Sunday, 13 December 2009

प्रारब्ध












चेहरे की झुर्रिया..
अपने निशाँ
छोड़ने लगी है..!!
मौत भी धीरे धीरे ..
अपनी चादर
फैलाने लगी है...!!
क्षणिक सुखो की
भावभरी शाखाये भी..
दारुड दुःख में..
सूख चली है..!!
मगर..., आह....
ये प्रारब्ध..
हां....
ये निर्दयी प्रारब्ध
पैशाचिक नृत्य
करता हुआ..
क्षण - क्षण..
जिंदगी को
लीले जाता है..!!
फिर भी...
फिर भी..
अवसाद यू, की
वो अंतिम क्षण
आने ही नहीं पाता ..
इस संतप्त जिंदगी का ..!!
आह ...
ये निर्दयी प्रारब्ध...!

13 comments:

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

अनामिका जी
रचना काफी भावपूर्ण रही

शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

क्षणिक सुखो की
भावभरी शाखाये भी..
दारुड दुःख में..
सूख चली है..!!

dard se labrez rachna.....bass yahi hota hai prarabdh ...jo chaahte hain milta kahan hai? mann ke bhavon ko bakhoobi bayan kiya hai...badhai

हरकीरत ' हीर' said...

ये निर्दयी प्रारब्ध
पैशाचिक नृत्य
करता हुआ..
क्षण - क्षण..
जिंदगी को
लीले जाता है..!!

अनामिका जी सुंदर भावअभिव्यक्ति ......!!

ये दीं रात न हों तो जीवन भी निराश हो जायेगा ....संघष ही जीवन है ......!!

दिगम्बर नासवा said...

गहरे एहसास सिमेटे लजवाब रचना .......... सच है नयी शुरुआत करनी ही पढ़ती है .......... बहुत खूब .........

شہروز said...

कई कविताओं से गुज़रा.हर एक का अपना कथ्य है.अंदाज़ है. विशेषता पहली है, इनकी सादगी और सहजता.खूब लिखिए, खूब पढ़िए.यही दुआ है, जोर-कलम और ज्यादा!

देवेन्द्र पाण्डेय said...

फिर भी..
अवसाद यू, की
वो अंतिम क्षण
आने ही नहीं पाता ..
---बहुत खूब..

shikha varshney said...

bahut sunder likha hai Anamika!
tumhara ye blog kese follow kar sakte hain? yahan koi option nahi deekh raha.

संजय भास्‍कर said...

अनामिका जी
रचना काफी भावपूर्ण रही

वन्दना अवस्थी दुबे said...

बहुत-बहुत सुन्दर रचना.

स्वप्न मञ्जूषा said...

अनामिका जी,
पहली बात आई हूँ आपके ब्लॉग पर...और हर्ष हुआ आपको पढ़ कर...
अपने भावों को सुन्दर शब्द देने में समर्थ हुई हैं आप...
बहुत बहुत बधाई...

ज्योति सिंह said...

mujhe bhi aapki rachna bahut pasand aai

Amrita Tanmay said...

प्रारब्ध निर्दयी ही होता है और हम विवश..

vandana gupta said...

बेहद गहन अभिव्यक्ति।