Thursday, 4 March 2010

मै हू ओस..

















छोड दे रात भर आज तू मुझे रोने क लिए..
समेटा करुंगा शब- ए- रात गम, तेरी ख़ुशी के लिए

तेरी रजा यही है तो यही ही सही
मै पळ पळ मरता रहूंगा, तेरी चाहत के लिए

नसीबो के खेळ छिपे हैं अपनी अपनी लकीरो में
तू सो चैन की नींद, मै हू ओस, शब पर बहने के लिए

मजबूरियो के नाम पर, बढा ले तू कितने भी फासले
तू चीरेजा कलेजा, मै हू हर घाव सीने के लिए !

देख सके तो देख अक्स अपना, आईना हू मैं तेरा..
जख्म कितने दिये तूने मुझे झुल्साने के लिए.

दिन जळते रहे , राते भी गळ गयी
कतरा - कतरा मर रहा तेरी चाहत के लिए.

आहे फुटे तो क्या, जिस्म बच भी जायें तो क्या
रूह तो फना हो गयी तेरी मुहोब्बत के लिए.

23 comments:

shikha varshney said...

behatreen abhivyakti Anamika ji

sachin junghare ki kahani said...

bohat badiya jai ji

Mithilesh dubey said...

क्या बात है , बहुत खूब लिखा है आपने , लाजवाब अभिव्यक्ति लगी ।

kishore ghildiyal said...

lajawab bahut khoob

ज्योति सिंह said...

देख सके तो देख अक्स अपना, आईना हू मैं तेरा..
जख्म कितने दिये तूने मुझे झुल्साने के लिए.

दिन जळते रहे , राते भी गळ गयी
कतरा - कतरा मर रहा तेरी चाहत के लिए.
bahut hi behtrin kya kahoon is chahat ke liye ?

kunwarji's said...

"मजबूरियो के नाम पर, बढा ले तू कितने भी फासले


तू चीरेजा कलेजा, मै हू हर घाव सीने के लिए !"

खतरनाक है जी.....

बोले तो.....बहुत बढ़िया!

कुंवर जी,

अलीम आज़मी said...

umda rachna aapki ... beatiful, really touching one...keep going ..
best rgrds
aleem

Yashwant Mehta "Yash" said...

dil ki kalam se likhte ho

स्वप्न मञ्जूषा said...

waah...kya likh dis hai..
jiyo jiyo..
haan nahi to...!!

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

मजबूरियो के नाम पर, बढा ले तू कितने भी फासले
तू चीरेजा कलेजा, मै हू हर घाव सीने के लिए.......
अच्छी रचना..

शेफाली पाण्डे said...

haan anamika ji...yaad hai....aap aae achchha laga ...

जोगी said...

मजबूरियो के नाम पर, बढा ले तू कितने भी फासले
तू चीरेजा कलेजा, मै हू हर घाव सीने के लिए !


beautifully written...

कडुवासच said...

...बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति,बधाई !!!

Randhir Singh Suman said...

nice

शरद कोकास said...

यह ओस की आत्मकथा है ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सबकी लकीरों में नसीब के खेल ही होते हैं.....
एक शेर याद आ गया--

उम्र कि रिश्ता हमवार नहीं होता
अपना साया भी मददगार नहीं होता
दोस्त मजबूरियों कि बात और है वर्ना
जन्म से कोई गुनाहगार नहीं होता ..

संजय भास्‍कर said...

बहुत खूब लिखा है आपने , लाजवाब अभिव्यक्ति लगी

संजय भास्‍कर said...

वाह .....अनामिका जी गज़ब का लिखतीं हैं आप .......!!

shama said...

Bahut hee badhiya likha hai..lekin'la' ka uchharan Marathi me hota hai,waisa kyon likha hai?

Urmi said...

बहुत ही सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने लाजवाब रचना लिखा है ! बधाई!

अनामिका की सदायें ...... said...

शम्मा जी बहुत बहुत शुक्रिया जो आप मेरी पोस्ट पर आई. लेकिन आपने जो 'ला' की तरफ इन्गति कर के कुछ कहना चाहा है वो मुझे समझ में नहीं आया..कृपया हो सके तो मुझे समझाए की आप क्या कहना चाहती है.
आभार
अनामिका

Akanksha Yadav said...

खूबसूरत अभिव्यक्तियाँ..उम्दा रचना..बधाई !!
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'शब्द-शिखर' पर पढ़ें 'अंतरराष्ट्रीय नारी दिवस' पर आधारित पोस्ट. अंतरराष्ट्रीय नारी दिवस के 100 साल पर बधाई.

हरकीरत ' हीर' said...

हर शब्द .....हर पंक्ति अपनी नज़्म कहती लाजवाब ......!!

बहुत खूब......!!