कतरा - कतरा कर ख़ुद ही में ये लिपट जाएगा..
तुमको पता भी न चलेगा..
कितने गम...कितनी तन्हाईया
ख़ुद ही मे ले कर ये मिट जाएगा..
लम्हा दर लम्हा सागर सिमट जाएगा..
कतरा - कतरा कर ख़ुद ही में ये लिपट जाएगा..
भटकते भटकते एक दिन जब सांसे थक जाएँगी..
इन पत्थर दिल इंसानों की नगरी से जब उम्मीदे टूट जाएँगी..
उपर वाले से लड़ते लड़ते जब तकदीर हार जायेगी..
उस दिन देखना तुम सागर को..
मगर फ़िर भी दर्द पर हस्ते सागर की
बस हँसी ही तुमको नज़र आएगी..
न जान पाओगे तब भी तुम...
कितने गम...कितनी तन्हाईया
ख़ुद ही मे ले कर..
ये सागर सिमट जाएगा..!!
कतरा - कतरा कर ख़ुद ही में ये लिपट जाएगा..!!
मेरी चाहत है कि, एक वक्त ऐसा भी हो जाए..
तुम मेरे लिए तड़पो ..और मै इस जहान से रुखसत हो जाऊ..
तुम समझो तब अपनी बे-रुखिया ...अपने सितम..
तब तुम जी भर के रोवो....और मै भी तुम्हारी तरह मुस्कुराती रहू..
सुना हे प्यार जब पुराना हो जाता है, तो
कोयले की तरह भीतर ही भीतर जल जाता है..
आज मेरी भी हालत वही हो गई है..
और चाहत है की तुम वो ही कोयला बन जाओ..
देखना एक दिन यु ही दर्द से सराबोर जब ये हो जाएगा..
टूट कर जब ये नि-श्वास हो जाएगा..
लम्हा दर लम्हा सागर सिमट जाएगा..
कतरा कतरा कर के ...
भीतर ही भीतर ख़ुद ही मे ये समा जाएगा..
तुमको तो पता भी न होगा..
कितने गम...कितनी तन्हाईया
ख़ुद ही मे ले कर ये सागर मिट जाएगा.
लम्हा दर लम्हा सागर सिमट जाएगा..
कतरा - कतरा कर ख़ुद ही में ये लिपट जाएगा..
19 comments:
लम्हा दर लम्हा सागर सिमट जाएगा..
कतरा - कतरा कर ख़ुद ही में ये लिपट जाएगा..
न जान पाओगे तब भी तुम...
कितने गम...कितनी तन्हाईया
ख़ुद ही मे ले कर..
ये सागर सिमट जाएगा..!!
कतरा - कतरा कर ख़ुद ही में ये लिपट जाएगा..!!
bahut hi behtrin dil ko chhoo gayi ,dard ubaal le raha hai ,sundar abhivyakti
अनामिका जी,
सागर के हवाले से भावनाओं की ये प्रस्तुति दिल को छूने वाली लगी
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
दर्द जब हद से गुज़र जाये तो शायद यही होता है....बेंथान
प्यार में शायद मुंह शायद बददुआएं भी निकल जाती हैं.....
प्यार की पराकाष्ठा को दर्शाती रचना .......सुन्दर लेखन के लिए बधाई
सुना हे प्यार जब पुराना हो जाता है, तो
कोयले की तरह भीतर ही भीतर जल जाता है..
bahut sunder nazm kahii hai...mujhe bahut achchhii lagii ...meray blog par aane aur khoobsorat andaz mein 'comments' dene ke liye bhi aapka bahut shukriya
दिल को छूने वाली कमाल की रचना है ......... अनामिका जी ....... गहरे दर्द की अभिव्यक्ति है यह रचना ........
चलिए आज से आपके फ़ौलोवर बन गए हैं ताकि कोई भी जादू छूटे न हमसे ..शुभकामनाएं
क्या कभी मुमकिन हुआ है जान पाना कि ज़िन्दगी क्या है ? एक सांस में पढ़ता हूँ और सोचता हूँ कि इन सवालों से अलहदा क्या होगा जीवन. एक गहरी सांस उतरती है भीतर तक, परेशां करती हुई. कविता दिल के बहुत करीब है शायद आपकी, आज तक की सबसे बेहतरीन कविता.
sundar rachna hai..
shubhkamnaye..
सुना हे प्यार जब पुराना हो जाता है, तो
कोयले की तरह भीतर ही भीतर जल जाता है..
आज मेरी भी हालत वही हो गई है..
और चाहत है की तुम वो ही कोयला बन जाओ..
यह प्रेम की पराकाष्ठा है या प्रेम का अतिरेक...लेकिन यह तय है की यह प्रेम है...
बहुत सुन्दर लगी प्रेममयी कविता...
... सुन्दर रचना !!!
ANAMIKA ...BEHAD SUNDER RACHANYE AAPKE BLOG PAR PADHNE KO MILI HAI ..MERI ZANIB SE BAHUT BAHUT SUBH KAMNAYEN...
----AJIT
बहुत अच्छा लिखती हैं आप. एहसास को बयाँ करना बखूबी आता है आपको.
बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......
blog par aaney aur khoobsoorat tippani ke liye aapka dil se aabhaari huu.n.
मेरी चाहत है कि, एक वक्त ऐसा भी हो जाए..
तुम मेरे लिए तड़पो ..और मै इस जहान से रुखसत हो जाऊ..
तुम समझो तब अपनी बे-रुखिया ...अपने सितम..
तब तुम जी भर के रोवो....और मै भी तुम्हारी तरह मुस्कुराती रहू..--
सुना हे प्यार जब पुराना हो जाता है, तो
कोयले की तरह भीतर ही भीतर जल जाता है..
आज मेरी भी हालत वही हो गई है..
और चाहत है की तुम वो ही कोयला बन जाओ..
---नहीं, यह ठीक नहीं है.. दर्द ठीक है.. दर्द का सहना ठीक है.. मगर किसी के लिए बद्दुआ यह ठीक नहीं है।
मन तभी हल्का होता है जब हम उसे भी माफ कर दें जिसने हमारे साथ बेवफाई की
नफरत की आग में जलने से तो प्यार कोयला होगा ही!
माफ करना ही बेहतर इलाज है. माफ भी इस तरह कि उसे मालूम न हो... वह जैसा है वैसा है...
बस हमें उसे माफ कर देना है और भूल जाना है।
यह कठिन है लेकिन यही सही है.
ऐसा मेरा मानना है, मैं गलत भी हो सकता हूँ।
दिल को छूने वाली कमाल की रचना है ......... अनामिका जी ....... गहरे दर्द की अभिव्यक्ति है यह रचना
सुन्दर कवितायें बार-बार पढने पर मजबूर कर देती हैं. आपकी कवितायें उन्ही सुन्दर कविताओं में हैं.
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 15 -09 - 2011 को यहाँ भी है
...नयी पुरानी हलचल में ... आईनों के शहर का वो शख्स था
सागर जैसी गहराई ,सागर जैसा मिजाज
जाने कितने दफ्न हैं इस गहराई में राज.
लहरों सी उमड़ती हुई रचना.
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