Monday, 28 December 2009

तू और मैं ....
















मेरे स्वप्नो की छाया में रमी हुई
मेरी स्मृतियों में बसी
सांसो के धागो में बंधी तू...!
और मै.......??
तेरी छाया के पीछे दौड़ता
एक व्याकुळ, आकुल,
बेबस पथिक मात्र हू..!

तू अपने ह्र्दय की फुलवारी में
किसी और की सोचे बुन रही है
तेरी छटपटाहट मेरे लिए नही है
तेरी उदासीनता का मुझे भान है
मगर मै तेरे ध्यान को
आकर्षित ना कर सका, और...
चुपचाप तुझमे लीन रहा
और तू अल्हड़, बेखबर की तरह
मेरे सपनो के परे छिपी रही !

मै अपनी निराशा, उन्माद, व्यथा
और व्यग्रता में उपासना की
इस एकांकी मंजिल की ओर
निरंतर बढता रहा !
अपनी अतृप्त व्याकुलता को
दौड़ाता रहा, किंतु
तेरे प्रेम पथ का ओर
छोड़ ना सका और..
छोर पा ना सका..!

ये जीवन इंतजार की
घड़ियों में एकत्रित हो..
सूखता रहा !

अब मै सूनेपन की
समाधी में गड़ा
अपनी नीरवता के
सूखे फुलो से लदा हू..
किंतु मेरे अरमान
अब भी जीवित हैं..
और मेरी लाश रूप धरती पर
कृमियों की तरह
रेंगते हुए तड़प रहे हैं !

तू चाहे इस धरती पर
पराग कणो की तरह बिखर के उड़ गयी..
परंतु तेरे चरण - चिन्ह
अंकित हैं आज भी
ह्र्दय धरा पर !!

26 comments:

विनोद कुमार पांडेय said...

वाह बहुत सुंदर..बेहतरीन अभिव्यक्ति...रचना बहुत बढ़िया लगी..धन्यवाद!!!

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

बेहतरीन अभिव्यक्ति के साथ...... सुंदर रचना.......

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

बेहतरीन अभिव्यक्ति के साथ...... सुंदर रचना.......

ज्योति सिंह said...

is poori rachna me kahne se jyaada doobne ki jaroort mahsoos hui ,bhav itne gahre hai ki nishabd kar diye ,bahut hi shaandaar rachna
अब मै सूनेपन की
समाधी में गड़ा
अपनी नीरवता के
सूखे फुलो से लदा हू..
किंतु मेरे अरमान
अब भी जीवित हैं..
और मेरी लाश रूप धरती पर
कृमियों की तरह
रेंगते हुए तड़प रहे हैं .waah waah .

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

अनामिका जी,
इन सुन्दर पंक्तियों के लिये बधाई
तू अपने ह्र्दय की फुलवारी में
किसी और की सोचे बुन रही है
तेरी छटपटाहट मेरे लिए नही है
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

जोगी said...

waah !! bahut sundar likha hai ...great one !!!

Udan Tashtari said...

बेहतरीन भावपूर्ण रचना.

--

यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।

हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.

मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.

निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।

एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।

आपका साधुवाद!!

शुभकामनाएँ!

समीर लाल
उड़न तश्तरी

वाणी गीत said...

इन्तजार की घड़ियों में सूखे फूलों सा जीवन ...
ह्रदय धरा पर अंकित पद चिन्ह ...
बहुत सुन्दर .....!!

हास्यफुहार said...

बहुत अच्छी कविता।
आने वाला साल मंगलमय हो।

Ravi Rajbhar said...

अब मै सूनेपन की
समाधी में गड़ा
अपनी नीरवता के
सूखे फुलो से लदा हू..
किंतु मेरे अरमान
अब भी जीवित हैं..
और मेरी लाश रूप धरती पर
कृमियों की तरह
रेंगते हुए तड़प रहे हैं !

