मुझे ख़ुशी हो रही है की बहुत सी हमारी ब्लॉगर मित्र इस राजनैतिक कृत्य की भत्सर्ना कर रही हैं. एक जगह ही तो ऐसी बचती है जहाँ हम अपने एहसासों को बांटते हैं. यहाँ हम छोटे बड़े का फर्क ना कर के निर्विघ्न, बिना लिंग भेद के सब के साथ भाई चारे से पेश आये...यहाँ भी अगर यही सब होगा तो इंसान खुद को कहीं आज़ाद महसूस नहीं कर पायेगा..इसलिए सब से सविनय निवेदन है की जो मेरी बात के समर्थक हैं वो इस कृत्य के विरोध में टिपण्णी अवश्य दे.
कोई मिस्टर जलजला एकाध दिन से स्वयम्भू चुनावाधिकारी बनकर.श्रेष्ठ महिला ब्लोगर के लिए, कुछ महिलाओं के नाम प्रस्तावित कर रहें हैं. (उनके द्वारा दिया गया शब्द, उच्चारित करना भी हमें स्वीकार्य नहीं है) पर ये मिस्टर जलजला एक बरसाती बुलबुला से ज्यादा कुछ नहीं हैं, पर हैं तो कोई छद्मनाम धारी ब्लोगर ही ,जिन्हें हम बताना चाहते हैं कि हम इस तरह के किसी चुनाव की सम्भावना से ही इनकार करते हैं.
ब्लॉग जगत में सबने इसलिए कदम रखा था कि न यहाँ किसी की स्वीकृति की जरूरत है और न प्रशंसा की. सब कुछ बड़े चैन से चल रहा था कि अचानक खतरे की घंटी बजी कि अब इसमें भी दीवारें खड़ी होने वाली हैं. जैसे प्रदेशों को बांटकर दो खण्ड किए जा रहें हैं, हम सबको श्रेष्ट और कमतर की श्रेणी में रखा जाने वाला है. यहाँ तो अनुभूति, संवेदनशीलता और अभिव्यक्ति से अपना घर सजाये हुए हैं . किसी का बहुत अच्छा लेकिन किसी का कम, फिर भी हमारा घर हैं न. अब तीसरा आकर कहे कि नहीं तुम नहीं वो श्रेष्ठ है तो यहाँ पूछा किसने है और निर्णय कौन मांग रहा है?
हम सब कल भी एक दूसरे के लिए सम्मान रखते थे और आज भी रखते हैं ..
अब ये गन्दी चुनाव की राजनीति ने भावों और विचारों पर भी डाका डालने की सोची है. हमसे पूछा भी नहीं और नामांकन भी हो गया. अरे प्रत्याशी के लिए हम तैयार हैं या नहीं, इस चुनाव में हमें भाग लेना भी या नहीं , इससे हम सहमत भी हैं या नहीं बस फरमान जारी हो गया. ब्लॉग अपने सम्प्रेषण का माध्यम है,इसमें कोई प्रतिस्पर्धा कैसी? अरे कहीं तो ऐसा होना चाहिए जहाँ कोई प्रतियोगिता न हो, जहाँ स्तरीय और सामान्य, बड़े और छोटों के बीच दीवार खड़ी न करें. इस लेखन और ब्लॉग को इस चुनावी राजनीति से दूर ही रहने दें तो बेहतर होगा. हम खुश हैं और हमारे जैसे बहुत से लोग अपने लेखन से खुश हैं, सभी तो महादेवी, महाश्वेता देवी, शिवानी और अमृता प्रीतम तो नहीं हो सकतीं . इसलिए सब अपने अपने जगह सम्मान के योग्य हैं. हमें किसी नेता या नेतृत्व की जरूरत नहीं है.
