Sunday, 14 February 2010

ज़रुरत नही थी तुमको..




















मेरे प्यार की शायद ज़रुरत तो नही थी तुमको..
मैने ग़लत समझा...जो तुम्हे प्यार किया..
तुम्हे प्यासा समझा..तुम्हे जी जान से चाहा किया..
तुम्हे तो चाह ही नही थी फिर क्यू ये प्यार किया..!!

दिल मे बिठा के तुमने मुझे अपना कहा..
बस अपना कहा..पर मन से ना इकरार किया..
मैं पगली दिवानी खुद को ही भूल गयी..
तुम्हारी बाहों मे तकदीर छल रही थी, मैं भूल गयी..

तुम निष्ठुर हो...मैं अश्क बहाउ तो क्या..
तुम चोट देते हो..मैं दर्द से कराहू तो क्या..?
इसलिए आज मैं होटो को सिये आहें भरती हू..!!
मन रोता है मेरा मगर रुखसार पे हँसी रखती हू..!!

रोने को अब अश्क भी बाकी कहाँ बचे है..
प्यास बुझाने को अब मयखाने कहाँ बचे है..!!
प्यार के बोल जो तुम अब बोलते हो ओ जाना..
जख्म और हरे होते है..दिल के दर्द और बड़े है..!!

मत छुओ मुझे अब यू ही तन्हा रहने दो..
अशांत सागर हू मैं और ना पत्थर फैको .
दम ना निकल जाए इस दर्द को पीते-पीते..
रहने भी दो अब और ना मरहम से सेंको .!!

11 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

अक्सर प्यार में धोखा ही मिलता है...और मुहब्बत का शायद दूसरा नाम ही दर्द है.....दर्द को भी गुलदस्ते के समान सजाया है...
मार्मिक रचना .

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

अनामिका जी, आदाब
...दिल मे बिठा के तुमने मुझे अपना कहा..
बस अपना कहा..पर मन से ना इकरार किया..
मैं पगली दिवानी खुद को ही भूल गयी..
तुम्हारी बाहों मे तकदीर छल रही थी, मैं भूल गयी..
ये क्या...प्रेम पर्व पर इतनी शिकायतें???
... रचना काफ़ी अच्छी है.बधाई

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

मत छुओ मुझे अब यू ही तन्हा रहने दो..
अशांत सागर हू मैं और ना पत्थर फैको .
दम ना निकल जाए इस दर्द को पीते-पीते..
रहने भी दो अब और ना मरहम से सेंको .!!

बहुत सुंदर पंक्तियाँ.....


बधाई...

Udan Tashtari said...

मत छुओ मुझे अब यू ही तन्हा रहने दो..
अशांत सागर हू मैं और ना पत्थर फैको .
दम ना निकल जाए इस दर्द को पीते-पीते..
रहने भी दो अब और ना मरहम से सेंको

-बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति!!

CS Devendra K Sharma "Man without Brain" said...

wah dard ki isse behtar abhivyakti aur kya ho sakti hai.............but somewhere 'dard' also has its signifcance...."kya khaakh maza tha jeene me jab dard nahi tha seene me"

अनिल कान्त said...

प्रेम का एक रूप यह भी है...बहुत से इससे भी रूबरू होते हैं ...आपने बहुत अच्छा लिखा है

संजय भास्‍कर said...

दम ना निकल जाए इस दर्द को पीते-पीते..
रहने भी दो अब और ना मरहम से सेंको .!!

बहुत सुंदर पंक्तियाँ.....

स्वप्न मञ्जूषा said...

jab dekho daant dikhaati hai aur kvita likhti hai..

मत छुओ मुझे अब यू ही तन्हा रहने दो..
अशांत सागर हू मैं और ना पत्थर फैको .
दम ना निकल जाए इस दर्द को पीते-पीते..
रहने भी दो अब और ना मरहम से सेंको

bilkul matct nahi karta tere par..
lekin fir bhi kahungi bahut sundar likha hai..chhokri ne...chakkar kya hai pata karna padega...aisi khilkhilati hai ki aankhein bhar aati hain..
buddhu kahin ki...

दिगम्बर नासवा said...

मत छुओ मुझे अब यू ही तन्हा रहने दो..
अशांत सागर हू मैं और ना पत्थर फैको .
दम ना निकल जाए इस दर्द को पीते-पीते..
रहने भी दो अब और ना मरहम से सेंको ...

मार्मिक अभिव्यक्ति .... पर वेलेंटाइन डे पर इतना दर्द क्यों ... आज का दिन तो प्रेम के सागर में डूब कर हिलोरे लेने का है .... बहुत ही संवेदना है इस रचना में ...

अलीम आज़मी said...

bahut sunder aapne likha hai ... har ek line ki vishta liye hue hai .... bahut umda andaaz
waqt nikaalkar hamare blogs par aaya kijiye khushi hogi

ज्योति सिंह said...

मत छुओ मुझे अब यू ही तन्हा रहने दो..
अशांत सागर हू मैं और ना पत्थर फैको .
दम ना निकल जाए इस दर्द को पीते-पीते..
रहने भी दो अब और ना मरहम से सेंको .!!
dard to ubalkar upar aa gaya ,dil ko chhoo gayi ,bahut hi achchha likha hai