First impresion is last impresion..
anamika jee . itna dard bhara hai aapki rachna me ki dil tharra gaya ..bahut achchha likhtin hain aap.badhai ho.

Ravi Rajbhar said...

Anamika jee,
Bahut achchha laga ki FARIDABAD se hai..
sanjay colony,dispojal chauk NIT Faridabad,ye mera add. hai jahan ham bachpan se rahe.aur ab apne home town Mau main 2006 se hain..halanki mere mammi papa wahin hai..ye sab ish liye likh diya ...ko o garmiyon ki school ki chhutti dinbhar criket ki fiel me aur sam ko chhat se patang udana..subah white pant shirt aur tai kaskar chote-chote paireo se dag bhara hai maine faridabad men...so aapki profile ko dekhte hi apne atit ke aine me chala gaya..

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

तू चाहे इस धरती पर
पराग कणो की तरह बिखर के उड़ गयी..
परंतु तेरे चरण - चिन्ह
अंकित हैं आज भी
ह्र्दय धरा पर !!

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.......प्रेम से भरपूर रचना.....बधाई

रंजू भाटिया said...

अच्छा लिखा है आपने ...छाया के पीछे ही दोड़ता है मन ..सुन्दर

दिगम्बर नासवा said...

मृग की तरह इंसान भी भागता रहता है किसी छाया के पीछे जबकि कस्तूरी तो मृग के अंदर ही होती है ...... भावों की बेहतरेन अभिव्यक्ति .......... नव वर्ष की आपको बहुत बहुत शुभकामनाएँ मंगल मय हो ...........

Pushpendra Singh "Pushp" said...

बहुत ही सुन्दर रचना
बहुत -२ बधाई

के सी said...

आज की कविता लाजवाब करती है

सच है कि कुछ कहा न जायेगा, सिर्फ बधाई और बधाई .

हरकीरत ' हीर' said...

अब मै सूनेपन की
समाधी में गड़ा
अपनी नीरवता के
सूखे फुलो से लदा हू..
किंतु मेरे अरमान
अब भी जीवित हैं..
और मेरी लाश रूप धरती पर
कृमियों की तरह
रेंगते हुए तड़प रहे हैं !

स्त्री होते हुए भी पुरुष सोच की इतनी सुंदर अभिव्यक्ति ....??
'कृमियों की तरह' बिलकुल नया उदहारण है .....!!

शबनम खान said...

sundar abhivyakti..behetreen kavita

Satya Vyas said...

आपके पास बहुत कुछ है कहने को .
बहुत सुन्दर रचना
लिखती रहे
सत्य

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

मार्मिक और प्रभावी अभिव्यक्ति।
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।
--------
पुरूषों के श्रेष्ठता के जींस-शंकाएं और जवाब।
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन के पुरस्‍कार घोषित।

Pushpendra Singh "Pushp" said...

खुबसूरत रचना आभार
नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएं ................

रचना दीक्षित said...

तू चाहे इस धरती पर
पराग कणो की तरह बिखर के उड़ गयी..
परंतु तेरे चरण - चिन्ह
अंकित हैं आज भी
ह्र्दय धरा पर !!
एक बहुत बेहतरीन रचना गंभीर भाव लिए हुए
नववर्ष पर हार्दिक बधाई आप व आपके परिवार की सुख और समृद्धि की कामना के साथ
सादर रचना दीक्षित

dweepanter said...

बहुत ही सुंदर रचना है। नववर्ष की शुभकामनाओं के साथ ब्लाग जगत में द्वीपांतर परिवार आपका स्वागत करता है।

pramod kush ' tanha' said...

तू अपने ह्र्दय की फुलवारी में
किसी और की सोचे बुन रही है
तेरी छटपटाहट मेरे लिए नही है
...bahut khoob...bahut hi sunder...kya likhti hein aap...badhaayee...

संजय भास्‍कर said...

आपके पास बहुत कुछ है कहने को .
बहुत सुन्दर रचना
लिखती रहे |

vandana gupta said...

behad sundar aur bhaavpoorna rachana.