इस विषय पर किसी तरह की चर्चा ही निरर्थक है.फिर भी हम इन मिस्टर जलजला कुमार से जिनका असली नाम पता नहीं क्या है, निवेदन करते हैं कि हमारा अमूल्य समय नष्ट करने की कोशिश ना करें.आपकी तरह ना हमारा दिमाग खाली है जो,शैतान का घर बने,ना अथाह समय, जिसे हम इन फ़िज़ूल बातों में नष्ट करें...हमलोग रचनात्मक लेखन में संलग्न रहने के आदी हैं. अब आपकी इस तरह की टिप्पणी जहाँ भी देखी जाएगी..डिलीट कर दी जाएगी.
19 comments:
आपसे पूर्ण सहमति ।
सही कर रही हैं...
जलजला है गुजर जायेगा
कृपया अगले २४ घँटे, जाल तू.. ज़लाल तू.. आये जलजले को टाल तू.. का मन्त्रजाप करें, तत्पश्चात किसी सूअर को केसर की खीर का भोग लगायें, बचे हुये भाग को काने कुत्ते को खिला दें । आलू उबालने के बाद बचे हुये पानी से भरे मटके को किसी लँगड़े गधे के सिर पर फोड़ें, निश्चित ही छुटकारा मिलेगा ।
Much of Kidding... Let us laugh at his idiocy, बन्दा बड़ा बेशर्म है... जहाँ देखों अपनी फटी ढपली और बेसुरी पिपहरी लेकर पहुँच जाता है ।
ब्लॉगवाणी से निष्काषित होने के बाद शायद इस पर ब्लॉगजगत में जलजला भूचाल वगैरह ज़ुनून छा गया है ।
कृपया सुधार कर पढ़ें :
..... भूचाल वगैरह लाने का ज़ुनून छा गया है,
छद्म वेश में क्या कोई जलजला लाएगा
हमारी एकता से बस मुंह की खायेगा .
मूसल चन्द बन जो दाल भात के बीच आएगा
हम सबके सामने वो यूँ ही पिस जाएगा
"यहाँ तो अनुभूति, संवेदनशीलता और अभिव्यक्ति से अपना घर सजाये हुए हैं . किसी का बहुत अच्छा लेकिन किसी का कम, फिर भी हमारा घर हैं न. अब तीसरा आकर कहे कि नहीं तुम नहीं वो श्रेष्ठ है तो यहाँ पूछा किसने है और निर्णय कौन मांग रहा है?"
"हम खुश हैं और हमारे जैसे बहुत से लोग अपने लेखन से खुश हैं, सभी तो महादेवी, महाश्वेता देवी, शिवानी और अमृता प्रीतम तो नहीं हो सकतीं . इसलिए सब अपने अपने जगह सम्मान के योग्य हैं. हमें किसी नेता या नेतृत्व की जरूरत नहीं है."
achchhi bat kahi. sachchi bat kahi.
बहुत अच्छी लात दी ...महिलाओं ने इस प्रकार के प्राणी को... वाकई ज़लज़ला है.... और गुज़र भी गया.... समस्त महिलाओं के प्रयास को सलाम ....
जलजला ने माफी मांगी http://nukkadh.blogspot.com/2010/05/blog-post_601.html और जलजला गुजर गया।
छोटी सी उमर में हमने ऐसे कई जलजले देखे है ...आये है आते रहेंगे ,,,,उनका आना समस्या नहीं ,,,// समस्या है उनका प्रत्यक्ष या गुप्त रूप से साथ देना ....अगर उनका विरोध करे तो ......खुद ही मुह की खा कर चले जायेंगे ......इस बार आपने सामना किया ,जलजला चला गया ....अच्छा लगा ..आगे भी हमें सतर्क रहना पड़ेगा
लो आ गया जलजला (भाग एक)
वे ब्लागर जो मुझे टिप्पणी के तौर पर जगह दे रहे हैं उनका आभार. जो यह मानते हैं कि वे मुफ्त में मुझे प्रचार क्यों दें उनका भी आभार. भला एक बेनामी को प्रचार का कितना फायदा मिलेगा यह समझ से परे हैं.
