर्ण रचना
New post तुम ही हो दामिनी।

Ramakant Singh said...

मुझ पर ईमान खोता, मेरे पहलु में रोता
मुझसे ही जन्मा, मुझी में विलीन होगा
ओ अधूरे पुरुष मुझसे ही तू सम्पूर्ण होगा
मैं ही हूँ दुर्गा, मैं ही भवानी,
हाँ वही सम्पूर्ण नारी हूँ मैं।

बेहतरीन,लाजबाब अभिव्यक्ति

शिवनाथ कुमार said...

मैं चाहूँ तो क्षण में तुझे रौंद दूं
अपने ही जख्मों से तुझे तोल दूँ
मगर अम्बा से पहले जगदम्बा हूँ मैं
दुर्गा से पहले गौरा हूँ मैं
तेरी तरह अधूरी नहीं,सम्पूर्ण नारी हूँ मैं।


प्रभावशाली रचना !
सादर !

संध्या शर्मा said...

सशक्त... लाजबाब अभिव्यक्ति...

डॉ. मोनिका शर्मा said...

प्रासंगिक भाव लिए प्रभावी कविता ......

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सुंदर रचना ।

प्रतिभा सक्सेना said...

सृष्टि का दायित्व लिये ,नारी कर्तव्य-कर्म से विमुख नहीं होती पर नर अपने अहं में सब भूल जाता है.

Asha Lata Saxena said...

बहुत बहुत सुन्दर भाव लिए रचना |
"मगर अम्बा से पहले जगदम्बा हूँ में ------"बढ़िया तुलना की है |
आशा

मुकेश कुमार सिन्हा said...

jabab nahi...behtareen..

Unknown said...

लाजबाब अभिव्यक्ति और सामयिक

mridula pradhan said...

bahot achchi.....

Amrita Tanmay said...

बेहद सशक्त रचना..

kavita vikas said...

very nicely written anamika ji

प्रेम सरोवर said...

मैं चाहूँ तो क्षण में तुझे रौंद दूं
अपने ही जख्मों से तुझे तोल दूँ
मगर अम्बा से पहले जगदम्बा हूँ मैं
दुर्गा से पहले गौरा हूँ मैं
तेरी तरह अधूरी नहीं,सम्पूर्ण नारी हूँ मैं।

इसके बाद कुछ कहने के लिए शेष नही रह जाता है।
पुरूषों को अपनी मानसिकता में परिवर्तन लाना जरूरी है। मुझे प्रोत्साहित करने के लिए आपका आभार। शुभ रात्रि।

मनोज कुमार said...

विचारोत्तेजक!

रचना दीक्षित said...

मैं चाहूँ तो क्षण में तुझे रौंद दूं
अपने ही जख्मों से तुझे तोल दूँ
मगर अम्बा से पहले जगदम्बा हूँ मैं
दुर्गा से पहले गौरा हूँ मैं
तेरी तरह अधूरी नहीं,सम्पूर्ण नारी हूँ मैं।

नारी शक्ति जिंदाबाद. सुंदर प्रस्तुति. बधाइयाँ.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

सामयिक प्रेरक रचना, शुभकामनाएँ.

इमरान अंसारी said...

amazing......haits off.

Sadhana Vaid said...

नारी के अबला और सबला दोनों रूपों का बहुत सशक्त चित्रण किया है ! ओज एवं आग से सिक्त एक सम्पूर्ण रचना !

Harihar (विकेश कुमार बडोला) said...

तेरी तरह अधूरी नहीं,सम्पूर्ण नारी हूँ मैं.......उत्‍प्रेरित करती कविता।

Udan Tashtari said...

उम्दा रचना!

Dinesh pareek said...

बहुत उम्दा पंक्तियाँ ..... वहा बहुत खूब
मेरी नई रचना
खुशबू
प्रेमविरह

Asha Joglekar said...

सामयिक भी सटीक भी ।

हमें नारी होने पर गर्व हो, क्यूं कि सृजन का अधिकार सिर्फ हमारा है

सदा said...

बेहतरीन अभिव्‍यक्ति

निवेदिता श्रीवास्तव said...

बहुत ही सशक्त रूप से नारी के कोमल तत्व को चित्रित किया ......

A.G.Krishnan said...

JAI SHRI KRISHNA

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" said...

बहुत ही खूबसूरत तरीके से नारी जीवन के समस्त पहलों को दर्शाती और अंत में असलियत से रूबरू कराती लाजबाब अभिव्यक्ति ..नारी शक्ति तू महँ है ...तू है तो हम हैं हमारे निसान हैं..हार्दिक बढ़ायी के साथ...सादर

सुज्ञ said...

होली की हार्दिक शुभकामनायें!!!

आशा बिष्ट said...

वाह खूब सूरत रचना

Asha Joglekar said...

Bahut sahee aur sashakt bhee .

Pramod Kumar Kush 'tanha' said...


बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति है ...

Unknown said...

अति सुन्दर भावपूर्ण और सशक्त रचना जो बहुत कुछ सोचने पर प्रेरित करती है । शुभकामनाएँ । सस्नेह