दोस्तो आज कुछ हट के लिखने की कोशिश की है...आशा है इसे पढ कर आनंदित होंगे...असल में किसी ने पेशकश की कि सुहागरात या घुंघट पर कोई रचना लिख कर भेजे..तो हमने क्या खुद को किसी से कम समझना था, बैठ गये दिमाग की कलम घिसने और जो जो लफ्जो की उठा-पटक हुई वो इस रचना के लटको -झटको में समा गयी...तो जी आप भी भुगतीये ....
घूँघट उठाया जो उसके मुख से..
बेदाग सा इक चाँद नज़र आया
फैली थी चाँदनी जिसके दम से..
मेरे दिल का वो करार नज़र आया..!!
पलक उठा के यू देखा उसने मुझे..
और मैं फलक से टूटता तारा नज़र आया..
मुस्कराहट की सौगात जब दी उसने..
मैं खुद-ब-खुद में संभलता नजर आया....!!
रुखसारो पे बला की हया नाचती थी..
सुर्ख लबो पे पंखुडियो सी कोमलता
उसके वज़ूद मे एक जादूगरी..
बाहो मे मानो सुकून-ए-जन्नत भरा..!!
मैं यू हुआ दीवाना मिल के उस से..
मेरा रोम-रोम पुलकित हो आया...
मैं आसमान था या वो ज़ॅमी मेरी..
मानो जन्नत-ए-खुदा मैं ही पाया !!.
और मैं फलक से टूटता तारा नज़र आया..
मुस्कराहट की सौगात जब दी उसने..
मैं खुद-ब-खुद में संभलता नजर आया....!!
रुखसारो पे बला की हया नाचती थी..
सुर्ख लबो पे पंखुडियो सी कोमलता
उसके वज़ूद मे एक जादूगरी..
बाहो मे मानो सुकून-ए-जन्नत भरा..!!
मैं यू हुआ दीवाना मिल के उस से..
मेरा रोम-रोम पुलकित हो आया...
मैं आसमान था या वो ज़ॅमी मेरी..
मानो जन्नत-ए-खुदा मैं ही पाया !!.
29 comments:
उसके वज़ूद मे एक जादूगरी..
बाहो मे मानो सुकून-ए-जन्नत भरा..!!
वाकई अलग सा है.
रचना बहुत सुन्दर है
भुगत रहे है जी !!
सादर
पुरुष अनुभूति की रचना किसी भवभूति से कम नही ।
ha ha ha
ये हुई ना बात,ना रोना ना धोना और ना निराशा,लाचारगी है इस रचना में.पर............तुम तो 'फिमेल' से 'मेल' बन गई.
हा हा हा बिना सर्जरी के जेंडर चेंज? माय गोड! जिसे घूंघट में छिपी दुल्हन होना था वो दूल्हा हो गई और उसके भावों को ;यूँ; अभिव्यक्त भी कर दिया. इसे हि शायद 'परकाया' प्रवेश कहते हैं. पर..प्रेम के गीत तो गाने लगी कम से कम .
उसके लिए मैं तुम्हे बधाई दूंगी.हर वक्त रोने धोने,निराशावाद के गीत गाने वाले,अपने आपको लाचार,दयनीय दर्शाने वाले लोग मुझे कत्तई नही सुहाते. तो दुल्हे रजा,वेल डन
waaaaaaaaaaaaaah !
lafzon ke saath khilwaad nahin kiya apne...
lafzon ko izzat bakhshi hai
dili jazbaat ko raftaar di hai aur bahut hi khoobsoorat shaayari ka muzahara karaya ...
apka tahe-dil se shukriya aur mubaarqaan ji !
वाकई में हट कर .... बहुत सुंदर रचना....
bahut hi sundar Anamika ji ...kafi khushi bhari kavita hai...badhai...
Aj bohot din baad apke blogging ki taraf palat kar aayi hu..aur ate hi apki ye ALAG peshkash padi...mazedar...
मैँ इन्दु पुरी जी की बात से शतप्रतिशत सहमत होते हुए आपको बधाई देना चाहता हूं।आपने तो कमाल ही कर दिया;एक स्त्री हो कर पुरुष के मनोभावोँ को को उकेर दिया।शायद आप पूर्व जन्म मेँ पुरुष रहीँ हैँ और विगत स्म्रतियोँ मेँ अटक गया या फिर इन्दु जी की परकाया प्रवेश वाली बात सत्य है।चाहे कुछ भी हो आप के हुनर को दाद देता हूं।
बहुत खूबसूरती से आपने एक दुल्हे के जज़्बात लिख डाले हैं....
घूँघट का सजीव चित्रण.....बधाई
घूँघट विषय का बड़ी सुन्दरता से प्रयोग किया है कविता में
nice !
रचना पर तो बेशक
वाह वाह...
लेकिन ’अतिक्रमण’ पर ’घोर आपत्ति’
....नहीं....नहीं कीजिये....
अब क्या किया जा सकता है.(हा हा हा)
behtar rachna
ये घूंघट वैगेरह तो ठीक है...
पहले ये बताओ पुछा कि नहीं.....'पंजा लड़ाएगी ???'
:):):)
ये घूंघट वैगेरह तो ठीक है...
पहले ये बताओ पुछा कि नहीं.....'पंजा लड़ाएगी ???'
:):):)
'ada'
पुलकित
lovely !
घूँघट का सजीव चित्रण.....बधाई .
Bahut hi badhiya likha hai...bilkul alag sa
घूँघट मै नारी नहीं आज, वो तो लोगो ने अपने इमान मै डाला है.
अनामिका जी आपकी इस कविता ने वो पुराना दौर धुंद निकाला है.
काश हम आज झूठ , अन्याय और गरीबी का घूँघट भी उठा पाते.
तो सही मानो मै हम खुशियों के साथ अपनी शुग्रात मना पाते.
आभार
वाह!बहुत कुछ याद हो आया जी,
कुंवर जी,
खुबसूरत रोमांटिक गीत बन पड़ा है ...बहुत बढ़िया
वाकई में हट कर .... बहुत सुंदर रचना..
आपकी पोस्ट तो लाजवाब है और आप किसी से काम नहीं है ये भी सही है पर मेरी वाली बाकी सब बातें तो इंदु जी ने कह डाली अब मैं क्या कहूँ ????? सिर्फ हा ..हा ..हा ...
अच्छा लगा। अच्छा तो लगना ही था। अच्छा लिखा आपने।
बहुत ही भाव प्रवण और आनन्द दायक।
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पड़ोसी की गई क्या?
गूगल आपका एकाउंट डिसेबल कर दे तो आप क्या करोगे?
बहुत खूबसूरती से आपने एक दुल्हे के जज़्बात लिख डाले हैं...
एक नए अंदाज़ में आपने बहुत ही ख़ूबसूरत रचना लिखा है जो प्रशंग्सनीय है! उम्दा प्रस्तुती!
Yah ghoonghat uthane ka riwaj,aajke beparda jeevan mebhi kitna purkashish,romanchak lagta hai..!
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