मैंने अपने कमेंट का शीर्षक –लो आ गया जलजला रखा है। इसका यह मतलब तो बिल्कुल भी नहीं निकाला जाना चाहिए कि मैं किसी एकता को खंडित करने का प्रयास कर रहा हूं। मेरा ऐसा ध्येय न पहले था न भविष्य में कभी रहेगा.
ब्लाग जगत में पिछले कुछ दिनों से जो कुछ घट रहा है क्या उसके बाद आप सबको नहीं लगता है कि यह सब कुछ स्वस्थ प्रतिस्पर्धा नहीं होने की वजह से हुआ है. आप अपने घर में बच्चों से तो यह जरूर कहेंगे कि बेटा अब की बार इस परीक्षा में यह नबंर लाना है उस परीक्षा को तुम्हे क्लीयर करना ही है लेकिन जब खुद की परीक्षा का सवाल आया तो सारे के सारे लोग फोन के जरिए एकजुट हो गए और पिल पड़े जलजला को पिलपिला बताने के लिए. बावजूद इसके जलजला को दुख नहीं है क्योंकि जलजला जानता है कि उसने अपने जीवन में कभी भी किसी स्त्री का दिल नहीं दुखाया है। जलजला स्त्री विरोधी नहीं है। अब यह मत कहने लग जाइएगा कि पुरस्कार की राशि को रखकर स्त्री जाति का अपमान किया गया है। कोई ज्ञानू बाबू किसी सक्रिय आदमी को नीचा दिखाकर आत्म उन्नति के मार्ग पर निकल जाता है तब आप लोग को बुरा नहीं लगता.आप लोग तब सिर्फ पोस्ट लिखते हैं और उसे यह नहीं बताते कि हम कानून के जानकार ब्लागरों के द्वारा उसे नोटिस भिजवा रहे हैं। क्या इसे आप अच्छा मानते हैं। यदि मैंने यह सोचा कि क्यों न एक प्रतिस्पर्धा से यह बात साबित की जाए कि महिला ब्लागरों में कौन सर्वश्रेष्ठ है तो क्या गलत किया है। क्या किसी को शालश्रीफल और नगद राशि के साथ प्रमाण देकर सम्मानित करना अपराध है।
यदि सम्मान करना अपराध है तो मैं यह अपराध बार-बार करना चाहूंगा.
ब्लागजगत को लोग सम्मान लेने के पक्षधर नहीं है तो देश में साहित्य, खेल से जुड़ी अनेक विभूतियां है उन्हें सम्मानित करके मुझे खुशी होगी क्योंकि-
दुनिया का कोई भी कानून यह नहीं कहता है कि आप लोगों का सम्मान न करें।
दुनिया का कानून यह भी नहीं कहता है कि आप अपना उपनाम लिखकर अच्छा लिख-पढ़ नहीं सकते हैं. आप लोग विद्धान लोग है मुंशी प्रेमचंद भी कभी नवाबराय के नाम से लिखते थे. देश में अब भी कई लेखक ऐसे हैं जिनका साहित्य़िक नाम कुछ और ही है। भला मैं बेनामी कैसे हो गया।
लो आ गया जलजला (भाग-दो)
आप सब लोगों से मैंने पहले ही निवेदन किया था कि यदि प्रतियोगिता को अच्छा प्रतिसाद मिला तो ठीक वरना प्रतियोगिता का विचार स्थगित किया जाएगा. यहां तो आज की तमाम एक जैसी संचालित पोस्टें देखकर तो लग रहा है कि शायद भाव को ठीक ढंग से समझा ही नहीं गया है. भला बताइए मेरी अपील में मैंने किस जगह पर अभद्र शब्दों का इस्तेमाल किया है.
