रोज मुझसे कहती है ..
मुझे मैला मत करना !
आज तुम्हारी हू,
कल किसी और का होना है !
तुम अपनी झूठी वाणी से
मुझे मत पुकारना !
अपनी लालसा भरी आंखो से
मुझे मत देखना !
मुझे उजळी रहने दो
अपनी सच्चाई से ,
अपनी विनम्रता से !
मुझे शुद्धता देना
अपने कर्मो से ..
मेरी आत्मा रोज मुझे कहती है !!
26 comments:
Great !u listen your inner voice
मेरी आत्मा कहती है रोज ...
और आत्मा सच ही कहती है ...बस उसी की बात सुननी चाहिए
आत्मा की आवाज सुनने के लिए कितना मौन होना पड़ता होगा....
बहुत बढ़िया...
कुंवर जी,
बहुत ही सुन्दर कविता...
आत्मा की मुखरित आवाज़ सुन लीजिये अनामिका जी...
sach mein hi har insaan ki aatma ki awaj yahi kehti hai... bahut achi rachna..God bless you !!!
अंतर्मन की प्रतिध्वनि होती हुई....अच्छी रचना...बधाई
आश्चर्य है आप आजकल के जमाने में भी आत्मा की आवाज सुनती हैं.बढि़या कविता.
aatma ki aawaz sachchi hoti hai avshya sunna chahiye
bahut hi achchhi lagi rachna
बहुत बढ़िया.
मेरे जिस्म में ठहरी आत्मा
रोज मुझसे कहती है ..
मुझे मैला मत करना !
सुंदर शब्दों के साथ.... बहुत सुंदर अभिव्यक्ति....
वाह ....अनामिका didi जी गज़ब का लिखतीं हैं आप .......!!
मुझे उजळी रहने दो..अपनी सच्चाई से...
अपनी विनम्रता से.....मुझे शुद्धता देना...
बहुत ही खूबसूरत रचना.
अपना एक शेर याद आ रहा है-
ज़मीर बेच रहा था कि ये ख्याल आया
किसी भी दाम पे फिर इसको पा नहीं सकता.
मुझे उजळी रहने दो...अपनी सच्चाई से...
अपनी विनम्रता से... मुझे शुद्धता देना....
वाह...बहुत ही खूबसूरत रचना.
अपना एक शेर याद आ रहा है-
ज़मीर बेच रहा था कि ये ख्याल आया,
किसी भी दाम में फिर इसको पा नहीं सकता.
मै अनात्मवादी हूँ ..क्या कहूँ इस कविता पर ?
रचना में सादगी है यानी जैसा सोचा उसे उतार दिया। किंतु अगर मैं अपनी दार्श्निक दृष्टि से देखता हूं तो पाता हूं आत्मा को कब कौन मैला कर सका है। आत्मा सिर्फ आत्मा है। वो न गलती, न मरती, न मैली होती न शुद्ध होती है। वो सिर्फ इस देह को ऊर्ज़ांवित रखती है। हम अपने आचरणों से मैले या शुद्ध होते हैं, यानी भौतिक देह भर। उसीके परिणाम सुख दुख देते हैं। आत्मा का इसमे मुझे कोई रोल नहीं दिखता। और 'मुझे उजली रहने दो या मुझे शुद्धता देना ऐसा लगता है मानों वो पहले मैली है या शुद्ध होने की क्रिया में है। खैर..यह सब तार्किक बाते हैं, मुद्दे की बात तो यह है कि आपकी रचना बेहद सादगी पूर्ण और सरल है। जो मन को अच्छी लगती है। बस रचना की यह सार्थकता ही तो है।
आपकी ये रचना बेहतर लगी ... लीक से हट कर ...कुछ नया
बधाई ...
aatma ki aawaz bahut achchhe se ujaagar ki hai....insaan aksar aatmao ka khayal rakhna bhul jaate hai
आप लोगों को पता नहीं आत्मा कैसे बात कर लेती है यहाँ तो हमेशा खामोश ही रहती है। मैं कई बार कोशिश भी करती हूँ लेकिन कुछ नहीं होता। मजाक कर रही हूँ आपकी प्रस्तुति अच्छी है।
आत्मा की आवाज़ ही सच्ची और पवित्र होती है उसे ही सुने सही कहा है पर मुद्दा ये है की क्या लोगों के पास आत्मा है ?या उसकी आवाज़ सुनाने का समय ?
Bahut lajawaab ...
Main abhi Faridabad se aapki rachna ka maja le raha hun ... kal vapas Dubai jaa kar poori tarah se net par rahunga ...
नही पता क्या बोलू...कभी कभी शब्द कम पड जाते है और मै तो वैसे भी शब्दो का धनी नही...
aapke har ek rachna lajawaab hoti hi hai ...bemisaal likhti hai aap ...waqt nikal apne comments se do chaar kare...hume inspire kare aur likhne ka...shukriyaa
anaamikaa......lekin ye aatmaa to mujhe meri khud kee lagi....mujhe meri aatmaa se milvaane ke liye dhanyavaad.....aabhaar....aap aise hi jagaane vali cheezen likhti raho....!!
Khoobasurat aur vicharaneeya rachana----.
एक बात कहूँ...अनामिका जी !
आपने मेरी रूह की आवाज़ कैसे सुन ली !
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मेरे जिस्म में ठहरी आत्मा
रोज मुझसे कहती है ..
मुझे मैला मत करना !
आज तुम्हारी हू,
कल किसी और का होना है
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