Monday, 8 March 2010

ताली एक हाथ से नही बजती ....











ताली एक हाथ से नही बजती
मगर मैने बजते हुये देखा हैं

दूरिया दोनो तरफ से नही चाही जाती
पर एक तरफ से बढते हुये देखा हैं
प्यार दोनो करे तो जन्नत का एहसास हैं
इक तरफा हो तो,तडप तडप के मरते देखा हैं .

ताली एक हाथ से नही बजती
मगर मैने बजते हुये देखा हैं

तीखे प्रहारो से छलनी होते हैं मन
तब एक तरफ से ही वज्रपात होते देखा हैं
निरीह को मौन में भी कुचला जाता हैं
वाचाल को सिरमौर बनते देखा हैं .

ताली एक हाथ से नही बजती
मगर मैने बजते हुये देखा हैं

वफा, बे-वफायी दो अलग पह्ळू हैं सिक्के के
मगर आज तक किसी एक को ही पह्ळू बदलते देखा हैं.
ताली एक हाथ से नही बजती
मगर मैने बजते हुये देखा हैं

26 comments:

संजय भास्‍कर said...

ताली एक हाथ से नही बजती
मगर मैने बजते हुये देखा हैं

बहुत खूब, लाजबाब !

संजय भास्‍कर said...

बहुत खूब .जाने क्या क्या कह डाला इन चंद पंक्तियों में

जोगी said...

: ) waah...bahut badiya

अनिल कान्त said...

achchhi hai......

man ke bhavon ko achchha vyakt kiya hai

स्वप्न मञ्जूषा said...

निरीह को मौन में भी कुचला जाता हैं
वाचाल को सिरमौर बनते देखा हैं .
शायद दुनिया की यही रीत है...कहते हैं न कि थोथा चना बाजे घना
ऐसी ताली तो न जाने कब से बज रही हैं...कुछ ही नज़र यह देख पाती हैं...आपकी वो नज़र है..
बहुत सुन्दर कविता...

अलीम आज़मी said...

bahut hi achche dhang se aapne har ek line ko apni hunar ko anjaam diya hai ....har ek line ki apni khasiyat liye hue kuch na kuch bayan kar rahi hai ...jo khoobsurti ko aur badha rahi hai .....bahut khoob ...really touching heart....
best rgds
aleem

शबनम खान said...

Bohot alag soch se likhi kavita...
taali ek hath se nhi bajti....par..ajkal bajne b lagi ha...
Maaf karna kafi dino se na likh pa rahi hu na pad pa rahi hu....par tumhari kavitaye pasand ha ...aaj sari padi...mujhe tumhara likhne ka style bohot pasand ha...yu hi likhti raho...

हरकीरत ' हीर' said...

आपके लेखन में परिपक्वता आती जा रही है ......पिछली दोनों नज्में उम्दा थीं .....इसे कुछ और तराशने की जरुरत लगी .......!!

डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह said...

Bahut sunder blog aur bahut sunder shabd qapke ummeed jaga rahe hai.badhai ,
dr.bhoopendra

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

तीखे प्रहारो से छलनी होते हैं मन
तब एक तरफ से ही वज्रपात होते देखा हैं
निरीह को मौन में भी कुचला जाता हैं
वाचाल को सिरमौर बनते देखा हैं

आज कल सब होता है....पुरानी कहावतें झूठी पद रही हैं....अच्छी रचना..

महिला दिवस की शुभकामनायें

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

दूरियां दोनों तरफ से नहीं चाही जाती
पर एक तरफ से बढते हुये देखा हैं
प्यार दोनो करे तो जन्नत का एहसास हैं
इक तरफा हो तो,तडप तडप के मरते देखा हैं.
वाह...बहुत खूब.

वाणी गीत said...

निरीह को मौन में भी कुचला जाता हैं
वाचाल को सिरमौर बनते देखा हैं ....
इस लिए ही सौ इल्जामों पर भी वाचालता ही अपना कर देखा है ...
बहुत शुभकामनायें ...!!

निर्मला कपिला said...

तीखे प्रहारो से छलनी होते हैं मन
तब एक तरफ से ही वज्रपात होते देखा हैं
निरीह को मौन में भी कुचला जाता हैं
वाचाल को सिरमौर बनते देखा हैं .
ानामिका जी बिलकुल सही कहा आपने। ये पँक्तियाँ तो मन को छू गयी। अद्भुत सुन्दर। बधाई

Chakreshhar Singh Surya said...

जिनपे गुजरी है उनसे पूछे कोई हकीक़त क्या है?
वो मुस्कुरा के कहेंगे, जाने दो..अब उनसे वास्ता क्या है?

खूबसूरत रचना है आपकी.

रंजू भाटिया said...

निरीह को मौन में भी कुचला जाता हैं
वाचाल को सिरमौर बनते देखा हैं .सही कहा आपने ..मौन कई बार सजा भी बन जाता है अच्छी लगी आपकी यह रचना शुक्रिया

दिगम्बर नासवा said...

तीखे प्रहारो से छलनी होते हैं मन
तब एक तरफ से ही वज्रपात होते देखा हैं
निरीह को मौन में भी कुचला जाता हैं
वाचाल को सिरमौर बनते देखा हैं ..

ये ही तो ज़माने का दस्तूर है .. जो जीतने ज़ोर से चीखता है .. उतना ही उसकी बात सुनी जाती है ...
अच्छे भाव है इस रचना में ...

Arshad Ali said...

Great..
Bahut shandaar rachna
puri duniadari sikha gaya...

Shabnam Khan se puri tarah sahmat

Yashwant Mehta "Yash" said...

ye dastur hei duniya ka

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

बहुत खूब कही...

Mithilesh dubey said...

ओह पढ़ने से लगा कि आपने दिल से लिखा है , दिल से निकलती अभिव्यक्ति अच्छी लगी ।

ज्योति सिंह said...

ताली एक हाथ से नही बजती
मगर मैने बजते हुये देखा हैं
bahut laazwaab taali baji ,hum to isse anjaan rahe ,bahut pahle main bhi ek rachna likhi thi is vishya par magar meri taali dono haath se wazi thi .

kunwarji's said...

निरीह को मौन में भी कुचला जाता हैं
वाचाल को सिरमौर बनते देखा हैं .
....
बहुत सुन्दर कविता...
LAAJWAAB NA KAHOON TO KYA KAHOON...?

पूनम श्रीवास्तव said...

bahut hi sundar abhivykti,vaise aisa bhi hota hai ki aap ek haath se taali bajate rahiye ,kisi
par uska fark pade ya na pade.
poonam

M VERMA said...

ताली एक हाथ से नही बजती
मगर मैने बजते हुये देखा हैं
ऐसा भी होता है
सुन्दर

रचना दीक्षित said...

बहुत सुन्दर भाव. पर आज कल तो एक हाथ से ही बजती है.अरे भाई शोर्टकट का ज़माना जो है हा हा .....

Satish Saxena said...

अच्छा लगा आपको पढ़ कर , लेखनी में ताकत है ....
शुभकामनायें !