बल्कि आप सबमें से कुछ की पोस्ट देखकर और उसमे आई टिप्पणी को देखकर तो मुझे लग रहा है कि आपने मेरे सम्मान के भाव को चकनाचूर बनाने का काम कर डाला है। किसी ने मेरा नाम जलजला देखकर यह सोच लिया कि मैं किस कौन का हूं। क्या दूसरी कौन का आदमी-आदमी नहीं होता है। बड़ी गंगा-जमुना तहजीब की बात करते हैं, एक आदमी यदि दाढ़ी रख लेता है तो आपकी नजर में काफिर हो जाता है क्या। जलजला नाम रखने से कोई ........ हो जाता है क्या। और हो भी जाता है तो क्या बुरा हो जाता है क्या। क्या जलजला एक देशद्रोही का नाम है क्या। क्या जलजला एक नक्सली है। एक महोदय तो लिखते हैं कि जलजला को जला डालो। एक लिखते हैं मैं पहले राहुल-वाहुल के नाम से लिखता था.. मैं फिरकापरस्त हूं। क्या जलजला जैसा नाम एक कौम विशेष का आदमी ही रख सकता है। यदि ऊर्दू हिन्दी की बहन है तो क्या एक बहन किसी हिन्दू आदमी को राखी नहीं बांध सकती.
फिर भी शैल मंजूषा अदा ने ललकारते हुए कहा है कि मैं जो कोई भी हूं सामने आ जाऊं। मैं कब कहा था कि मै सामने नहीं आना चाहता। (वैसे मैंने यहां देखा है कि जब मैं अपने असली नाम से लिखता हूं तो एक से बढ़कर एक सलाह देने वाले सामने आ जाते हैं, सब यही कहते हैं भाईजान आपसे यह उम्मीद नहीं थी, आप सबसे अलग है आप पचड़े में न पढ़े. अब अदाजी को ही लीजिए न पचड़े में न पड़ने की सलाह देते हुए ही उन्होंने ज्ञानू बाबू से लेकर अब तक कम से कम चार पोस्ट लिख डाली है)
जरा मेरी पूर्व में दिए गए कथन को याद करिए मैंने उसमे साफ कहा है कि 30 मई को स्पर्धा समाप्त होगी उस दिन जलजला का ब्लाग भी प्रकट होगा। ब्लाग का शुभारंभ भी मैं सम्मान की पोस्ट वाली खबर से ही करना चाहता था, लेकिन अब लगता है कि शायद ऐसा नहीं होगा. एक ब्लागर की मौत हो चुकी है समझ लीजिएगा.
अदाजी के लिए सिर्फ इतना कह सकता हूं कि मैं इंसान हूं.. बुरा इंसान नहीं हूं। (अदाजी मैंने तो पहले सिर्फ पांच नाम ही जोड़े थे लेकिन आपने ही आग्रह किया कि कुछ और नामों को शामिल कर लूं.. भला बताइए आपके आग्रह को मानकर मैंने कोई अपराध किया है क्या)
आप सभी बुद्धिमान है, विवेक रखते हैं जरा सोचिए देश की सबसे बड़ी साहित्यिक पत्रिका हंस और कथा देश कहानी प्रतियोगिताओं का आयोजन क्यों करती है। क्या इन प्रतियोगिताओं से कहानीकार छोटे-बड़े हो जाते हैं। क्या इंडियन आइडल की प्रतिस्पर्धा के चलते आशा भोंसले और उदित नारायण हनुमान जी के मंदिर के सामने ..काम देदे बाबा.. चिल्लाने लगे हैं।
दुनिया में किसी भी प्रतिस्पर्धा से प्रतिभाशाली लोग छोटे-बड़े नहीं होते वरन् वे अपने आपको आजमाते हैं और जब तक जिन्दगी है आजमाइश तो चलती रहनी है. कभी खुद से कभी दूसरों से. जो आजमाइश को अच्छा मानते है वह अपने आपको दूसरों से अच्छा खाना पकाकर भी आजमाते है और जिसे लगता है कि जैसा है वैसा ही ठीक है तो फिर क्या कहा जा सकता है.
कमेंट को सफाई न समझे. आपको मेरे प्रयास से दुख पहुंचा हो तो क्षमा चाहता हूं (ख्वाबों-ख्यालों वाली क्षमा नहीं)
आपकी एकता को मेरा सलाम
आपके जज्बे को मेरा नमन
मगर आपकी लेखनी को मेरा आहावान
एक पोस्ट इस शीर्षक पर भी जरूर लिखइगा
हम सबने जलजला को मिलकर मार डाला है.. महिला मोर्चा जिन्दाबाद
कानून के जानकारों द्वारा भेजे गई नोटिस की प्रतीक्षा करूंगा
आपका हमदर्द
कुमार जलजला
बहुत जरूरत थी ऐसे सन्देश की.. आज सच में महसूस हुआ कि- 'एक नहीं दो-दो मात्राएँ.. नर से भारी नारी..''
ऐसे जागरूक आह्वाहन के लिए आभारी हूँ.
अनामिका जी को सामयिक चर्चा के लिए धन्यवाद. और जलजला जी ! को धन्यवाद देना चाहूंगी कि उन्होंने स्वयं प्रकट होकर अपने विचार व्यक्त किये, जो सार्थक सोच कहीं जा सकती हैं लेकिन इसी सन्दर्भ में कुछ कहाँ चाहूंगी.......
आपकी पोस्ट पढ़ी...बहुत ख़ुशी हुई की आपने अपनी मंशा जाहिर की.. .. निसंदेह दुनिया का कोई भी कानून यह नहीं कहता है कि आप लोगों का सम्मान न करें.. लेकिन आपने जिस तरह से प्रतियोगिता का उदघोष किया, उसे सर्वदा उचित कैसे कहा जा सकता है? . . ब्लॉग की दुनिया इतनी बड़ी है सब तक पहुँच पाना बहुत मुश्किल है, कौन अच्छा कौन नहीं इसका निर्धारण सिर्फ कुछ लोगों की घोषणा से समझ लिया जाय यह कहाँ तक तर्कसंगत होगा? क्या यह प्रजातंत्र की वोटिंग की तरह नहीं? जहाँ कुछ वोट से जीतने वाले सम्मानीय बनकर अच्छे-खासे पढ़े-लिखे चाहे वे कोई भी हो, पर तक अपना हुक्म चलाते हैं, अपनी बात मनवाकर मनमाना काम करवाते रहते हैं ...ब्लॉग परिवार में आपसी सौहार्द्रपूर्ण वातावरण बना रहे इसके लिए मैं समझती हूँ इस विवाद को यहीं विराम दे देना चाहिए ....
पता नहीं क्या हो रहा है. कुछ दिन पहेले समीर जी(उड़न तस्तरी) की भी इसी प्रकार की कोई पोस्ट थी. सबको अपनी अभिब्यक्ति देने का अधिकार है लेकिन मर्यादा में. हाँ अगर कोई गलत टिपिनी दे रहा है तो आप अपनी सेट्टिंग में कमेन्ट approve करने के बाद प्रकाशित हो ऐंसे आप्शन का प्रयोग कर सकते है. मुझे पता नहीं माज़रा क्या है. लेकिन आपने इन जलजला साब को काफी प्रसिद्ध कर दिया है.
आपसे पूर्ण सहमति ।
kapfi srgrmi hai,hlchl bdhi hui hai. is msle pr mai to sirf itna hi khungi
''apne usulo ko apni hi kasauti pe kso
dusron ki nigahen kya khak pta dengi''
mera mat bhi anamika ji ke saath hai ,pratiyogitaye hoti hai par unka swarup aisa nahi hona chahiye jaisa jljala ji ne bana kar rakha hai..
मैं अनामिका जी की बात से सहमत हूँ एक हफ्ते में अपनी एक पोस्ट डालती हूँ और उस ही में खुश रहती हूँ बहुत ज्यादा की आशा भी नहीं करती .हम सभी अपने अपने माहौल में खुश हैं और ऐसे ही रहना पसंद करेंगे
आभार
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